पं. हरिनारायण शास्त्री की मानें तो हिरण्यकश्यप राक्षसों का राजा हुआ करता था। उसका पुत्र प्रह्लाद था जो विष्णु का भक्त था। राजा भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था। जब उसे पता चला कि प्रह्लाद विष्णु भगवान का भक्त है, तो उसने प्रह्लाद को रोकने की कोशिश की। फिर भी प्रह्लाद ने एक न सुनी। प्रह्लाद के न मानने पर हिरण्यकश्यप यातनाएं देने लगा। प्रह्लाद को पहाड़ से नीचे गिराया, हाथी के पैरों से कुचलवाया, लेकिन विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया। तब हिरण्यकश्यप को होलिका नाम की बहन ने सलाह दी। कहा उसे वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। हिरण्यकश्यप के कहने पर होलिका प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी गोद में बैठाकर आग में प्रवेश कर कई। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से तब भी भक्त प्रहलाद बच गया और होलिका जल गई।
देव लोग के राजा इंद्र ने कामदेव को शिव की तपस्या भंग करने का आदेश दिया। तब कामदेव ने वसंत को याद किया और अपनी माया से वसंत का प्रभाव सारे जगत में फैला दिया। तब सभी प्राणी काममोहित होने लगे। शिव को मोहित करने का यह प्रभाव होली तक चला। कहते है कि होली के ही दिन शिव की तपस्या भंग हो गई। वह रौद्र रूप में आ गए। शिव रोष में आकर कामदेव को भस्म कर दिए। फिर सब को संदेश दिए कि होली के दिन काम (मोह, इच्छा, लालच, धन, मद) अपने पर हावी न होने दें। तब से ही होली पर वसंत उत्सव एवं होली जलाने की परंपरा है। इस घटना के बाद शिवजी ने पार्वती से विवाह की सम्मति दी। जिससे सभी देवी-देवताओं और मनुष्यों में हर्ष फैल गया। सभी एक-दूसरे को रंग गुलाल उड़ाकर उत्सव मनाया, जो आज होली के रूप में घर-घर मनाया जाता है।
कहा जाता है कि आदि कालांतर पहले राजा रघु के राज्य में ढुण्डा नाम की एक राक्षसी थी। जिसको भगवान शिव से अमरत्व का वरदान था। जो खासकर बच्चों को परेशान करती थी। राज्य की भयभीत प्रजा ने अपनी पीड़ा राजा रघु को बताई। तब राजा रघु ने पूरा घटनाक्रम महर्षि वशिष्ठ को बताया। फिर ऋषि ने उपाय बताया कि फाल्गुन पूर्णिमा का दिन शीत ऋतु की विदाई तथा ग्रीष्म ऋतु के आगमन का होता है। उस दिन सारे लोग एकत्र होकर आनंद और खुशी के साथ हंसे, नाचे, गाएं, तालियां बजाएं। लकडिय़ां, घास, उपलें आदि इकट्ठा कर मंत्र बोलकर उनमें आग जलाएं, अग्नि की परिक्रमा करें व उसमें हवन करें। राजा द्वारा प्रजा के साथ इन सब क्रियाओं को करने पर अंतत: ढुण्डा नामक राक्षसी का अंत हुआ। इस प्रकार बच्चों पर से राक्षसी बाधा तथा प्रजा के भय का निवारण हुआ। यह दिन ही होलिका तथा कालान्तर में होली के नाम से लोकप्रिय हुआ।