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सतना

ऐसा भी, यहां अल्पसंख्यक प्रत्याशी कांग्रेस का ट्रंप कार्ड, भाजपा के लिए ब्राह्मण शुभ सतना सीट पर ऐसी है भाजपा की किस्मत

जिले में एक ऐसी विधानसभा ऐसी सीट है जहां की जनता ने जाति और धर्म से ऊपर उठकर हर वर्ग को महत्व दिया। ब्राह्मण, बनिया बाहुल्य इस विधानसभा के मतदाताओं ने क्षत्रपों को धूल चटाते हुए अब तक चार बार अल्पसंख्यक को अपना विधायक चुना

सतनाOct 21, 2023 / 02:03 pm

Sanjana Kumar

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जिले में एक ऐसी विधानसभा ऐसी सीट है जहां की जनता ने जाति और धर्म से ऊपर उठकर हर वर्ग को महत्व दिया। ब्राह्मण, बनिया बाहुल्य इस विधानसभा के मतदाताओं ने क्षत्रपों को धूल चटाते हुए अब तक चार बार अल्पसंख्यक को अपना विधायक चुना। यहां अल्पसंख्यक प्रत्याशी कांग्रेस का ट्रंप कार्ड रहा तो भाजपा के लिए ब्राह्मण चेहरे ही शुभ रहे। 1967 में जब सतना जनसंघ का गढ़ माना जाता था, तब एक गुजराती महिला जिसके शहर में 100 सजातीय वोट भी नहीं थे, ने विधानसभा चुनाव में जनसंघ का किला ढहाते हुए पहली बार सतना सीट कांग्रेस की झोली में डाली थी। जिले की पहली महिला विधायक कांताबेन पारेख ने तब जन संघ के दिग्गज नेता दादा सुखेंद्र सिंह को पटखनी दी थी। वह समाज सेवा के दम पर लगातार 10 साल तक सतना विधानसभा से विधायक रहीं।

अब तक के विधायक

किसी एक वर्ग के पक्ष में नहीं रहा सतना का जनमत

सवर्ण बाहुल्य सतना विधानसभा में कांग्रेस ने जब-जब चुनाव में अल्पसंख्यक कार्ड खेला, पार्टी भाजपा का किला ढहाने में कामयाब रही है। सतना सीट से अल्पसंख्यक प्रत्याशी कांग्रेस के लिए हमेशा तुर्प का पत्ता साबित हुए हैं। चाहे 1967 और 72 के चुनाव में गुजराती महिला कांताबेन पारेख हों या 1980 में हुए चुनाव में लालता प्रसाद खरे। 90 के दशक में भाजपा के बृजेंद्रनाथ पाठक ने दो बार 1990,1993 में कांग्रेस को पटखनी दी। 1998 के विस चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर अल्पसंख्यक कार्ड खेलते हुए मुस्लिम समाज से सईद अहमद को टिकट दी। उनका यह कार्ड सफल रहा और सईद ने बृजेन्द्र को हराकर यह सीट भाजपा से छीन ली।

 

1967 में जातीय समीकरण तोड़ गुजराती महिला ने जनसंघ के गढ़ में लगाई थी सेंध

वर्ष सदस्य

1957 शिवानंद श्रीवास्तव (कांग्रेस)

1962 सुखेंद्र सिंह (जनसंघ)

1967 कांताबेन पारेख (कांग्रेस)

1972 कांताबेन पारेख (कांग्रेस)

1977 अरुण सिंह (जनता पार्टी)

1980 लालता प्रसाद खरे (कांग्रेस)

1985 लालता प्रसाद खरे (कांग्रेस)

1990 बृजेन्द्र नाथ पाठक (भाजपा)

1993 बृजेन्द्र नाथ पाठक (भाजपा)

1998 सईद अहमद (कांग्रेस)

2003 शंकर लाल तिवारी (भाजपा)

2008 शंकर लाल तिवारी (भाजपा)

2013 शंकर लाल तिवारी (भाजपा)

2018 सिद्धार्थ कुशवाह (कांग्रेस)

 

1990 तक कांग्रेस का गढ़

सतना विधानसभा सीट 1990 तक कांग्रेस का गढ़ रही है। इसके बाद भाजपा ने ब्राह्मण प्रत्याशी के रूप में बृजेंद्रनाथ पाठक को मैदान में उतार कर 1990 के चुनाव में सतना विधानसभा सीट कांग्रेस से छीन ली। पाठक लगातार दो बार सतना से भाजपा के टिकट पर विधायक रहे। उनके बाद शंकरलाल तिवारी भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए 2003 से 2018 तक 15 साल विधायक रहे। शंकरलाल सतना विधानसभा सीट से जीत की हैट्रिक लगाने वाले एक मात्र विधायक हैं।

 

थर्ड फ्रंट अप्रभावी

सतना सीट एकलौती है जहां थर्ड फ्रंट कभी भी चुनाव पर प्रभावी नहीं रहा।1962 में भारतीय जनतंत्र व 1977 में जनता पार्टी को छोड़कर इस सीट पर हमेशा भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला ही देखने को मिला है। इसमें अब तक सात बार कांग्रेस और पांच बार भाजपा चुनाव जीत चुकी है।

सिद्धार्थ ने तोड़ा शंकर का तिलिस्म

2003 से 2018 तक यहां भाजपा का कब्जा रहा। भाजपा का गढ़ ढहाने कांग्रेस ने 2018 के चुनाव में अल्पसंख्यक कार्ड खेला और पिछड़ा कोटे से सिद्धार्थ कुशवाहा को मैदान में उतार दिया। कांग्रेस का अल्पसंख्यक कार्ड चौथी बार सफल रहा और सिद्धार्थ ने शंकरलाल का तिलिस्म तोड़ते हुए यह सीट कांग्रेस की झोली में डाल दी।

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