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सतना

चित्रकूट उपचुनाव: मुद्दों से मुंह चुरा रही राजनीतिक पार्टियां, ये है यहां की मुख्य जरूरतें

जीत के लिए बुनियादी जरूरतों पर हावी हो गई जाति और व्यक्ति, बेरोजगारी, पेयजल संकट हैं प्रमुख जरूरतें

सतनाOct 30, 2017 / 11:35 am

suresh mishra

Candidate should get 1.85 lakh votes in Satna to save bail

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सतना। चित्रकूट उपचुनाव के लिए जैसे-जैसे चुनाव प्रचार तेज होता जा रहा है, वैसे-वैसे पार्टियां यहां के बुनियादी मुद्दे छोड़ एक दूसरे पर कीचड़ उछालने का दौर शुरू कर दी हैं। विकास से कोसों दूर विधानसभा क्षेत्र एक ओर जहां पूरे देश में कुपोषण के लिए कुख्यात है, वहीं बेरोजगारी और जल संकट यहां की बड़ी समस्याएं हैं।
यहां का आदिवासी अंचल आज भी मुख्य सड़क संपर्क से कटा है तो तराई के कई गांव आज भी बिजली की रोशनी से वंचित हैं, लेकिन यहां चुनाव लड़ रहे दल और प्रत्याशियों के लिए यह समस्याएं मायने नहीं रख रही हैं।
जातिवाद का जहर घोला जा रहा है

चुनाव जीतने के लिए जहां इस क्षेत्र में जातिवाद का जहर घोला जा रहा है तो तथ्यों को तोड़ मोड़ कर आक्षेप की बुलंदियों के सहारे छवि बिगाडऩे का खेल भी शुरू कर दिया गया है। यह खेल सबसे ज्यादा सत्ताधारी दल की ओर से हो रहा है। दुर्गम भौगोलिक रचना के बीच सरंध्र पोरस जमीन के कारण इस क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या पानी है।
पानी को रोकने के कोई उपाय नहीं

सरंध्र चट्टानी इलाका होने से पानी यहां रुक नहीं पाता है जिससे बारिश के खत्म होते ही यहां जल संकट की स्थितियां बन जाती हैं। बरसाती नालों से बहने वाले पानी को रोकने के कोई उपाय नहीं हैं। आदिवासी बाहुल्य इलाकों में किसानों के खेतों में मेड़ नहीं होने से इनकी खेती प्रभावित होती है।
फसल उत्पादन की स्थिति भी काफी दयनीय

सरकारी योजनाएं अधिकारियों की लापरवाही या अनदेखी के कारण यहां प्रभावी नहीं है। ऐसे में फसल उत्पादन की स्थिति भी काफी दयनीय है। पूरे क्षेत्र में औद्योगिक विकास नहीं होने से लोगों के पास रोजगार के अवसर भी नहीं है। जिसका नतीजा यह है कि यहां से काफी संख्या में लोग पलायन को मजबूर होते हैं, लेकिन इस ओर किसी दल का ध्यान नहीं है।
शिक्षक न विद्यालय
विकास की मूलधारा से कटे इस क्षेत्र का दुर्भाग्य यह है कि यहां शिक्षा की स्थिति भी काफी कमजोर है। डकैतों के लिहाज से मुफीद यहां की भौगोलिक संरचना अक्सर उन्हें यहां विचरण का अवसर देती है। तराई के विद्यालयों में इस बहाने शिक्षक भी जाने से कतराते हैं। ज्यादातर विद्यालयों में काफी कम शिक्षक हैं। नतीजा यह है कि यहां का पठन-पाठन स्तर काफी न्यूनतम है। जिससे ७० फीसदी बालिकाएं इस क्षेत्र में १०वीं के बाद पढ़ाई से विमुख हो जाती हंै।
रोजगार के लिए पलायन
सतना जिले में यह इकलौती विधानसभा है जहां रोजगार के ज्यादा अवसर नहीं है। जंगलों में रहने वाले परिवार या तो खेती या फिर वनोपज अथवा लकड़ी काट कर अपना जीवन यापन करते हैं। रोजगार मूलक सरकारी योजनाएं यहां प्रभावी नहीं है। नतीजा यह होता है कि यहां की ४० फीसदी आबादी रोजगार के लिये पलायन करने को मजबूर हो जाती है। सरकारों ने भी इस मामले में अब तक कोई ध्यान नहीं दिया। स्थिति यह होती है कि सूरत, मुंबई की फैक्ट्रियों के बिचौलिए अक्सर यहां पहुंच कर परिवारों को लालच देकर काम के लिये बाहर ले जाते हैं।
जातीय समीकरण और व्यक्तिगत हमले
अब जबकि चुनाव प्रचार अपने तेजी पर आ चुका है ऐसे में दलों के रणनीतिकार इन मु²ों से परहेज करते हुए जाति की राजनीति खेल रहे हैं। सत्ताधारी दल जहां मुख्य विपक्ष कांग्रेस के नेताओं पर व्यक्तिगत हमले कर नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा है तो कांग्रेस भी यहां के नेताओं की कारनामों पर हमला बोल रही है। व्यक्तिगत हमला बोलने के मामले में भाजपा जहां आगे निकल गई है तो कांग्रेस ने भी उसी अंदाज में जवाब देना शुरू कर दिया है।

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