विकास की मूलधारा से कटे इस क्षेत्र का दुर्भाग्य यह है कि यहां शिक्षा की स्थिति भी काफी कमजोर है। डकैतों के लिहाज से मुफीद यहां की भौगोलिक संरचना अक्सर उन्हें यहां विचरण का अवसर देती है। तराई के विद्यालयों में इस बहाने शिक्षक भी जाने से कतराते हैं। ज्यादातर विद्यालयों में काफी कम शिक्षक हैं। नतीजा यह है कि यहां का पठन-पाठन स्तर काफी न्यूनतम है। जिससे ७० फीसदी बालिकाएं इस क्षेत्र में १०वीं के बाद पढ़ाई से विमुख हो जाती हंै।
सतना जिले में यह इकलौती विधानसभा है जहां रोजगार के ज्यादा अवसर नहीं है। जंगलों में रहने वाले परिवार या तो खेती या फिर वनोपज अथवा लकड़ी काट कर अपना जीवन यापन करते हैं। रोजगार मूलक सरकारी योजनाएं यहां प्रभावी नहीं है। नतीजा यह होता है कि यहां की ४० फीसदी आबादी रोजगार के लिये पलायन करने को मजबूर हो जाती है। सरकारों ने भी इस मामले में अब तक कोई ध्यान नहीं दिया। स्थिति यह होती है कि सूरत, मुंबई की फैक्ट्रियों के बिचौलिए अक्सर यहां पहुंच कर परिवारों को लालच देकर काम के लिये बाहर ले जाते हैं।
अब जबकि चुनाव प्रचार अपने तेजी पर आ चुका है ऐसे में दलों के रणनीतिकार इन मु²ों से परहेज करते हुए जाति की राजनीति खेल रहे हैं। सत्ताधारी दल जहां मुख्य विपक्ष कांग्रेस के नेताओं पर व्यक्तिगत हमले कर नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा है तो कांग्रेस भी यहां के नेताओं की कारनामों पर हमला बोल रही है। व्यक्तिगत हमला बोलने के मामले में भाजपा जहां आगे निकल गई है तो कांग्रेस ने भी उसी अंदाज में जवाब देना शुरू कर दिया है।