अपनी किताब में उन्होंने आइसोलेशन के बारे में कई नियम और जरूरी बातों के बारेमें बताया। रोगी के थूक, बलगम, कपड़ों ओर खाने के बर्तन को अच्छी तरह से साफ कर हमेशा अलग रखा जाए। जितनी जल्दी हो सके बायो वेस्ट को डिस्पेज कर दें। क्योंकि इनसे संक्रमण घर के अन्य सदस्यों तक पहुंचने की आशंका रहती है। कमरे से कालीन, दीवार पर लगेसजावटी चित्र और कैलेंडर आदि हटा दें, कमरे में ऐसा फर्नीचर रखें जिसे आसानी से धोया जा सके। उन्होंने लिखा कि बेहद संक्रामक रोगों में आइसोलेशन बेहद जरूरी है। 1940 में लिखी उनकी किताब में दिए गए विवरण आठ दशक बाद आज भी काफी महत्त्वपूर्ण हैं और अस्पतालों में इनका कड़ाई से पालन किया जाता है। वे लिखते हैं कि संक्रमित रोगी के कमरे का तापमान 50 से 60 फार्नहाइट यानी करीब 12 से 15डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए।
डॉ. जॉन डेवी द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान चेचक, टाइफस और स्कार्लेट ज्वर जैसी संक्रामक बीमारियों के लिए ब्रिटेन के प्रमुख चिकित्सा अधिकारियों में से एक थे। 1930 के दशक में डॉ. जॉन डेवी लंदन के पश्चिमी अस्पताल में चिकित्सा अधीक्षक थे। एक महामारी विज्ञानी के रूप में डॉ. जॉन डेवी ने चेचक जैसी घातक संक्रामक बीमारियों का विशेष अध्ययन किया था। उन्होंने 1870-74 में चेचक की महामारी के दौरान लोगों का इलाज किया्र। इससे फ्रांस-रूस युद्ध के दौरान २० हजार से अधिक सैनिकों की जान चली गई थी। नहाने के पानी में कोर्बोलिक एसिड मिलाकर नहलाएं या शरीर पोंछें इससे वायरस खत्म हो जाता है।