आप सोत रहे होंगे, क्या मैने ‘भूतों का मेला’ कहा है, तो आपको बता दें कि, जी हां! आप सही पढ़ रहे हैं। मेलों के बारे में तो आपने बहुत देखा और सुना होगा, लेकिन हम आपको जिस मेले के बारे में बता रहे हैं, वो मुख्य रूप से हर साल भूतड़ी अमावस्या के अवसर पर नर्मदा तट पर भूतों के लिए ही लगाया जाता है। बुदनी के रेहटी के प्रसिद्ध नर्मदा घाट, जिसका नाम आवलीघाट है। इस घाट का भी ‘नर्मदा पुराण’ में अपना एक विशेष उल्लेख है।
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यहां भगाए जाते हैं भूत – पलीत
आपको बता दें कि, हर साल नवरात्रि से एक दिन पहले आने वाली अमावस्या को पितृमोक्ष और भूतड़ी अमावस्या कहा जाता है। यहां देश के कौने कौने से लोग एक दिन पहले ही यहां आ जाते हैं। इसी एक रात पहले भूतों का मेला लगता है, जिनपर ऊपरी बाधा, भूत पालीत का प्रभाव होता है वो यहां रात भर उपचार के लिए रुकते हैं। इन भूत – पलीतों का इलाज भी वो लोग करते हैं, जिनके शरीर में देवी-देवता आते (पांडा ) आते हैं। सुबह स्नान के बाद भूत पालीतों को मुक्ति दिलाई जाती है। लोग अपने अपने पांडा के साथ इकट्ठा होकर पहुंचते हैं और खुद पर होने वाले भूत पालीत के प्रभाव को खत्म कराते हैं। यहां स्नान के बाद पहनकर आने वाले वस्त्र भी यहीं छोड़ने की धारणा है। इसके बाद संबंधित लोग यहां से सालकनपुर विजासन देवी के दर्शन करने जाते हैं।
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भूतड़ी अमावस्या का महत्व
भूतड़ी अमावस्या खासतौर पर अतृप्त आत्माओं की तृप्ति के लिए ही मनाई जाती है। आज के दिन श्रद्धालु नदी में स्नान के बाद दान करते हैं। माना जाता है कि, पितरों के निमित्त तर्पण करने से भी सुख, शांति और मोक्ष मिलता है। इसके साथ ही, भूतड़ी अमावस्या प्रेत बाधाओं को दूर करने के लिए भी विशेष मानी जाती है।