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शाहडोल

ये जत्था जगन्नाथपुरी से जल लेकर पहुंचा है यहां, जानिए जगन्नाथ पुरी की हैरान कर देने वाली बातें

पुराणों में जगन्नाथ पुरी को धरती का बैकुंठ माना गया है

शाहडोलFeb 07, 2018 / 02:26 pm

shivmangal singh

Know Jagannath Puri's Surprising Things

शहडोल- संभागीय मुख्यालय से लगे उमरिया जिले के कामाख्या धाम नरवार 25 के गुरु बाल्मीक प्रसाद के साथ लगभग 54 लोगों का जत्था जगन्नाथपुरी पहुंचा हुआ था। जहां से उन्होंने समुद्र का जल लेकर पैदल यात्रा शुरु की और मंगलवार की देर शाम ये जत्था संभागीय मुख्यालय पहुंचा, जहां बूढ़ी माता मंदिर में उन्होंने रात्रि विश्राम किया। जिसके बाद यह जत्था सुबह फिर अपने गंतव्य के लिये रवाना हो गया।

इस पूरी यात्रा के संबंध में संयोजक संजय पाण्डेय ने बताया कि इस जत्थे में शहडोल, बुढ़ार, जैतपुर सेमरा, लालपुर, धनपुरा के साथ नरवार 25 के लोग शामिल हैं। यह जत्था लगभग 7 वर्ष से अनवरत पैदल यात्रा कर अलग-अलग तीर्थ स्थानों से जल लाकर महाशिवरात्रि के अवसर पर मां कामाख्या धाम नरवार 25 में जलाभिषेक करता है। अभी तक वो लोग अमरकंटक, जलबपुर ग्वारीघाट, चित्रकूट व इलाहाबाद से पैदल यात्रा कर जल लाकर अभिषेक कर चुके हंै। जिसके बाद इस बार जगन्नाथपुरी गये हुए थे। जहां से 12 जनवरी से उनकी यह पैदल यात्रा प्रारंभ हुई है जो कि 13 फरवरी को कामाख्या धाम नरवार 25 में समाप्त होगी। जहां 14 फरवरी को जलाभिषेक के साथ अन्य धार्मिक आयोजन होंगे।

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जानिए जगन्नाथ पुरी के बारे में…
धार्मिक नगरी पुरी में भगवान जगन्नाथ, भगवान बलराम और देवी सुभद्रा का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। हिन्दू पंचांग के अनुसार यहां हर अषाढ़ महीने (जून-जुलाई) में विशाल रथयात्रा का भव्य आयोजन होता है। इस रथ की रस्सियां खींचने और छूने मात्र के लिए पूरी दुनिया से श्रद्धालु यहां आते हैं, क्योंकि भगवान जगन्नाथ के भक्तों की मान्यता है कि इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

माना जाता है कि भगवान विष्णु जब चारों धामों पर बसे अपने धामों की यात्रा पर जाते हैं तो हिमालय की ऊंची चोटियों पर बने अपने धाम बद्रीनाथ में स्नान करते हैं। पश्चिम में गुजरात के द्वारिका में वस्त्र पहनते हैं। पुरी में भोजन करते हैं और दक्षिण में रामेश्‍वरम में विश्राम करते हैं। द्वापर के बाद भगवान कृष्ण पुरी में निवास करने लगे और बन गए जग क? नाथ थ अर्थात जगन्नाथ। पुरी का जगन्नाथ धाम चार धामों में से एक है। यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। पुराणों में इसे धरती का बैकुंठ कहा गया है।

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जानिए इस मंदिर से जुड़ी कई हैरान कर देने वाली बातें
जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर जो झंडा स्थित है, हमेशा वो हवा की विपरीत दिशा में ही लहराता रहता है।
मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है, इस चक्र को किसी भी दिशा से खड़े होकर देखने पर ऐसा लगता है कि चक्र का मुंह आपकी ओरहै।
एक पुजारी मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदलता है, ऐसा माना जाता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 साल के लिए बंद हो जाएगा।
मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता साथ ही मंदिर के पट बंद होते ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है।
दिन के किसी भी समय जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती।
आमतौर पर दिन में चलने वाली हवा समुद्र से धरती की तरफ चलती और शाम को धरती से समुद्र की ओर, हैरान करने वाली बात ये है कि पुरी में यह प्रक्रिया उल्टी है।
मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं. यह प्रसाद मिट्टी के बर्तनों में लकड़ी पर ही पकाया जाता है. इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है फिर नीचे की तरफ से एक के बाद एक प्रसाद पकता जाता है
हमने ज्यादातर मंदिरों के शिखर पर पक्षी बैठे और उड़ते देखे हैं, जगन्नाथ मंदिर की यह बात आपको चौंका देगी कि इसके ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता, यहां तक कि हवाई जहाज भी मंदिर के ऊपर से नहीं
निकलता

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ये भी जानिए
हिन्दुओं की प्राचीन और पवित्र 7 नगरियों में पुरी उड़ीसा राज्य के समुद्री तट पर बसा है। जगन्नाथ मंदिर विष्णु के 8वें अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। भारत के पूर्व में बंगाल की खाड़ी के पूर्वी छोर पर बसी पवित्र नगरी पुरी उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से थोड़ी दूरी पर है। आज का उड़ीसा प्राचीनकाल में उत्कल प्रदेश के नाम से जाना जाता था। यहां देश की समृद्ध बंदरगाहें थीं, जहां जावा, सुमात्रा, इंडोनेशिया, थाईलैंड और अन्य कई देशों का इन्हीं बंदरगाह के रास्ते व्यापार होता था।

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