वर्ष 1995 में शिक्षक के पद से त्यागपत्र दे दिया
डा. गिरधर माथनकर और मनीषा माथनकर मूलत: बैतूल जिले की मुलताई तहसील स्थित सहनगांव के रहने वाले हैं। डा. गिरधर माथनकर ने ग्रामोदय विश्वविद्यालय चित्रकूट में 12 साल तक भौतिकी विषय का अध्यापन किया। मनीषा माथनकर भी फूड टेक्नोलॉजी विभाग में लगभग दो साल तक शिक्षक रहीं। मनीषा माथनकर ने वर्ष 1995 में शिक्षक के पद से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद वे दीनदयाल रिसर्च इंस्टीट्यूट में नानाजी देशमुख के साथ जुड़ गईं। वर्ष 2005 में डा. गिरधर माथनकर ने भी त्यागपत्र दे दिया। माथनकर दंपती ने 10 लोगों के साथ मिलकर एक संस्था सहजीवन समिति बनाई और जुट गए पर्यावरण संरक्षण में।
परिणाम काफी उत्साहित करने वाले रहे
इस समिति का पहला प्रोजेक्ट अनूपपुर जिले के पुष्पराजगढ़ तहसील में वर्ष 2001 में शुरू हुआ। यहां तीन गांवों सरई, तरंग और पयारी में जल और मृदा संरक्षण की शुरुआत की गई। इसके परिणाम काफी उत्साहित करने वाले रहे। इसके बाद वर्ष 2011 में नाबार्ड के माध्यम से 289 छोटे-छोटे बाग तैयार करने की योजना तैयार की गई। बाग लगाए गए लेकिन लगातार तीन साल सूखा पडऩे की वजह से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। बाग लगाने वाले किसान रोजी-रोटी की तलाश में पलायन कर गए, जिसकी वजह से ये बाग उजड़ गए। हालांकि लगभग 100 बाग अभी भी जिंदा हैं। इनमें अब फल आने लगे हैं। अब उजड़े हुए बागों को भी जिंदा करने का प्रयास किया जा रहा है।
घर आने वाले को देते हैं पौधा
माथनकर दंपती का निवास शहडोल के कल्याणपुर में स्थित है। इनके अहाते में हर साल बरसात के मौसम में प्राकृतिक रूप से सैकड़ों पौधे उग आते हैं। इन पौधों का ये संरक्षण कर लेते हैं। इनके घर पर जो भी जाता है उनको ये पौधे भेंट करते हैं। इसके अलावा स्कूलों और दूसरी संस्थाओं को भी पौधे भेंट करते हैं। संस्थानों में जो पौधे भेंट करते हैं उनके संरक्षण भी चिंता करते हैं। अभी तक माथनकर दंपती एक हजार से भी अधिक पौधों का वितरण कर चुके हैं। इसके अलावा डा. गिरधर माथनकर और मनीषा माथनकर पॉलिथीन के उपयोग न करने के लिए भी लोगों को जागरूक कर रहे हैं और स्वयं भी इसका उपयोग नहीं करते हैं।