गुजरात में करते थे मजदूरी
सूरत की कपड़ा मील में काम करने वाले मजदूरों की भी ऐसी ही कहानी है। मील बंद हो गई है, राशन भी खत्म हो गया है। खाने को कुछ नहीं बचा। ऐसे में 1200 किमी दूर घर जाना ही रास्ता बचा। लेकिन घर जाने के लिए इन्हें कोई सवारी नहीं मिली, पैसा भी खत्म हो गया। घर फोन किया एक सप्ताह में घर के लोगों ने पैसे की व्यवस्था की, राशि खाते में डाली। जिसके बाद 14 मजदूरों ने मिलकर 4500 रुपए कीमत साइकिले खरीदी और सूरत (गुजरात) से प्रयागराज (इलाहबाद) का सफर साइकिल से शुरू कर दिया।
आधा सफर तय किया, पहुंचे शाजापुर
साइकिल से आधा सफर तय करने के बाद शाजापुर पहुंचे, लेकिन थकान से आगे सफर मुश्किल हो गया। शाजापुर में 18 घंटे तक ट्रकों हाथ देते रहे, ताकि कोई आगे का सफर वाहन में कर सके। लेकिन किसी भी ट्रक में जगह नहीं मिली। काफी इंतजार करने के बाद मंगलवार सुबह सभी 14 साथियों ने पुन: साइकिल से सफर शुरू किया। साइकिल सवार अमीत कुमार, धमेज़्ंद्र, सुरेंद्रकुमार, उमेश कुमार, मुकेश, छनीराम, आलोक, सत्यम, कुलदीप, दिलीप, अनिल, मनोज, विरेंद्र ने बताया कि जीवन का यह सबसे मुश्किल दौर देख रहे है। एक बार घर पहुंच जाए, इसके वहीं कोई काम देख लेंगे, अपने शहर से दूर रहकर इतनी परेशानी पहली बार देखी है। उन्होंने कहा कि अब वह दौबारा वहां काम नहीं लौटेंगे। इस तरह को अनेक कहानी पलायन कर रहे मजदूरों की है, जो मजबूरी का सफऱ करने को लाचार हैं।