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शामली का कैराना क्षेत्र आजादी के बाद से हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल रहा है। जहां कभी सांप्रदायिक दंगे जैसी घटनाएं नहीं हुई, लेकिन 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे के बाद एक गिरोह ने मुकीम काला के रूप में जन्म लिया, जिसने विशेष रूप से व्यापारी वर्ग को निशाना बनाया। उसने व्यापारियों से धन, संपत्ति की जमकर वसूली की, जिन्होंने उसका हुक्म नहीं माना उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया। इस कारण अपने परिवार को बचाने के लिए सैकड़ों व्यापारी अपने घर, दुकान आदि संपत्ति छोड़कर दिल्ली, पानीपत, चंडीगढ़, देहरादून आदि स्थानों पर पलायन कर गए।
मजदूर से बना जुर्म की दुनिया का बादशाह कैराना के गांव जहानपुरा के रहने वाले मुस्तकीम का बेटा मुकीम उर्फ काला बहुत जल्द जुर्म की दुनिया में बादशाह बन गया था। मजदूरी करने वाले मुकीम ने मामूली वारदातों से अपराध की दुनिया में कदम रखा और फिर पैसे की चाह में जुर्म की राह पर चल पड़ा। हथियार उठा लिए, कुछ समय बाद कई साथियों के साथ पश्चिम उत्तर प्रदेश में आतंक बरपाने वाले कग्गा गिरोह में शामिल हो गया। शातिर कग्गा गिरोह में रहकर उसने कई जगह वारदातें कीं। कग्गा के पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने के बाद उसने खुद का गिरोह बना लिया और अपने क्षेत्र के साथियों की मदद से हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश के साथ-साथ दिल्ली व उत्तराखंड में अपराधों को अंजाम दिया। रंगदारी न देने पर मुकीम काला ने 24 अगस्त 2014 को कोतवाली के निकट आयरन स्टोर स्वामी शिवकुमार एवं उनके ममेरे भाई राजेंद्र कुमार की दिनदहाड़े उन्हीं की दुकान में घुसकर सरेआम गोलियों से भूनकर निर्मम हत्या कर दी थी, जिसके बाद वह सुर्खियों में आया था।
खौफजदा साढ़े चार सौ परिवारों ने किया था कैराना से पलायन मुकीम के गिरोह के बढ़ते आतंक और कोई सुरक्षा नहीं मिलने के कारण व्यापारियों ने भारी संख्या में कैराना से पलायन कर दिया था। 30 अप्रैल 2016 को कैराना पलायन के मुद्दे को तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी
सांसद हुकुम सिंह ने जोरशोर से उठाया था, जिस पर
उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व ने सुरेश खन्ना के नेतृत्व में पार्टी के सात शीर्ष नेताओं के संसदीय दल को कैराना प्रकरण की जांच के लिए भेजा था, जिसने करीब साढ़े चार सौ परिवारों के कैराना से पलायन की पुष्टि की थी।