खंडेला के लोगों से जब योजनाओं के बारे में पूछा तो सबकी जुबान पर पानी की कहानी सबसे पहले आई। लोगों ने कहा मुख्यमंत्री गहलोत ने 2000 यूनिट बिजली फ्री कर दी है, मगर जब ट्यूबवेल ही नहीं कारगर हैं तो बिजली का क्या करेंगे। बुजुर्ग पेंशन तो जरूर काम आ रही है। सस्ते गैस सिलेंडर से भी लाभ मिलेगा, लेकिन यहां बच्चों के पढऩे के लिए न तो अच्छे कालेज है न ही परिवहन की बेहतर व्यवस्था।
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खंडेला के राजवीर ने बताया कि खंडेला कभी गोटा करीगरी के लिए विश्व प्रसिद्ध था, दुनिया के करीब 12 देशों में यहा का गोटा जाता था, मगर… अब गायब है। हाथों से गोटा कारीगरी की शुरुआत यहीं से हुई। सरकार लापरवाह रही… कारीगर भी हाथों के भरोसे रहे। धीरे-धीरे मशीनें बढ़ती गईं और कारीगरों के हाथ कटते गए। इसी तरह खंडेला की जमीन मे हजारों टन यूरेनियम है, मगर प्रोजेक्ट काफी मंद गति से चल रहा है।
खंडेला से हम रींगस पहुंचते हैं। यहां एक चाय की थड़ी पर कुछ लोगों के बीच बैठ जाते हैं। रींगस से खाटूश्याम जाने वाली इस सडक़ पर खाने-पीने या फिर बाबा के निशान आदि की सैकड़ों दुकानें हैं। यहां के 70 फीसदी लोगों की रोजी-रोटी बाबा के सहारे ही चलती है। मगर… यहां डीजे वालों ने नाक में दम कर रखा है। डीजे के शोर से स्थानीय लोगों की नींद ह राम हो रही है। तभी चाय की थड़ी चलाने वाले रामकिशन बोले, यहां न तो कोई सरकारी कॉलेज है न ही बस स्टैण्ड। बच्चों को पढऩे जयपुर या सीकर भेजना पड़ता है। यहां पानी की कोई निकासी न होने के चलते खाटूभक्तों को सडक़ पर बहते पानी से गुजरना पड़ता है। खाटू के दर्शन कर जब बाहर निकले और मंदिर के आस-पास घूमना शुरू किया तो संकरी और टूटी कच्ची-पक्की सडक़ों ने आधे घंटे मे ही थका दिया।
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खाटू से हम पहुंचे दांतारामगढ़। यहां जब लोगों से कुंभाराम जल परियोजना के अलावा सरकारी योजनाओं पर बात की तो लोग दो खेमे में दिखे। लोगों ने महंगाई राहत कैंप लगाने की सराहना की, लेकिन चिरंजीवी योजना पर गुस्सा दिखे। कहना था कि निजी अस्पताल वाले भर्ती ही नहीं करते और सरकारी में सुविधाएं नहीं मिलती। हालांकि लोगों ने बुजुर्गों की पेंशन और 2000 यूनिट फ्री बिजली को सराहा।
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