ग्रामीणों के सामूहिक सहभागिता, समर्पण व संघर्ष से सफलता के ‘स्टेशन’ तक पहुंचने की ये दास्तां पूरे देश के लिए सीखने योग्य विषय है। सीकर-चूरू मार्ग स्थित छोटे से रसीदपुरा खोरी रेलवे स्टेशन को 2004 में बंद करने पर ग्रामीणों ने पहले तो रेलवे की शर्त पर लाखों रुपए खर्च कर अपने स्तर पर पांच साल तक संचालित किया।
बता दें कि नवंबर 2015 में फिर जब दोबारा स्टेशन बंद होने का खतरा मंडराया तो ग्रामीणों ने फिर उसे बचाने की मुहिम शुरू की। लंबे संघर्ष के बाद आखिरकार रेलवे को फिर से स्टेशन को हरी झंडी देनी पड़ी। अब यही स्टेशन करीब 20 करोड़ की लागत से हाईटेक होकर 9 कर्मचारियों सहित इसी महीने शुरू होने जा रहा है।
यह एक ऐसा रेलवे स्टेशन है जहां ना कोई रेलवे अधिकारी है और ना ही कोई सरकारी कर्मचारी लेकिन इसके बाद भी ट्रेन रुकती है। फिर भी यात्री टिकट खरीदते हैं और उसका पैसा भी रेलवे के एकाउंट में जाता है। 2009 से 2015 तक यानी 6 सालों तक रेलवे स्टेशन का जिम्मा गांव वालों के पास था और अभी भी वह ये काम संभाल रहे हैं। ग्रामीण ही यात्रियों की टिकट कांटते हैं। खुद स्टेशन की साफ-सफाई का ध्यान रखते हैं और सुरक्षा-व्यवस्था को लेकर भी चौकन्ने रहते हैं।
जानकारी के अनुसार, 2005 में जयपुर से चूरू के रास्ते में पड़ने वाले रसीदपुरा खोरी रेलवे स्टेशन को रेलवे विभाग ने घाटे के चलते बंद कर दिया था। ऐसे में यहां आस-पास रहने वाले हजारों लोगों के लिए आवागमन का संकट खड़ा हो गया। कई सालों तक ग्रामीणों ने सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटे। लेकिन बात नहीं बनी साल 2009 में रेलवे स्टेशन को दोबारा शुरू करने के लिए एक शर्त पर तैयार हुआ। शर्त रखी गई थी कि 300000 टिकट खरीद जरूरी है यदि ऐसा नहीं होता है तो स्टेशन बंद हो जाएगा। ऐसे में ग्रामीणों ने चंदा जुटाया और रेलवे स्टेशन चालू हो गया।