उज्जैन. विक्रम संवत 2007 के विशाख मास सन् 1950 में उज्जैन नगरी में अर्धकुंभी मनाई गई थी। प्रयाग और हरिद्वार में मनाए जाने वाली अर्धकुंभी से प्रेरणा लेकर धार्मिक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जागृति के उद्देश्य से स्व संकषर्ण व्यास ने श्रीमहंत पीर संध्यापूरी महाराज से स्वीकृति ली और संवत 2007 के महाकाल चैत्रादी पंचांग में अर्धकुंभी का उल्लेख किया। इसके बाद उज्जैन में भी अर्धकुंभी मनाई जाएं ऐसा निर्णय लिया गया। व्यास ने दत्त अखाड़े के श्रीमहंत पीर सन्ध्यापूरी महाराज और उनके भक्त नानू भाई से चर्चा की।
महारुद्र यज्ञ के साथ शुरू हुई थी परंपरा
पं आनंद शंकर व्यास ने बताया की श्रीमंहत से चर्चा के बाद एक विशाल महारुद्र यज्ञ के साथ वैशाखी पूर्णिमा 2 मई 1950 को साधु संत सहित लाखों धर्मप्राण जनता के साथ अर्धकुंभी पर्व मनाया गया। पवित्र शिप्रा में स्नान कर अमृत पान किया। उस समय म्युनिसिपल सेक्रेटरी रामस्वरूप संघवी ने सारी व्यवस्था की थी। यधपि अर्धकुंभी का आरंभ लघु रूप में हुआ था, लेकिन पीर के ब्रह्मलीन होने के बाद उनके द्वारा स्थापित यह परंपरा आगे नहीं बढ़ पाई। इस तरह 1950 में शुरू हुई परंपरा पर विराम लग गया। व्यास कहते है की नगरी का महत्व सभी तीर्थ नगरियों में तील भर ज्यादा है। शिप्रा के तट पर बारह महिने स्नान दान का दौर चलता है।