मंथन के समय भगवान ने मोहिनी रूप धारण किया था, उस दिन सिर्फ उज्जैन में ही मोहिनी एकादशी थी। भगवान विष्णु जब मोहिनी का रूप धारण कर देवों को अमृत पान करवा रहे थे, तब एक असुर छल से अमृत पान कर अमर हो गया। यह देख भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाया। चक्र ने उस असुर की गर्दन काट दी। असुर का शरीर सिर और धड़ अलग-अलग हो गया। सिर वाला भाग राहू के नाम और धड़ वाला भाग केतु के नाम से उत्पन्न हो उठा। व्यास ने बताया कि दोनों ही ग्रह छाया ग्रह है। आकाश में यह दोनों ही ग्रह नहीं दिखते हैं, लेकिन अगर किसी की कुंडली में बैठ गए तो तांडव मचा देते हैं।