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यहां पैदा हुए थे राहू और केतु, मोहिनी के मोह में फंसे थे असुर

समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु ने मोहनी रूप में छोड़ा था सुर्दशन चक्र, तभी उत्पन्न हुए थे राहू और केतु।

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simhastha simhastha

Mar 03, 2016


उज्जैन.राहू और केतु का नाम सुनते ही हर इंसान कांप उठता है। कुंडली में अगर राहू और केतु बैठ जाते हैं तो पूरी कुंडली को हिलाकर रख देते हैं। पत्रिका ने जब इन दोनों ग्रहों के बारे में जानकारी निकाली तो पता चला कि दोनों ही ग्रह महाकाल की नगरी उज्जैन में ही उत्पन्न हुए थे। वो भी उस समय जब कुंभ महापर्व अपनी नींव रख रहा था।

79 वर्ष का अनुभव और ज्योतिष शास्त्र में ख्यात प्राप्त ज्योतिष्याचार्य पं. आनंद शंकर व्यास ने बताया कि राहू और केतु उसी समय उत्पन्न हुए जब समुद्र मंथन हुआ था। इसका प्रमाण बताते हुए व्यास ने कहा कि वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी मोहिनी एकादशी के रूप में मनाई जाती है।

मंथन के समय भगवान ने मोहिनी रूप धारण किया था, उस दिन सिर्फ उज्जैन में ही मोहिनी एकादशी थी। भगवान विष्णु जब मोहिनी का रूप धारण कर देवों को अमृत पान करवा रहे थे, तब एक असुर छल से अमृत पान कर अमर हो गया। यह देख भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाया। चक्र ने उस असुर की गर्दन काट दी। असुर का शरीर सिर और धड़ अलग-अलग हो गया। सिर वाला भाग राहू के नाम और धड़ वाला भाग केतु के नाम से उत्पन्न हो उठा। व्यास ने बताया कि दोनों ही ग्रह छाया ग्रह है। आकाश में यह दोनों ही ग्रह नहीं दिखते हैं, लेकिन अगर किसी की कुंडली में बैठ गए तो तांडव मचा देते हैं।


सूर्य और चंद्र ग्रहण का कारण भी है, राहु और केतु
सूर्य और चंद्र ग्रहण का कारण भी राहु और केतु ही हैं। जब राहु या केतू सूर्य के निकट होता है तो वह सूर्य को ग्रहण लगा देता है। वहीं अगर राहू या केतु चंद्र के निकट आता है तो चंद्र को ग्रहण लगा देता है। अंधकार ग्रह कहे जाने वाले दोनों ही छाया ग्रह जिस जातक की कुंडली में बैठ जाते हैं तो उसके आस-पास के ग्रहों को प्रभावित कर देते हैं।

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पं आनंद शंकर व्यास ने बताया किसी-किसी की कुंडली में चतुर्थ भाव में अगर राहू विराजित होता है तो उसे धनवान भी बना देता है, लेकिन अगर किसी कुंडली के मस्तिष्क में विराजित हो जाता है तो बुद्धिहीन भी कर देता है, केतु अगर कुंडली में शरीर स्थान पर होता है तो पथरी जैसे रोगों को उत्पन्न करता है। दूसरी ओर अगर केतु-राहू के साथ मिलकर कुंडली में बैठ जाता है, तो बुद्धि से लिए जाने वाले निर्णय को कमजोर कर देता है। राहू और केतु दोनों अंधकार ग्रह हैं यह आकाश में भी नहीं दिखते। इन्हें छाया ग्रह भी कहा जाता है।

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