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सतना

परसमनिया को खोखला करने जिम्मेदारों ने एनजीटी को भी धोखे में रखा, शपथ पत्र के बाद भी जारी रहा अवैध खनन

खनन कारोबारियों के साथ खड़े रहे अफसरतत्कालीन वन संरक्षक ने आपत्ति जाहिर करते हुए कलेक्टर को लिखा था पत्र

सतनाJan 23, 2020 / 01:05 am

Ramashankar Sharma

NGT was also cheated to hollow out Parasmania

NGT was also cheated to hollow out Parasmania

सतना. परसमनिया को खोखला करने में भूमिका निभाने वालों ने एनजीटी को भी धोखे में रखा। यही कारण रहा कि एनजीटी को दिए गए हलफनामा के बाद भी यहां खनन जारी रहा। दरअसल, वैध की आड़ में व्यापक पैमाने पर हो रहे अवैध खनन को रोकने के लिए तत्कालीन कलेक्टर सुखबीर सिंह और केके खरे ने सख्त रुख दिखाया था। दोनों अधिकारियों ने न केवल यहां के खनन माफिया के हौसले को पस्त किया था बल्कि उन्हें सलाखों के पीछे भी भिजवाया था। साथ ही परसमनिया को खनन मुक्त क्षेत्र तक घोषित कर दिया था। लेकिन उनके जाने के बाद से एक बार फिर से सत्ता और प्रशासन के गलियारे खनन कारोबारियों के लिए खुलने लगे। 2014 में ग्रीन ट्रिब्यूनल में चल रहे एक मामले में वन विभाग की ओर से बकायदे शपथ पत्र भी एनजीटी को दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि परसमनिया पठार में कोई खदान नहीं चल रही है लेकिन इसके बाद भी यहां खनन की अनुमतियां जारी की गईं। मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन वन संरक्षक ने इस मामले से तत्कालीन कलेक्टर को अवगत कराया और स्वीकृत खदानों को बंद रखने का आदेश जारी करने अनुरोध किया पर इस पत्र को रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया। ऐसे में स्पष्ट है कि जिले में खनन कारोबारियों के लिए एनजीटी को भी धोखे में रखा गया है।
कलेक्टर ने वन विभाग की आपत्ति को किया दरकिनार

वन परिक्षेत्र उचेहरा एवं नागौद अंतर्गत परसमनिया पठार की राजस्व भूमि में वन क्षेत्र के समीप संचालित खदानों के संबंध में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल सेक्टर जोन भोपाल में दो प्रकरण 2014 में लगाए गए थे। प्रकरण क्रमांक ओए न. 35/2014 एवं 45/2014 था। प्रकरण में वन विभाग ने शपथ पत्र दिया था कि परसमनिया पठार में कोई खदान नहीं चल रही। यह भी कहा गया था कि लीगल उत्खनन करने वाले के विरुद्ध भी कार्रवाई की जा रही है। एनजीटी को दिए गए शपथ पत्र का हवाला देते हुए तत्कालीन वन संरक्षक एवं पदेन वन मंडलाधिकारी वन मंडल सतना ने 17/08/16 को कलेक्टर को आधिकारिक पत्र लिखते हुए एनजीटी के अंतिम आदेश होने तक स्वीकृत खदानों को बंद रखने का आदेश जारी करने कहा था लेकिन तत्कालीन कलेक्टर ने मामले में सरकारी दांव-पेंच अपनाते हुए वन विभाग के इस पत्र को दरकिनार कर दिया और खनन कारोबारियों के पक्ष में खड़े रहे। नतीजा, आज इन्हीं खनन कारोबारियों की लीज की आड़ में पूरा परसमनिया अवैध खदानों का गढ़ बन गया है।
वन विभाग भी कम नहीं
इस खेल में वन विभाग भी कम नहीं रहा। वन विभाग के अधिकारी कार्यालय में बैठकर पत्र-पत्र खेलते रहे लेकिन जमीनी स्तर पर कोई काम नहीं किया। जब तत्कालीन जिला प्रशासन ने पूरे परसमनिया को खनन निषिद्ध क्षेत्र घोषित कर दिया तो वन विभाग को भी चाहिए था कि वह अपने विभाग से इस दिशा में गजट नोटिफिकेशन जारी करवा दे। वन विभाग कभी टाइगर तो कभी जल क्षेत्र घोषित होने का दावा करता रहा पर इस दिशा में कोई आधिकारिक कार्रवाई और आदेश तैयार नहीं किया। इसका फायदा खनन कारोबारी उठाते रहे।
अब मैदानी अमले की मिलीभगत

तत्कालीन वन परिक्षेत्राधिकारी मुनिराज पटेल के बाद से वन विभाग में जितने भी समकक्ष अधिकारी आए वे जंगल के रखवाले नहीं बन सके। उनके राज में वन क्षेत्र में खनन माफिया से गठजोड़ का खेल शुरू हुआ जो आज तक जारी है। हालात यह हैं कि वन क्षेत्र में लगातार खनन होता रहता है, वन अधिकारियों को नजर नहीं आता।यहां वन क्षेत्र में हजारों की तादाद में पेड़ काट कर समतल भूमि बनाई जा रही है और वन अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हैं । कुछ मामले तो ऐसे आए हैं जिसमें खुद वन अधिकारी ही इसमें सहयोगी बने हैं। बड़गड़ी क्षेत्र में इसके प्रमाणिक साक्ष्य भी सामने आए हैं। सवाल यह है कि जब वन क्षेत्र में खनन होता है तो वन महकमे के मैदानी अमले को क्यों नहीं दिखता? जब मामला मीडिया में छपता है तो वे जाते हैं और खानापूर्ति की कार्रवाई कर आ जाते हैं। ठीक वैसी ही स्थितियां हैं जैसी 2010 से 2011 तक रही। तब रीवा से संभागीय बल बुलाकर कार्रवाई करानी पड़ी थी। आज के हालात में डीएफओ जैसे अफसर भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं करवा पा रहे हैं।
इधर, ईटीपी फर्जीवाड़े को कलेक्टर ने लिया संज्ञान
पत्रिका लगातार का लोगो ईपीएस के साथ
उधर, उचेहरा के भंडारण लाइसेंसधारी शुभम ट्रेडर्स के संचालक करुणा देवी गुरु ने जिस तरीके से फर्जीवाड़ा करते हुए सतना से गाजीपुर की दूरी 10 हजार किलोमीटर दिखाकर 28 दिन की ईटीपी वैधता हासिल की थी, उसे कलेक्टर ने संज्ञान में लिया है। पत्रिका में किए गए खुलासे पर कलेक्टर सतेन्द्र सिंह ने माना कि मामला गंभीर है और इसे जिला खनिज अधिकारी को देने के साथ ही राज्य शासन तक मामले को भेजने की बात कही है। हालांकि अभी तक मामले में खनिज विभाग के तय मापदण्डों के तहत संबंधित लाइसेंस धारक को कोई नोटिस जारी नहीं हो सका है और न ही संबंधित के भंडारण स्थल की कोई जांच किए जाने की जानकारी सामने आई है। खनिज अधिकारी दीपमाला तिवारी ने खुद को जिले से बाहर होने की जानकारी देते हुए लौट कर प्रकरण देखने की बात कही। हालांकि यह ईटीपी फर्जीवाड़े का पहला मामला नहीं। इसी तरह का फर्जीवाड़ा नागौद में भी हुआ था, जब पुरानी ईटीपी को खनिज अमले ने मान्य करते हुए एसडीएम द्वारा पकड़े गए ट्रक को छोड़ दिया था। इससे साबित हो रहा कि यहां वैधता की आड़ में बड़ा खेल हो रहा है।
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