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आचार संहिता का डंडा ऐसा चले कि कोई उफ न कर सके, तिलमिलाए भी तो दिखा न पाए

जबलपुर शहर में प्रशासन-पुलिस पर लगते रहे हैं पक्षपात के आरोप

जबलपुरMar 11, 2019 / 09:16 pm

shyam bihari

Lok Sabha Election 2019

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जबलपुर। चुनाव आचार संहिता लगते ही शहरभर में नेताओं, राजनीतिक दलों के पोस्टर, बैनर-पोस्टर पर प्रशासन और पुलिस की टीम मानो चीते की रफ्तार से टूट पड़ी है। पहले दिन का नजारा देखकर, तो यही लगा कि प्रशासन और पुलिस की टीम बिजली की रफ्तार से सफाई अभियान चलाएगी। सरकारी योजनाओं से सम्बंधित होर्डिंग भी हटाए जा रहे हैं। दीवारों को पोता भी जा रहा है। निगम का अमला पेंटर्स के साथ घूम रहा है। दीवारों पर लिखे राजनीतिक संदेश व सरकारी योजनाओं के विज्ञापनों पर काला रंग पोता जा रहा है। सभी प्रशासनिक अधिकारी मैदानेजंग में आ गए हैं। यह तो होना ही था। इस बार हो रहा है। पहले भी होता था। लेकिन, हमेशा से एक बात कॉमन रहती है कि प्रशासन सम्पत्ति विरूपण के मामले में पक्षपात करता है। यह आरोप किसी भी हालत में लगना नहीं चाहिए। लोकतंत्र का मतलब तभी सार्थक है, जब किसी के अधिकारों का हनन न हो। किसी की मनमर्जी भी न चले। दोनों पक्ष खुश रहें। मुगालते में भी रहें। खुशफहमी भी सबकी बने रहे। ईमानदारी भी झलके।
पुलिस के पास भी कुछ नया करने का समय है। वह संक्रमण काल के दौर से फिलहाल बाहर है। नेताओं के फोन उनके पास आएंगे नहीं। आम जनता भीड़तंत्र का फायदा उठा नहीं पाएगी। लेकिन, गलत होने का पूरा मौका भी ऐसे ही मौको ंपर बनता है। पुलिस पर तो पहले से ही निरंकुश होने का आरोप लगता रहता है। अब यह भी आरोप लगने लगे हैं कि आचार संहिता के समय ज्यादा अधिकार मिलते ही उनके हाथ की खुजली अचानक से बढ़ जाती है। कानून के हाथ लम्बे तो होते ही हैं। चुनाव के समय कठोर भी ज्यादा हो जाते हैं। इसलिए पुलिस के लिए यह परीक्षा की घड़ी है। इसमें पास या फेल होना जनता से जुड़ा है। यह भी ध्यान रखना होगा कि इस परीक्षा की कॉपी आखिर में नेताओं को ही जांचनी होती है। जीतने के बाद सिकंदर बनने वाले ही तय करते हैं कि आखिर किसने उनके साथ पक्षपात किया था? जनता तो चुनाव तक ही सिंकदर है। वह अभी के माहौल में थोड़े समय के लिए पुलिस-प्रशासन के सामने अधिकार भाव से आती है। चुनाव बाद शायद दीन-हीन हालत में आना उसकी मजबूरी हो जाती है।

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