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बचपन में ही उठ गया था रेवती के सिर से माता-पिता का साया
रेवती वीरामनी जब 7 वर्ष की थी तो उनके माता-पिता चल बसे थे। तमिलनाडु में जन्मीं रेवती और उनकी बहन को उनकी नानी ने ही पाल पोष कर बड़ा किया है। उन्होंने मजदूरी करके इन दोनों लड़कियों को पाला है।
कभी जूते खरीदने के नहीं थे पैसे
गरीबी का आलम यह था कि कभी रेवती के पास प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए जूते खरीदने तक के पैसे नहीं थे। कई बार वो नंगे पैर ही दौड़ी हैं। जब उनके कोच कानन ने उनका ये टैलेंट देखा तो वो हैरान रह गए और उनकी मदद के लिए आगे आए। उन्होंने रेवती को जूते दिलवाने से लेकर स्कूल की फीस जमा कराने तक मदद की।
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नानी को सुनने पड़ते थे ताने
रेवती को दौड़ने भेजने के लिए रेवती की नानी को समाज से काफी ताने सुनने पड़ते थे। लेकिन उन्होंने किसी की भी प्रवाह नहीं की और रेवती को दौड़ में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। रेवती के दोस्तों ने भी उनकी काफी आर्थिक मदद की।
संघर्ष के बाद मिली सरकारी नौकरी
कई वर्षों तक संघर्ष करने के बाद रेवती को दक्षिणी रेवले में सरकारी नौकरी मिल गई। रेवती ने 400 मीटर की दौड़ 53.55 सेकेंड में पूरी की। और वो चार गुणा 400 मीटर मिश्रित रिले टोक्यो ओलंपिक के लिए सेलेक्ट हो गई। 23 वर्षीय रेवती ट्रायल देने आई महिला धावकों में से सबसे तेज दौड़ रही थी।