इसके पूरी तरह सफल रहने से उत्साहित पंवार बताते हैं कि खर्चा तो कम रहा ही है, गुणवत्ता भी इक्कीस है। उन्होंने बताया कि मटके की विधि में पॉलीथिन थैली की जरूरत नहीं पड़ती, मटके का बाद में फिर इस्तेमाल किया जा सकता है।
इसके साथ ही खर्चे में लगभग 25 प्रतिशत की बचत रही है, उत्पादन भी इतना ही अधिक रहा है। मशरूम प्रोजेक्ट के प्रभारी डॉ. एसके बैरवा के निर्देशन में ये नवाचार किया गया, इसमें कृषि विश्वविद्यालय के निदेशक डॉ. एसएल गोदारा और केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. उम्मेदसिंह शेखावत और डॉ. सुरेंद्रसिंह का सहयोग रहा।