कस्बे में मूर्ति बनाने का व्यवसाय लंबे समय से चला आ रहा हॆ। यहां करीब 200 मूर्तिकला घर है, जिसमें करीब 90 से अधिक दुकानें है। जिले में सफेद मार्बल की उपलब्धता के चलते तीन दशक से मूर्ति का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। इससे मूर्तिकारों के पुस्तैनी कार्य को गति मिली है। बड़ौदामेव निवासी मूर्तिकार मोनू शर्मा का कहना है कि सफेद
पत्थर की बेजोड़ कला प्रदर्शनी अकबरपुर, माधोगढ़, बडौदामेव, गोलाकाबास आदि में देखी जा सकती है। यहां फलता फूलता हस्तशिल्प कला की हर कोई प्रशंसा करता है। मूर्ति उद्योग से जिले में हजारों लोगों को आजीविका कमाने का सुअवसर मिल रहा है।
टहला के मार्बल का उपयोग जिले मेें सरिस्का टाइगर रिजर्व के पास टहला मार्बल जोन में झिरी, गोवर्धनपुरा, प्रतापगढ, खोह, आंधी के मार्बल का उपयोग प्रतिमा बनाने में किया जाता है। यहां से मार्बल आने में कम खर्च और कम समय लगता है। इस कारण मूर्तिकार अन्य स्थानों के बजाय टहला जोन के मार्बल की मूर्तियां बनाते हैं।
मार्बल की गुणवत्ता बेहतर यहां का मार्बल गुणवत्ता में किसी से कम नहीं। यही कारण है कि मार्बल की बनी प्रतिमाओं की देश भर में भारी मांग रहती है। सफेद मार्बल प्रतिमा बनाने के लिए उपयुक्त व खरा माना जाता है। खास बात यह कि यह मार्बल मकराना के मार्बल से सस्ता और टिकाऊ है।
1975 से चल रहा कारोबार बड़ौदामेव में मूर्ति का कारोबार 1975 में शुरू हुआ। यहां सैकड़ों दुकानदार मूर्ति कलां से जुड़े हुए है। लोगों को स्वरोजगार दे रहे है। यहां के शिल्पी काले व सफेद पत्थर पर नक्काशी का हुनर संजोए हुए है। देव प्रतिमाओं की अत्यधिक मांग के चलते करीब 200 परिवारों का गुजर बसर हो पा रहा है।
मूर्तिकारों की समस्याएं भी कम नहीं मूर्तिकारों का कहना है कि कई बार ऐसा मौका आता है कि मूर्तिकारों को तीन -तीन माह तक आर्थिक तंगी से गुजारना पड़ता हैं। मूर्ति बनने के बाद कब बिकेगी। इसका कोई पता नहीं होता है। मूर्ति बिकने के पास ही पैसा हाथ में आता है। इस कला को बचाना मुश्किल हो रहा है। मूर्तिकार बड़ौदामेव के भूपेश मिश्र बताते हैं कि पुश्तैनी कार्य के दक्ष रहे पिताजी के साथ मूर्ति तरासने की कला को देखकर सीखा। उनके बाद इस कार्य को परिवार अनवरत करता आ रहा है।
व्यवसाय में समस्याएं मार्बल की खानें बंद होने से पत्थर नहीं मिल पाता है। उचित जगह और बिजली पूरी नहीं मिलती है। मूर्तिकारों के स्वास्थ्य के लिए कोई सुविधा नहीं है। जिला ग्राम उद्योग की तरफ से कोई सहायता नहीं मिलती है।
यह रही विशेषताएं – बड़ौदामेव में मूर्ति का कारोबार 1975 में हुआ शुरू। – चार इंच से 51 फीट तक की मूर्तियां करते हैं तैयार। – कस्बे में मूर्ति बनाने का व्यवसाय चला आ रहा हॆ लंबे समय से
– करीब 200 परिवारों का हो रहा गुजर-बसर। – करीब 90 से अधिक दुकानें है। – सफेद मार्बल की उपलब्धता से तीन दशक से मूर्ति का कारोबार बढ़ रहा है तेजी से
– मूर्ति उद्योग से हजारों लोगों को आजीविका कमाने का मिल रहा सुअवसर