दो साल पहले जुलाई 2022 में PM मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में MP के भगोरिया मेले का जिक्र किया। पीएम ने भगोरिया मेले की खासियत बताते हुए कहा कि ये खूब प्रसिद्ध हैं। दरअसल भगोरिया मेले में आदिवासी संस्कृति की झलक दिखाई देती है। देशभर से आदिवासी इन मेलों के लिए होली पर अपने-अपने गांव पहुंच जाते हैं।
कहते हैं कि भगोरिया मेले की शुरुआत राजा भोज के समय में हुई है। भील राजा, कासूमरा और बालून ने अपनी राजधानी में पहली बार ये आयोजन किए और तब से अब तक ये मेले पूरे उत्साह से मनाए जा रहे हैं।
प्रदेश के पश्चिम निमाड़ अलीराजपुर, झाबुआ के आदिवासी इलाकों में ये मेले लगते हैं। भील-भिलाला आदिवासी भगोरिया मेले में अपने पारंपरिक वेशभूषा में पहुंचते हैं। हालांकि अब आधुनिकता का रंग भी दिखने लगा है। होली के एक सप्ताह पहले से ही इन मेलों में धूमधाम चालू हो जाती है।
भगोरिया मेले में आदिवासी बांसुरी, मांदल, ढोल बजाते हैं। युवक-युवतियां पारंपरिक नृत्य करते हैं। लोग टैटू भी गुदवाते हैं। युवतियां ठोड़ी के नीचे तीन बिंदी बनवाती हैं और युवक अपने हाथ पर नाम गुदवाते हैं। भगोरिया हाट में खान-पान से लेकर झूलों का भी आदिवासी खूब लुत्फ उठाते हैं।
पान खाकर रिश्ते होते हैं तय
यहां युवक-युवती के रिश्ते भी तय होते हैं। युवक-युवती अपने प्रेम का इजहार पान और गुलाल लगा कर करते हैं। यदि युवक युवती को पान दे और युवती उसे खा लेती है तो उसकी हां मानी जाती है। एक दूसरे को गुलाल लगाने पर भी प्यार की हां मानी जाती है।