ऐसे हुई मजदूर दिवस की शुरुआत
इतिहास के पन्नों पर नजर डालें तो 136 साल पहले अमरीका के शिकागो में श्रमिकों का एक प्रदर्शन उग्र हो गया। प्रदर्शनकारियों ने 4 मई को पुलिस को निशाना बनाकर बम फेंका। पुलिस की जवाबी फायरिंग में 4 मजदूरों की मौत हो गई थी और करीब 100 मजदूर घायल हो गए। आंदोलन चलता रहा। 1889 में जब पेरिस में इंटरनेशनल सोशलिस्ट कॉन्फ्रेंस हुई तो एक मई को इसे मजदूरों को समर्पित करने का फैसला किया। धीरे-धीरे पूरी दुनिया में एक मई को मजदूर दिवस या कामगार दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हुई। आज अगर कर्मचारियों के लिए दिन में काम के अधिकतम 8 घंटे तय हैं तो वह शिकागो की आंदोलन की ही देन है। हफ्ते में एक दिन छुट्टी की शुरुआत भी इसके बाद ही हुई। दुनिया के कई देशों में एक मई को राष्ट्रीय अवकाश के तौर पर मनाया जाता है। शायद वीआईपी बन आया था तो दर्शन नहीं हुए, इस बार साष्टांग कर आए हैं- प्रज्ञानंद सरस्वती भीम में 32 वर्ष पूर्व हुई थी मज़दूर-किसान शक्ति संगठन की स्थापना
भीम विधानसभा क्षेत्र में लगभग 32 साल पहले 1 मई, 1990 को राजस्थान के कई मजदूर और किसान पाटिया का चौड़ा पर एकत्रित हुए। इसी दिन मज़दूर किसान-शक्ति संगठन की औपचारिक स्थापना हुई। राजस्थान के इस मगरा क्षेत्र में रहने वाले मजदूरों के लिए तभी से इस दिन का खास महत्व है। ये सभी हर वर्ष अपनी एकजुटता दिखाने के लिए यहां एकत्रित होते हैं और शपथ लेते हैं कि आम आदमी के हितों से जुड़े मुद्दों पर मिलकर संघर्ष करेंगे।
देश के निर्माण में मजदूरों का अनथक योगदान
किसी भी देश, समाज, संस्था में मजदूरों तथा कर्मचारियों की भूमिका को अहम माना जाता है। मजदूरों की मेहनत से दुनिया के हर देश ने हर क्षेत्र में विकास किया है। एमकेएसएस से जुड़े कार्यकर्ता बताते हैं कि चाहे आजादी के कई वर्षों के बाद आज के दिन अलग-अलग समय की हुकूमतों के नेताओं ने यह दावे किए कि मजदूर के हितों की रखवाली की जाएगी और उन्होंने बड़े स्तर पर काम किया है या किया जा रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि मजदूर की अभी भी तकदीर ज्यादा बदली नहीं है।