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सुकमा

इस नक्सल प्रभावित जिले में मुर्गे बढ़ा रहे आदिवासियों की आय, जानिए ऐसे

पशुधन विकास विभाग ने तोंगपाल के हमीरगढ़ पंचायत में वितरण कार्यक्रम किया आयोजित, इस दौरान दौरान सोशल डिस्टेंसिंग और हैंडवॉश का रखा गया विशेष ख्याल

सुकमाApr 30, 2020 / 10:57 am

Badal Dewangan

इस नक्सल प्रभावित जिले में मुर्गे बढ़ा रहे आदिवासियों की आय, जानिए ऐसे

इस नक्सल प्रभावित जिले में मुर्गे बढ़ा रहे आदिवासियों की आय, जानिए ऐसे

जगदलपुर। सुकमा जिले के पशुधन विकास विभाग की तरफ से बुधवार को तोंगपाल के हमीरगढ़ पंचायत में कुक्कुट पालन योजना के तहत चुजे वितरण का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में अलग-अलग स्व. सहायता समूहों से जुड़े हितग्राही को ४५ चुजे दिए गए। सुकमा जिले में व्यापक पैमाने पर आदिवासी परिवार अपनी आय में इजाफा करने के लिए कुक्कुट पालन में लगे हुए हैं। पशु चिकित्सा सेवाएं जिला सुकमा के उपसंचालक डॉ. एस जहीरुद्दीन ने बताया कि ग्रामीणों को कुक्कुट पालन से अतिरिक्त आय के साथ ही बुरे वक्त में विक्रय कर धन की उपलब्धत होने की निश्चितत रहती है। इनके पालन से पारिवारिक स्वास्थ्य और पोषण का लाभ मिलता है। मुर्गा लड़ाई में भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। डॉ. जहीरुद्दीन ने बताया कि सुकमा जिले में करीब ७५ प्रतिशत परिवार द्वारा मुर्गी पालन का व्यवसाय किया जाता है। मुर्गी पालन का मुख्य उद्देश्य मांस अथवा लड़ाई के लिए मुर्गा प्राप्त करना होता है। अगर उन्नत नस्ल की मुर्गियों के द्वारा पालन किया जा तो स्वभाविक ही रोजगार के रूप में आशातित सफलता मिल सकेगी। जिले के ग्रामीणों में मुर्गी पालन को लेकर रुचि है। अगर छत्तीसगढ़ शासन बैकयार्ड कुक्कुट पालन योजना शुरू करती है तो काफी सफलता मिल सकती है।

20 प्रतिशत अंडा और 40 फीसद मांस की प्राप्ति
डॉ. जहीरुद्दीन ने आगे बताया कि सुकमा जिले में ग्रामीण परिवेश में पारंपरिक पद्वित से कुक्कुट पालन किया जाता है। आदिवासी समुदाय की संस्कृति और जीवनशैली पर मुर्गियों का विशिष्ट स्थान होता है। आमतौर पर प्रत्येक आदिवासी परिवार में ५ से १० मुर्गियों का पालन किया जाता है, जो वर्ष में तीन बार अंडे देती है। इस तरह देखें तो प्रत्येक बार १०-१२ अंडे देने पर वर्ष में इनका औसत उत्पादन कुल ३०-३५ अंडों का माना जाता है। इस उत्पादन का १० से १५ प्रतिशत हिस्सा सेवन करने के लिए उपयोग में लाया जाता है, तथा ८५ से ९० प्रतिशत चुजे उत्पन्न कर उन्हें मांस के लिए पाला जाता है। देशी मुर्गी का वृद्वि दर बेहद धीमी होती है, लेकिन देशी मुर्गियों की संख्या अधिक होने के कारण २० प्रतिशत अंडा उत्पादन और ४० प्रतिशत मांस के रूप में प्राप्ति होती है। इस तरह से देखने पर यह अनुमान लगता है कि अप्रत्यक्ष रूप से यह आदिवासी गरीब परिवारों के लिए नियमित आय का प्रमुख स्त्रोत है।

हमीरगढ़ के अलावा जैमेर में भी चुजे बांटे गए
हमीरगढ़ पंचायत के अलावा जैमेर पंचायत में भी चुजों का वितरण किया गया। पशु चिकित्सालय तोंगपाल के अंतर्गत हमीरगढ़ सरपंच श्रीमती सुबरी, उप सरपंच श्रीमती हांदे, जनपद सदस्य वेको हांदा, जिला पंचायत सदस्य बालमती ठाकुर, वार्ड पंच बामन, सुनीता नाग, उप संचालक पशु चिकित्सा सेवाएं डाम्ॅ. एस जहीरुद्दीन, सहायक पशु चिकिम्त्सा अधिकारी एनके कोर्राम समेत जागृति स्व सहायता समूह, संतोषी स्व. सहायता समूह, चांदनी समूह, जुड़ंगा झोपा समूह के पदाधिकारी व सदस्य मौजूद थे। इसी प्रकार जैमेर में हिरमा कवासी, उप सरपंच मीना नाग, जोगा कवासी, जोगा नाग आदि मौजूद थे।

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