20 प्रतिशत अंडा और 40 फीसद मांस की प्राप्ति
डॉ. जहीरुद्दीन ने आगे बताया कि सुकमा जिले में ग्रामीण परिवेश में पारंपरिक पद्वित से कुक्कुट पालन किया जाता है। आदिवासी समुदाय की संस्कृति और जीवनशैली पर मुर्गियों का विशिष्ट स्थान होता है। आमतौर पर प्रत्येक आदिवासी परिवार में ५ से १० मुर्गियों का पालन किया जाता है, जो वर्ष में तीन बार अंडे देती है। इस तरह देखें तो प्रत्येक बार १०-१२ अंडे देने पर वर्ष में इनका औसत उत्पादन कुल ३०-३५ अंडों का माना जाता है। इस उत्पादन का १० से १५ प्रतिशत हिस्सा सेवन करने के लिए उपयोग में लाया जाता है, तथा ८५ से ९० प्रतिशत चुजे उत्पन्न कर उन्हें मांस के लिए पाला जाता है। देशी मुर्गी का वृद्वि दर बेहद धीमी होती है, लेकिन देशी मुर्गियों की संख्या अधिक होने के कारण २० प्रतिशत अंडा उत्पादन और ४० प्रतिशत मांस के रूप में प्राप्ति होती है। इस तरह से देखने पर यह अनुमान लगता है कि अप्रत्यक्ष रूप से यह आदिवासी गरीब परिवारों के लिए नियमित आय का प्रमुख स्त्रोत है।
हमीरगढ़ के अलावा जैमेर में भी चुजे बांटे गए
हमीरगढ़ पंचायत के अलावा जैमेर पंचायत में भी चुजों का वितरण किया गया। पशु चिकित्सालय तोंगपाल के अंतर्गत हमीरगढ़ सरपंच श्रीमती सुबरी, उप सरपंच श्रीमती हांदे, जनपद सदस्य वेको हांदा, जिला पंचायत सदस्य बालमती ठाकुर, वार्ड पंच बामन, सुनीता नाग, उप संचालक पशु चिकित्सा सेवाएं डाम्ॅ. एस जहीरुद्दीन, सहायक पशु चिकिम्त्सा अधिकारी एनके कोर्राम समेत जागृति स्व सहायता समूह, संतोषी स्व. सहायता समूह, चांदनी समूह, जुड़ंगा झोपा समूह के पदाधिकारी व सदस्य मौजूद थे। इसी प्रकार जैमेर में हिरमा कवासी, उप सरपंच मीना नाग, जोगा कवासी, जोगा नाग आदि मौजूद थे।