-यह पूरी तरह से गलत भारतीय मछुआरे के प्रति चिंतित रहने वाले मुंबई के सामाजिक कार्यकर्ता जतिन देसाई व समुद्र श्रमिक सुरक्षा संघ के प्रमुख बालुभाई सोया समेत अन्य पाकिस्तान सरकार की इस तरह की कार्यवाही को पूरी तरह से गलत मानते हैं। वे बताते हैं कि मृतदेह के प्रति पूरा सम्मान किया जाना मानवीयता का पहलू है, लेकिन पाकिस्तान सरकार इसका कोई ध्यान नहीं रखती। दरअसल होना तो यह चाहिए कि कराची में किसी भी भारतीय मछुआरे की मृत्यु के 5-7 दिन बाद उसकी मृतदेह उसके पैतृक गांव परिजनों के पास पहुंच जानी चाहिए मगर ऐसा नहीं होता और जब भी किसी मछुआरे की मृत्यु वहां होती है तो उसका शव भारत पहुंचते-पहुंचते ही महीने से ज्यादा वक्त बीत जाता है।
-यूं होती है शव लाने की पूरी प्रक्रिया पाकिस्तान में कैद भारतीय मछुआरे की मृत्यु होने की जानकारी वहां का स्थानीय प्रशासन इस्लामाबाद स्थित भारतीय दूतावास में देता है और भारतीय दूतावास नई दिल्ली स्थित विदेश मंत्रालय को इसके बारे में बताता है। इस दौरान दोनों देशों की तरफ से मृतक संबंधी कागजी कार्रवाई भी की जाती है। बाद में विदेश मंत्रालय से गुजरात मत्स्य विभाग को जानकारी मिलती है और बताया जाता है कि मृतदेह कराची से हवाई मार्ग अथवा सड़क मार्ग के जरिए पहले लाहोर और बाद में अटारी बॉर्डर लाई जाएगी। शव के पहुंचने के दिन के मुताबिक गुजरात मत्स्य विभाग की टीम मृतक के पैतृक गांव में परिजनों से आवश्यक कार्यवाही पूरी कर वाघा बॉर्डर पहुंच जाती है और बाद में हवाई अथवा सड़क मार्ग से पहले अहमदाबाद और बाद में पैतृक गांव मृतदेह ले जाती है।
-चार दिन से टीम वहां मौजूद सभी तरह की कागजी कार्यवाही पूरी कर गुजरात मत्स्य विभाग की टीम शुक्रवार को ही अमृतसर पहुंच गई थी। चार दिन से टीम वाघा बॉर्डर पर मौजूद है, लेकिन मंगलवार तक भारतीय मछुआरे जैन्ती का शव वहां नहीं पहुंचा बताया है।
-नयन मकवाणा, असिस्टेंट सुप्रिटेंडेंट फिशरीज, वेरावळ