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सूरत

गांव जाने की चाहत में सड़क पर उतरे लोग

हर जगह से भगाए गए, कई को पड़े डंडेप्रवासी मजदूरों की व्यथा
Many people were banished from everywhereMigrant laborers

सूरतMay 05, 2020 / 12:19 am

Sunil Mishra

गांव जाने की चाहत में सड़क पर उतरे लोग

Migrant laborers

वापी. लॉकडाउन के कारण घरों पर बैठे लोगों का सब्र अब जवाब देने लगा है। जिसकी एक झलक सोमवार को वापी के छीरी समेत कई जगहों पर दिखी। कई दिनों की बेरोजगारी और प्रशासनिक सूचनाओं के बावजूद कंपनियों की ओर से वेतन न मिलने से परेशान श्रमिक किसी भी हाल में गांव जाना चाहते हैं, लेकिन उन्हें कहीं से मार्गदर्शन या मदद मिलती नहीं दिख रही है।
बीते कुछ दिनों से गांव जाने के लिए लोगों को पास बनाए जाने का पता चलने पर सुबह में छीरी पुलिस चौकी पर जमा हो गए थे। यहां पुलिस ने लोगों को कहा कि इस संबंध में यहां से कोई प्रक्रिया नहीं होगी। इसके लिए प्रक्रिया कहां से होगी यह जानने की कोशिश में यहां भीड़ बढ़ गई। लोगों ने कहा कि उन्हें गांव जाने की अनुमति मिलनी चाहिए। भीड़ बढ़ती देखकर ज्यादा पुलिस बल मंगवा लिया गया और डंडे भांजकर भीड़ को तितर बितर कर दिया। इस दौरान लोगों में आक्रोश हो गया था। इसके चलते भीड़ कुछ देर के लिए सड़क पर बैठ गई, लेकिन पुलिस ने कुछ समझाइश और कुछ सख्ती से लोगों को खदेड़ दिया। कई लोगों को पकड़कर पुलिस ने डंडे भी बरसाए। पुलिस के खदेड़े जाने पर लोग तहसीलदार कार्यालय भी पहुंचे, लेकिन यहां से भी उन्हें कोई संतोषप्रद जवाब नहींं मिला। टाउन थाने भी यही हाल रहा। यहां भी काफी लोग जमा हुए थे। बाद में थाने के बाहर पुलिस ने गांव जाने की मंजूरी के लिए ऑनलाइन आवेदन करने से लेकर की जाने वाली प्रक्रिया की जानकारी की सूचना चस्पा की। बहुत से लोग तो वलसाड भी पहुंच गए थे। लेकिन हर तरफ से उन्हें निराशा ही हाथ लगी।
https://www.patrika.com/ahmedabad-news/lockdown-indian-railway-labours-covid19-ahmedabad-news-6058319/

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https://twitter.com/LangaMahesh/status/1257221283470643201?s=20

गांव जाने की चाहत में सड़क पर उतरे लोग
ऑनलाइन मंजूरी की नहीं जानकारी
ऑनलाइन मंजूरी लेने की चर्चा के दौरान लोगों ने बताया कि ज्यादातर श्रमिक इस प्रक्रिया से वाकिफ नहीं है। चाहकर भी वे इसे नहीं भर पा रहे हैं। लिहाजा वे सीधे सरकारी कार्यालय पर पहुंचकर अपना नाम समेत अन्य जानकारी दर्ज करवाकर मंजूरी प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं। लेकिन इनकी मदद के लिए न तो प्रशासन सामने आ रहा है और न इनके इलाके के प्रतिनिधि कुछ करना चाहते हैं। कुछ खास अवसरों पर श्रमिकों के अगुवा बनने का दावा करने वाले कतिपय संगठनों के प्रमुख लोग तो इन दिनों अज्ञातवास में हैं। यदि किसी ने फोन भी किया तो हाथ उपर कर दे रहे हैं।
नेताओं का पता नहीं
जिस दौर में लोगों को मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है, उस समय ही नेता से लेकर जनप्रतिनिधि गायब हैं। कई लोगों ने बताया कि सरपंचों से लेकर पार्षदों तक को इस संबंध में फोन करने पर किसी तरह की मदद का आश्वासन देने की बजाय उल्टे समझाने लगते हैं। जबकि उनकी परेशानी दूर करने के लिए कोई मदद की बात ही नहीं कर रहे। कई श्रमिकों ने तो यह आरोप लगाया कि कहीं ने कहीं औद्योगिक इकाई के संचालकों का दबाव भी है कि यदि मजदूरों को गांव जाने दिया गया तो जल्दी नहीं आएंगे और लॉकडाउन खत्म होने पर कंपनियों में उत्पादन पर असर पड़ेगा। लेकिन यहीं लोग यह नही समझ रहे हैं कि भूख और मानसिक तनाव से जिंदा बचेंगे तब तो काम करने लायक रहेंगे।
हर तरफ से भगाया
विरेन्द्र कुमार का कहना है कि मैं चित्रकूट स्थित अपने गांव जाना चाहता हूं। इसके लिए छीरी पुलिस थाने से लेकर टाउन और तहसीलदार कार्यालय तक गया। हर तरफ पुलिस ने डंडे लेकर दौड़ा लिया। समझ नहीं आ रहा है कि गांव कैसे पहुंचेंगे। यहां न काम है और भोजन। हमारी व्यथा समझने की जगह हमारे नेता से लेकर जनप्रतिनिधि और अधिकारी संवेदनहीनता का परिचय दे रहे हैं।

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