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recession; कैसे चले घर-बार?

locationसूरतPublished: Sep 15, 2019 09:25:57 pm

recession; मोदी का गुजरात भी अछूता नहीं, गाडिय़ों का किश्त भरना हुआ मुश्किल, मंदी ने तोड़ी ट्रांसपोर्ट उद्योग की कमर, आधा भी नहीं बचा कारोबार, 60 प्रतिशत तक की गिरावट

recession; कैसे चले घर-बार?

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राजेश यादव

वापी. मंदी की मार से मोदी का गुजरात भी अछूता नहीं रहा है। देशभर में मंदी के माहौल के बीच दक्षिण गुजरात से भी भयावह संकेत मिल रहे हैं। अन्य उद्योग धंधों के साथ ही यहां ट्रांसपोर्ट उद्योग भी नहीं बच पाया है। ट्रांसपोर्ट से जुड़े लोगों के अनुसार कारोबार आधा भी नहीं रह गया। अर्थव्यवस्था के पटरी से उतरने के साथ ही ट्रकों के पहिए भी सडक़ों से उतरने लगे हैं। ट्रांसपोर्टरों का कहना है कि सरकार ने समय रहते कोई पैकेज नहीं दिया तो ट्रांसपोर्ट उद्योग तबाह हो सकता है।
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वलसाड जिले, दमण और सिलवासा में हजारों औद्योगिक इकाइयों के कारण ट्रांसपोर्ट उद्योग भी खूब फला फूला। औद्योगिक क्षेत्र में आई मंदी का असर इस उद्योग पर भी पड़ा है। नोटबंदी, जीएसटी और भारी भरकम टैक्स की मार से पहले से हाल बेहाल ट्रांसपोर्ट उद्योग पर मंदी ने कोढ़ में खाज का काम किया है। कभी इस क्षेत्र से करीब साढ़े तीन हजार भारी वाहन माल-सामान लेकर आवागमन करते थे। अब यह संख्या आधी भी नहीं रही।
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जो गाडिय़ां माल भरकर दूसरे शहरों में जा रही हैं, वे माल भरकर कब लौटेंगी यह भी तय नहीं है। ट्रांसपोर्ट उद्योग की हालत यह है कि ट्रांसपोर्ट क्षेत्र से लेकर हाइवे और जीआईडीसी सेकन्ड फेज समेत विभिन्न विस्तार की सडक़ के दोनों ओर वाहनों की लंबी कतार है। रोजाना लोग इसी उम्मीद में रहते हैं कि कब किसी कंपनी का आर्डर आए और माल भरकर वे रवाना हों।
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समझ नहीं आ रहा क्या करें

बीते कुछ माह से हालत बद से बदतर होती जा रही है। जो गाडिय़ां वापी से गोवा महीने में चार से पांच चक्कर लगाती थी, डेढ़-दो माह से दो चक्कर भी मुश्किल से लग रहा है। एक गाड़ी मालिक और किश्त वाली गाड़ी मालिक की दयनीय हालत हो गई है। लोन पर ली गई गाडिय़ों की किश्त जैसे-तैसे भर पा रहे हैं। ज्यादातर की तो किश्त भी टूट गई है। पिछले साल जिन समस्याओं को लेकर ट्रांसपोर्टरों की हड़ताल हुई थी उसका समाधान भी नहीं हुआ और अब इस नई आफत ने रही-सही कमर तोड़ दी है।
रघुवीरसिंह ठाकुर , ट्रांसपोर्टर, वापी
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व्यवसाय ठप होने की कगार पर

बीते तीन चार माह से ट्रांसपोर्ट उद्योग की हालत ज्यादा खराब होती जा रही है। बीच में कई जगहों पर भारी बरसात ने भी समस्या खड़ी की। मांग में कमी से औद्योगिक क्षेत्र में आई मंदी में माल सामान का उत्पादन कम होने के कारण ट्रांसपोर्ट कारोबार में बहुत गिरावट आई है। इससे इस उद्योग से जुड़े लोग चिंतित हैं।
सत्यनारायण सैन, ट्रांसपोर्टर, वापी
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ट्रांसपोर्ट उद्योग बचाने के लिए सरकार करे पहल

तीन महीने से इस उद्योग की हालत खस्ता है। पुराने दिनों की अपेक्षा 40 प्रतिशत ही कारोबार रह गया है। दूसरी तरफ यातायात के नए नियमों में भारी जुर्माने का प्रावधान भी लोगों को डरा रहा है। अन्य सेक्टर के लिए राहत की घोषणा करने की तैयारी कर रही सरकार को ट्रांसपोर्ट उद्योग को बचाने के लिए भी किसी पैकेज पर विचार करना चाहिए। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से इस सेक्टर से लाखों लोगों की रोजी रोटी चलती है।
भरत ठक्कर, अध्यक्ष- वापी ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन
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मंदी की मार सभी पर पड़ रही भारी

मैनुफैक्चरिंग सेक्टर में आई मंदी का असर स्वाभाविक तौर पर ट्रांसपोर्ट उद्योग पर पड़ा है। मंदी की मार सभी पर है। दो दिन पहले ही बगवाड़ा टोलनाके से पता चला कि वहां से निकलने वाली गाडिय़ों की संख्या में 50 प्रतिशत की कमी आ गई है। इससे समझ सकते हैं कि ट्रांसपोर्ट उद्योग की समस्या कितनी गंभीर हो रही है। बीते दिनों राज्य के विभिन्न जिलों में हुई भारी बरसात और प्लास्टिक पर प्रतिबंध का असर भी व्यवसाय पर पड़ा है। जिस गाड़ी की किश्त चल रही है उसकी परेशानी बढ़ गई है। ऑटोमोबाइल, यार्न, स्टील और अन्य सेक्टर में मांग कम होने का असर सीधे-सीधे ट्रांसपोर्ट उद्योग पर पड़ा है।
अरविन्द शाह, पूर्व अध्यक्ष, वापी ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन।
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