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ये कैसी जननी शिशु सुरक्षा?

सआदत अस्पताल के जनाना वार्ड में भर्ती प्रसूताओं पर प्रबन्धन की उदासीनता भारी पड़ रही है। पलंग का अभाव

टोंकApr 19, 2016 / 11:26 pm

मुकेश शर्मा

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टोंक।सआदत अस्पताल के जनाना वार्ड में भर्ती प्रसूताओं पर प्रबन्धन की उदासीनता भारी पड़ रही है। पलंग का अभाव रोजाना नर्सेजकर्मियों व मरीजों केे बीच विवाद का कारण बनता जा रहा है। आलम यह है कि रात को आई प्रसूताएं सुबह अन्य की छुट्टी होने तक पलंग का इंतजार करने को मजबूर हैं। इस बारे में अस्पताल प्रबन्धन का कहना है कि कुछ देर बैंच पर लेटने के बाद उसे पलंग खाली होते ही उपलब्ध करा दिया जाता है। जिले के सबसे बड़े सआदत अस्पताल के जनाना वार्ड में पलंगों का अभाव प्रसूताओं को काफी खलता है। कई प्रसूताओं को पलंग के अभाव में नीचे या फिर बैंच पर लेटना पड़ रहा है। जबकि सरकार की ओर से जननी शिशु सुरक्षा को लेकर लाखों रुपए खर्च किए जा रहे हैं।



इसके बावजूद अस्पताल प्रबन्धन का इस ओर ध्यान नहीं है। जनाना वार्ड के सामान्य वार्ड में भर्ती मेहंदवास निवासी मधु ने बताया कि पलंग मांगा तो यह कहते हुए मना कर दिया कि जब खाली होगा तो ही तो मिल पाएगा। रामप्रसादी व संतोष को भी आठ घंटे बैंच पर बिताने के बाद पलंग नसीब हो सका।

समय पर मरम्मत नहीं


वार्ड में पलंगों की समय पर मरम्मत नहीं कराए जाने से भी समस्या में इजाफा हुआ है। प्रसव का भार अधिक होने से भी पलंगों की समस्या गहराई है। नर्सेजकर्मियों का कहना है कि प्रसव कराने के साथ ही परिजन उनसे पलंग की मांग करते हैं। ऐसे में पलंग खाली नहीं होने पर परिजन नर्सेजकर्मियों से उलझते रहते हैं।

माना था प्रसव का भार अधिक

गत दिनों छत्तीसगढ़ में नसबंदी के बाद प्रसूताओं की मौत व अन्य लापरवाही के मामले सामने आने के बाद गठित केन्द्र की विशेष टीम ने टोंक के जनाना अस्पताल का भी जायजा लिया था। टीम प्रभारी डॉ. शिखा ने माना था कि जिला अस्पताल में प्रसव का भार अधिक है। इसके लिए उन्होंने पलंग व चिकित्साकर्मी बढ़ाने की आवश्यकता जताई थी।

आउटडोर में
नहीं मिलते

आउटडोर समय सुबह 8 से दोपहर 12 का होने के बावजूद स्त्री रोग विशेषज्ञों की कुर्सियां खाली पड़ी रहती है। पूछने पर पता चलता है कि चिकित्सक वार्ड में गई हुई है। वार्ड से लौटते-लौटते उनके जाने का समय हो जाता है। ऐसे में अधिकतर महिला मरीज निराश होकर लौट रही हैं या फिर राशि खर्च कर चिकित्सक को घर पर दिखाने को मजबूर हैं।
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