इसके चलते खरबूजों के साथ-साथ तरबूज, खीरा, प्याज का उत्पादन भी घट चुका हैं। दरअसल पट्टी के लिए पानी की कमी के साथ-साथ उर्वरक शक्ति कम हो गई है। इसका उत्पादन घटने से फसल पर निर्भर करीब 3 हजार परिवारों को पिछले 20 वर्षों से 20 से 25 करोड़ रुपए का नुकसान उठाने को विवश होना पड़ा। कीर, कहार, धाकड़, माली, लोधा, धोबी, गुर्जर जाति के लोग इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। इनमें कीर जाति के लोग इस उद्योग से गहराई से जुड़े हुए हैं। फसल के मौसम में यह लोग 4-5 माह तक अपने घरों को छोड़कर नदी में रहते थे। लेकिन लगातार होती कम पैदावार के चलते इन लोगों का अब इस धंधे से मोह भंग होता नजर आ रहा हैं। वैसे तो खरबूजे की फसल का उत्पादन कम होने के पीछे अनेक कारण हैं।
लेकिन जब से जिले में बीसलपुर बांध का निर्माण हुआ हैं। तब से बनास नदी में होने वाली फसल पर सबसे अधिक असर पड़ा हैं। क्षेत्र का जल स्तर जमीन में 200 से 250 फीट तक नीचे चला गया हैं। फलस्वरूप जिले के छावनी, गहलोद, फूल बाग, मोती डूंगरी, सईदाबाद, सरवराबाद, कंकराज, खेड़ा, मेहन्दवास, नया गांव देवली क्षेत्र के राजमहल बोरड़ा, छातड़ी सहित सैकड़ों गांवों में आय का स्त्रोत्र बना बनास के खरबूजे अब उत्पादन नहीं होने के कारण लोगों की आर्थिक परेशानी का कारण बन गया हैं।
कई किस्म प्रचलित है
उत्पादन के अभाव में आज बनास का मिश्री सा स्वाद देने वाला खरबूजे के नाम पर बिकने वाला फल दिल्ली, पंजाब, चण्डीगढ़, जयपुर तथा अजमेर में भी बेहद मांग होने के उपरान्त भी नहीं पहुंच रहा हैं। वैसे तो खरबूजा की अनेक किस्म प्रचलित है। लेकिन इनमें गोल्या, खरड़िया, फूट एवं नीली धारी के होते हैं। इनमें दिसावरी में सबसे अधिक मांग गोल्या खरबूजे की होती थी। गोल्या मिश्री की जैसा स्वाद की तरह मीठा एवं जायकेदार होता था।