यहां पम्पा सागर तालाब, छतरियां, हरियाली और गांव में बने कच्चे-पक्के मकान देखकर तथा किले सहित आस-पास घूमकर पर्यटक मोहित हो जाते हैं। किले के वैभव को चार चांद लगाते प्राचीन भव्य द्वार, बाल्कनियों अपार्टमेंट बेहतरीन और प्राचीन भित्ति चित्र के साथ सजी हुई है। यहां पर्यटकों को चूल्हे पर पकी बाजरे और मक्का की रोटी तथा केर सांगरी की सब्जी का स्वाद चकने को मिलता है।
कस्बे के आसपास के इलाके में जीप सफारी से खेत-खलिहान और गनवर गांव स्थित पहाड़ी तक जाया जा सकता है। इसके साथ ही यहां फोटोग्राफी, बैलगाड़ी का आनंद लेते है। गनवर की पहाड़ी प्राकृतिक सौंदर्य के लिहाज से क्षेत्र में अपनी विशेष पहचान रखती है। खासकर बरसात के दिनों में तो पहाड़ी का सौंदर्य देखते ही बनता है। पहाड़ी पर स्थित गणेश जी का मन्दिर भी आकर्षण का केन्द्र है। पर्यटक सूर्यास्त के मनोहारी नजारे जो अपने कैमरे में कैद कर लेते है।
पूर्व राज परिवार से जुड़ी मधुलिका ङ्क्षसह ने बताया कि एक हजार वर्ष पूर्व महाराजा केशर ङ्क्षसह ने पचेवर गांव बसाया था। रियासत काल में गांव पर खंगारोत राजपूतों का शासन था। ठाकुर अनूप ङ्क्षसह खंगारोत एक कुशल योद्धा थे। उन्होंने बहुत से युद्ध लड़े, जिनमें मराठों से रणथम्भौर के किले पर कब्जा कर पुन: जयपुर शासक को संभाला दिया था। उनके अनुकरणीय साहस और महाराजा सवाईमाधोङ्क्षसह के प्रति वफादारी के एवज में 1758 ईस्वी में पचेवर की मिल्कियत उनको सौंपी गई थी।