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उदयपुर

बाघों पर अरबों खर्च, मोर से बेमतलब!

संरक्षित राष्ट्रीय पक्षी की गणना के केन्द्र व राज्य सरकार के पास आंकड़े ही नहीं, राष्ट्रीय पक्षी की अधिसूचना ही नहीं मिलने पर दोबारा 2011 में देना पड़ा था दर्जा

उदयपुरJan 20, 2020 / 10:55 pm

jitendra paliwal

बाघों पर अरबों खर्च, मोर से बेमतलब!

बाघों पर अरबों खर्च, मोर से बेमतलब!

जितेन्द्र पालीवाल @ उदयपुर. बाघ को भारत का राष्ट्रीय पशु घोषित कर केन्द्र व राज्य सरकारें इस वन्यजीव प्रजाति के संरक्षण के लिए अरबों रुपए खर्च कर रही है, लेकिन सरकार के पास राष्ट्रीय पक्षी मोर की गणना के आंकड़े तक नहीं है। यही नहीं, केन्द्र सरकार की ओर से मोर को राष्ट्रीय पक्षी घोषित करने सम्बंधी अभिलेख नहीं मिलने पर सरकार को 30 मई, 2011 में फिर से मोर को यह दर्जा देने की अधिसूचना जारी करनी पड़ी थी। राज्यों में कई तरह के जीवों की गणना हर साल की जाती है, लेकिन तादाद लगातार घटने के बावजूद मोरों की गणना के लिए विभाग कोई काम नहीं कर रहा है।
केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एक सवाल के जवाब में यह जानकारी दी है कि उसके पास देश में मोर की तादाद से सम्बंधित कोई आंकड़े मौजूद नहीं है। सरकार ने कहा कि मोर सामान्य रूप से पाए जाने वाला पक्षी है, जो वनक्षेत्रों में, कृषि भूमि और मानव बस्तियों में पाया जाता है। वन्यजीवों का प्रबंधन और परिरक्षण राज्य सरकारें करती हैं। कुछ महत्वपूर्ण प्रजातियों, विशाल जीवों की संख्या का आकलन राज्य सरकारें ही हर एक अंतराल पर करती हैं। हैरत की बात है कि मोरों को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 में सूचीबद्ध कर उन्हें उच्चतम स्तर का संरक्षण दिया गया है, लेकिन उनकी संख्या का ब्योरा मंत्रालय के पास नहीं है। मोरों का शिकार, मांस, उनसे प्राप्त सामग्री, राष्ट्रीय उद्यान में उनके शिकार पर कम से कम तीन और अधिकतम सात साल तक की सजा का भी प्रावधान है और दस से 25 हजार रुपए तक जुर्माना लगाया जा सकता है। मोरों के अवैध शिकार और गैर कानूनी व्यापार के लिए वन्यजीव अपराध ब्यूरो काम करता है।

दो बार जारी हुई अधिसूचना

मोर के अद्भुत सौंदर्य के कारण 26 जनवरी,1963 को इसे राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया था। हमारे पड़ोसी देश म्यांमार का राष्ट्रीय पक्षी भी मोर ही है। मोरों को लेकर गम्भीरता की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत सरकार के रिकॉर्ड में पुरानी अधिसूचना उपलब्ध नहीं होने पर वर्ष 2011 में दोबारा इसे जारी किया गया। मोर राष्ट्रीय पक्षी होने के साथ ही संरक्षित प्रजातियों में भी शामिल किया जा चुका है। पक्षीविद् बताते हैं कि देश में लुप्त होने के कगार पर आ चुके मोर की संख्या का नहीं होना चिंताजनक है। सरकार ने वन्यजीव संरक्षण कानून में संशोधन कर मोर का शिकार करने पर पाबंदी लगा दी, लेकिन उनके संरक्षण के बाकी कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं।

अनुमान एक लाख से ज्यादा

वन विभाग देश में मोर के सही आंकड़े उपलब्ध करा पाने में असमर्थ साबित हो रहा है। एक अनुमान है कि देश में इनकी संख्या एक लाख से अधिक है। उत्तरी भारत (जोधपुर) के एक अध्ययन के अनुसार, नर मोर की संख्या 170-210 प्रति 100 मादा है, लेकिन दक्षिणी भारत (इंजर) में बसेरा स्थल पर 47 नर मोर के अनुपात में 100 मादाएं पाई जाती हैं। प्रकृति पर अध्ययन करने वाली संस्था वल्र्ड वाइड फंड फॉर नेचर ने वर्ष 1991 में भारत में मोरों की स्थिति पर अपनी रिपोर्ट में कहा था कि स्वतंत्रता के समय भारत में मौजूद कुल मोर की आबादी के मुकाबले केवल 50 फीसदी मोर ही अब अस्तित्व में हैं। जानकारों का मानना है कि 1991 के बाद से संरक्षण कार्य में गम्भीरता नहीं दिखाने व शिकार होने से मोरों की संख्या काफी घट गई है।

यह बड़ी विडम्बना

यह धरती का सबसे सुन्दर पक्षी है। यह विडम्बना है कि सरकार के पास राष्ट्रीय पक्षी के ही आंकड़े नहीं है। सरकार गैर जिम्मेदाराना जवाब दे रही है। अगर वाकई में सरकार संरक्षण करना चाहती है, तो इस पर ठोस कार्ययोजना के साथ काम करना चाहिए। राजस्थान में सरकार मोरों की गणना के नाम पर झूठ का पुलिंदा बना रही है।
बाबूलाल जाजू, प्रदेश प्रभारी, पिपुल फॉर एनिमल्स

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