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उदयपुर

पास में पुण्य है स्वर्ग की चिन्ता नहीं

दस दिवसीय जिन सहस्रनाम विधान, चातुर्मासिक आयोजनों का दौर जारी

उदयपुरOct 20, 2018 / 02:30 am

Pankaj

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पास में पुण्य है स्वर्ग की चिन्ता नहीं

उदयपुर . हुमड़ भवन में दस दिवसीय जिन सहस्रनाम विधान हर्षोल्लास एवं विधि-विधान से सम्पन्न हुआ। कई श्रावकों ने इस विधान के माध्यम से पुण्यार्जन किया।
इस अवसर पर धर्मसभा में सुमित्र सागरजी ने कहा कि दान, तप, पूजा में चार पुण्य के कारण है। व्यक्ति के हाथ में मक्खन हो तो घी की चिन्ता नहीं करनी चाहिये। उसी प्रकार से जिसके पास में पुण्य है उसे स्वर्ग की चिन्ता नहीं करनी चाहिए। पुण्य के सामने पाप टिक नहीं सकता है। कैकई ने राम को जंगल में भेज दिया लेकिन राम के जंगल में ही मंगल हो गया। कृष्ण का जन्म जेल में हुआ फिर भी उनका बाल तक बांका नहीं हुआ। दुनिया पानी दे सकती है लेकिन प्यास नहीं बुझा सकती है। वैसे ही पुण्य आपको सुविधा दे सकता है, उस पुण्य को भोगने का पुरूषार्थ तो स्वयं को ही करना पड़ेगा। जिन सहस्र विधान के अन्तिम दिन भव्य गुरू पूजा, जाप एवं हवन के साथ विविध धार्मिक अनुष्ठान सम्पन्न हुए।
मंजू गदावत ने बतायाकि प्रातरू पूजा, अभिषेक, शांति धारा एवं जिनसहस्रनाम विधान पूजन हुआ। सुमतिलाल दुदावत ने बताया कि प्रातरू 108 सौधर्म इन्द्रों के द्वारा चमत्कारिक सहस्रनाम विधान हुआ। शाम को आचार्यश्री की मंगल आरती हुई जिसमें जैन जागृति महिला मंच की मंजू गदावत, लीला कुरडिय़ा, विद्या जावरिया सहित श्रावक- श्राविकाओं ने उत्साह एवं उमंग के साथ भाग लिया।
राम का अर्थ शुद्ध चेतन आत्मा -आचार्य शिवमुनि
महाप्रज्ञ विहार में आचार्य शिवमुनि ने विजया दशमी के उपलक्ष में भगवान श्री राम एवं रावण के चरित्र पर विस्तार से बताते हुए कहा कि उस समय संसार में दो शक्तियां चलती थी एक भगवान श्री राम की और दूसरी रावण की। राम अपनी शक्तियों का उपयोग परहित में, परोपकार में, कमजोरों की रक्षा करने और जनहित के लिए करते थे लेकिन रावण उन शक्तियों का दुरूपयोग करते हुए अहंकार के वश में था। भगवान श्री राम पितृभक्त थे। उन्होंने पिता के वचनों को निभाने में एक पल का समय भी नहीं लगाया और 14 बरस के लिए बनवास को चले गये।
उन्होंने कहा कि आज राम कहां है और रावण कहां। राम तो हमारे घट-घट में है। हमारे भीतर राम बिराजे हैं। तीनों लोकों में राम ही सत्य है। राम का मतलब ही है शुद्ध चेतन आत्मा। जिस तरह से आत्मा सभी में है उसी तरह से राम सभी में बिराजमान हैं। भगवान श्री राम ने सिर्फ अपने पिता के वचन के निभाने के लिए 14 बरस का वनवास स्वीकार किया। यह रघुकुल की रीत है- रघुकुल रति रीति सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई।
अचार्यश्री ने कहा कि विजया दशमी असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है, अन्याय पर न्याय की विजय का प्रतीक है, भोग पर योग की विजयका प्रतीक है, अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है, दुराचार पर सदाचार की विजय का प्रतीक है।
रावण चरित्र के बारे में बताते हुए आचार्यश्री ने कहा कि रावण में अहंकार था तो पश्चाताप भी था, वासना थी तो संयम भी था, सीमा माता के अपहरण की ताकत थी तो बिना सहमति के परस्त्री को स्पर्श नहीं करने का संकल्प भी था। सीता जीवित मिली यह राम की ताकत थी लेकिन सीता पवित्र मिली यह रावण की मर्यादा थी।
संघ अध्यक्ष ओंकारसिंह सिरोया एवं चातुर्मास संयोजक विरेन्द्र डांगी ने बताया कि प्रात: साढ़े आठ बजे से मुनिश्री शुभम मुनि के मुखारबिन्द से 21 दिवसीय उत्तराध्यायन सूत्र का वाचन प्रारम्भ हुआ। इसका लाभ सैंकड़ों श्रावक ले रहे हैं। उत्तराध्यायन सूत्र के एक- एक शब्द में अमृत भरा हुआ है। इस सूत्र के वाचन से ओर श्रवण से जीवन पवित्र होता है और जीवन का उत्थान होता है।
धर्मसभा में देश के विभिन्न हिस्सों से श्रावक श्राविकाएं पहुंचे जिन्होंने प्रवचन लाभ के बाद आचार्यश्री का आशीर्वाद भी प्राप्त किया।

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