तो फिर क्यों नहीं मिला पूर्णकालिक सीईओ स्मार्ट सिटी के लिए न्यूनतम तीन वर्ष के लिए पूर्णकालिक सीईओ बनाना प्रस्तावित था, लेकिन पांच वर्ष बीतने के बाद आज तक ना तो एेसा सीईओ मिला और ना ही कोई सीइओ निर्धारित तीन वर्ष का कार्यकाल पूर्ण कर पाया। हर बार एेसा व्यक्ति सीईओ बनाया जाता है, जो निगम के आयुक्त के साथ पार्ट टाइम में स्मार्ट सिटीज व अमृत योजना का कार्य देखता है। इससे स्मार्ट सिटी के कार्यों में विलंब होना स्वाभाविक है।
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केंद्र सरकार द्वारा लगातार एडवाइजरी जारी कर राज्यों को निर्देशित किया गया है कि गाइड लाइन्स के अनुसार स्मार्ट सिटी कंपनी का नेतृत्व एक पूर्णकालिक सीईओ को सौंपा जाए, एडवाइजरी में पुन: स्पष्ट किया गया था कि कंपनी एक्ट 2013 के प्रावधानों के अनुसार प्रमुख प्रबंधकीय पदों पर जो योग्यताएं बताई गई है वे निम्न है :
– अर्बन सेक्टर का अनुभव भी आवश्यक माना गया है। हालांकि कोच्चि, पुणे जैसे कुछ स्मार्ट सिटी ने उद्योगों से प्रोफेशनल सीईओ का भी चयन किया था, वही जयपुर, भोपाल, इंदौर, जबलपुर, सोलापुर जैसे अनेक स्मार्ट सिटीज में भारतीय प्रशासनिक सेवा व राज्य प्रशासनिक सेवा के सरकारी कर्मचारियों को सीईओ बनाया गया है।
– मिशन ने 2018 में पुन: चेताया था कि जहां स्थाई सीईओ है वहां शीघ्र निर्णय लिए जा रहे है, बोर्ड की बैठकें शीघ्र हो रही है व बेहतरीन परिणाम आ रहे हैं। साथ ही प्रोजेक्ट्स का निष्पादन भी तेज गति से हो रहा है।
ये है उदयपुर का दर्द गौरतलब है कि उदयपुर में पहले सीईओ आईएएस सिद्धार्थ सिहाग थे, जो नगर निगम आयुक्त भी थे। उनके यहां से तबादले के बाद अतिरिक्त प्रभारी कमर चौधरी को दिया गया, जो उस समय जिला परिषद सीईओ थे, इसके बाद चौधरी का तबादला जोधपुर हुआ था, तब कुछ दिनों के लिए इसका प्रभार डॉ. मंजू को दिया गया। बाद में फिर से चौधरी का तबादला निरस्त होने पर उन्हें चार्ज दिया गया। एेसे में इस पद पर कभी कोई स्वतंत्र या स्थाई सीइओ नहीं बैठा। अब फिर से चौधरी का तबादला जोधपुर हो चुका है, एेसे में उदयपुर को एक स्थाई सीईओ का इन्तजार है।
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नियम तो यह भी है कि राज्य सरकार जिस अधिकारी को स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट का सीईओ नियुक्त करेगी उसे तीन साल से पहले नहीं हटा सकती है। जरूरी होने पर केन्द्र की अनुमति के बाद ही हटाया जा सकता है।