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उदयपुर

मेवाड़़ को म‍िलता था 10 लाख रुपए का प्र‍िवी पर्स, 5 लाख राजप्रमुुुुख और 5 लाख रीत‍ि-र‍िवाजों के ल‍िए

इंदिरा गांधी ने बंद कराया था राजाओं को मिलने वाला ‘प्रिवी पर्स’

उदयपुरJul 02, 2020 / 02:34 pm

madhulika singh

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उदयपुर. जब राजा-महाराजाओं और उनकी रियासतों की बात छिड़ती है तो रियासतों के भारत में विलय और उन्हें मिलने वाले प्रिवी पर्स की चर्चा सबसे अधिक होती है। जब प्रिवी पर्स को बंद किया गया तो ये एक ऐसा ऐतिहासिक निर्णय बन गया जिसने भारत की तकदीर बदल कर रख दी थी। दरअसल, आजादी के बाद से ही जो भारतीय रियासतें थीं उन्हें सरकार की ओर से प्रिवी पर्स दिया जाता था, ये करीब 20 सालों तक दिया जाता रहा था लेकिन इसका अंत हुआ और इस प्रिवी पर्स का अंत करने में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की भूमिका अहम थी।
यह है प्रिवी पर्स

प्रिवी पर्स किसी संवैधानिक या लोकतांत्रिक राजतंत्र में राज्य के स्वायत्त शासक एवं राजपरिवार को मिलने वाली विशेष धनराशि को कहा जाता है। भारत में रियासतों को विशेष भत्ता देने की शुरुआत सन 1950 में लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना के बाद हुई थी। भारतीय संघ में सम्मिलित होने की संधि के शर्तोंं में रियासतों के तत्कालीन शासकों एवं उनके उत्तराधिकारियों को आजीवन जीवन यापन के लिए भारत सरकार द्वारा विशेष धनराशि एवं भत्ते दिए जाने का प्रावधान था। इस विशेष वार्षिक धनराशि को राजभत्ता, निजी कोष या प्रिवी पर्स कहा जाता था। इस व्यवस्था को ब्रिटेन में चल रहे प्रिवी पर्स की व्यवस्था के आधार पर पारित किया गया था।

भारत में प्रिवी पर्स की समाप्ति

नव स्वतंत्र भारत में राजभत्ते पर आम राय नकारात्मक थी। साथ ही उस समय की आर्थिक स्थिति के मद्देनजर इस व्यवस्था को बहुमूल्य धन के व्यर्थ व्यय के रूप में देखा जाता था। इसके अलावा शाही खिताबों की आधिकारिक मान्यता को भी पूर्णत: असंवैधानिक व अलोकतांत्रिक प्रक्रिया के रूप में देखा जाता था। विशेष भत्तों एवं राजकीय उपाधियों के उन्मूलन का प्रस्ताव संसद में सबसे पहले 1969 में लाया गया था। लोकसभा में ये पारित हो गया लेकिन राज्यसभा में इसे आवश्यक दो तिहाई बहुमत से एक मत कम मिला। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा सारे नागरिकों के लिए समान अधिकार एवं सरकारी धन का व्यर्थ व्यय का हवाला देते हुए इसे दोबारा 1971 में लाया गया और 26वें संवैधानिक संशोधन के रूप में पारित कर दिया गया। इस संशोधन के बाद राजभत्ता और राजकीय उपाधियों का भारत से सदा के लिए अंत हो गया।
उदयपुर रियासत को मिलता था 10 लाख रुपए का प्रिवी पर्स

राजभत्ते की धनराशि का मूल्यांकन कई तथ्यों के आधार पर होता था जैसे राज्य का राजस्व, सलामी क्रम, रियासत की ऐतिहासिक सार्थकता, महत्ता आदि। भत्ते की धनराशि आम तौर पर 5,000 से लेकर लाखों रुपए तक थी। 562 रियासतों में से 102 रियासतें ऐसी थीं जिन्हें 1 लाख रुपए से ज्यादा का वार्षिक भत्ता मिलता था। 6 रियासतों को 10 लाख से ज्यादा भत्ता मिलता था। ये राज्य थे हैदराबाद, मैसूर, त्रावणकोर, वड़ोदरा, जयपुर और पटियाला। वहीं, उदयपुर के अलावा कश्मीर, कोल्हापुर, ग्वालियर, जोधपुर, नवानगर, बीकानेर, भावनगर और रीवा रियासत को 10 लाख रुपए भत्ता मिलता था। कई रियासतों के लिए उत्तराधिकार पर भत्ते के मूल्य को घटा दिया जाता था एवं सामान्य तौर पर भी भारत सरकार हर उत्तराधिकार पर रियायतों को घटा देती थी

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