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उदयपुर

कुंभलगढ़ दुर्ग से 500 मीटर नीचे घने जंगल में बने 13 टापरे में रहने वाले लोगों की जिंदगी हुई ‘रोशन’

विश्व प्रसिद्ध कुंभलगढ़ दुर्ग ( Kumbhalgarh Fort ) से पांच सौ मीटर नीचे घने जंगल में बने 13 टापरे और उनमें रहने वाले 50-60 लोग सुविधा के नाम पर सिर्फ भगवान के आसरे थे।

उदयपुरJul 07, 2019 / 01:48 pm

santosh

Kumbhalgarh Fort Rajasthan
मानवेन्द्रसिंह राठौड़
उदयपुर। विश्व प्रसिद्ध कुंभलगढ़ दुर्ग से पांच सौ मीटर नीचे घने जंगल में बने 13 टापरे और उनमें रहने वाले 50-60 लोग सुविधा के नाम पर सिर्फ भगवान के आसरे थे। ऊपर आसमान व नीचे घने जंगल के बीच जीने वाले इन लोगों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा कि उनके टापरे भी ‘रोशन’ होंगे।
सांसद के प्रयासों एवं जन सहयोग से सौर ऊर्जा के जरिए इन गरीबों के टापरों में उजियारा फैला है। चारों तरफ दूर-दूर तक पहाड़ियों से हरियाली से आच्छादित जंगल में दूधिया रोशनी से नहाए ये टापरे एेसी छटा बिखेर रहे हैं मानों किसी जंगल सफारी के टेंट हों।
यह दास्तां है अभयारण्य की घनी वादियों में बसी सवा सौ वर्ष पुरानी खरनी टाकरी भील बस्ती की। इसमें आजादी के 73 वर्ष बाद भी बिजली नहीं पहुंच पाई लेकिन अब सौर ऊर्जा से केलूपोश घर जगमग हैं। जंगल में मंगल होने से आदिवासी परिवार खुश हैं।
प्रत्येक सौर ऊर्जा इकाई से तीन बल्ब व एक पंखा चल रहा है। रोशनी से हिंसक वन्यजीवों का खतरा कम होने आदिवासी परिवार रात को चैन की नींद ले पा रहे हैं। पीढि़यों से आदिवासी परिवार लालटेन व माटी के दीयों की रोशनी में ही जीवन बीता रहे थे।
अभयारण्य में होने से वन विभाग की जमीन में से बिजली लाइन निकालने की स्वीकृति नहीं मिल पा रही थी। एेसे में ये परिवार रोशनी से वंचित थे। पाली सांसद ने चुनाव से पहले 13 सौर ऊर्जा की लाइटें भेजी थी। घरों के बाहर सोलर प्लेटें लगाई गई हैं। पूरी बस्ती रोशनी से जगमग हो गई है जिससे वहां के निवासी खुश हैं।

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