READ MORE: उदयपुर की इस यूनिवर्सिटी में अध्यक्ष की दौड़ में दूसरी बार कोई छात्रा, सुविवि में अब तक नहीं मिला मौका हवेली के मुख्य द्वार के पूर्व में कलात्मक शस्त्रागार (हाथी का कुमाला) में प्रदर्शित विभिन्न प्रकार की ढाल-तलवारें, छुरे, भाले और फरसे, तीर-कमान और कटारें, बख्तरबंद आदि इसके ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करती हैं। इसके अलावा इसमें बागौर ठिकाने से गोद गए तत्कालीन महाराणा सरदार सिंह, शंभूसिंह, स्वरूपसिंह व सज्जन सिंह के पोट्र्रेट भी लगे हुए हैं। कहा जाता है कि अनूठी वास्तु कला के चलते पूर्व में इसी हॉल (कुमाला) में राजे-रजवाड़े अपने हाथी बांधा करते थे।
READ MORE: छात्रसंघ चुनाव: उदयपुर छात्र राजनीति में गुटों के आगे संगठन हो गए बौने उसी जगह बीते जमाने के अस्त्र-शस्त्रों की चांदी के मुलम्मे चढ़ी प्रतिकृतियां सुशोभित हो रही हैं। यहां प्रदर्शित बुरछ, खाण्डा, करणशाही और कदलीवन तलवार, बख्तरफाड़ चोंच, पर्शियन ढाल, दखन हैदराबादी कटार, अंकुश, चमड़े की ढाल, बंदूक टोपीदार और शोरदानी न केवल अपने विचित्र नामों से आगन्तुकों को रोमांचित करते हैं बल्कि पर्यटकों को तत्कालीन दौर और इतिहास की बानगी से भी रूबरू कराते हैं।
ये है बागाेेेर की हवेली की खासियत बागोर-की-हवेली एक हवेली है जो भारतीय राज्य राजस्थान के उदयपुर ज़िले में स्थित है। यह पिछोला झील के गंगोरी गेट के दायिनी ओर स्थित है इसका निर्माण मेवाड़ के मंत्री अमर चंद बड़वा ने 18वीं शताब्दी में करवाया था।इस लगभग 100 कमरे है जिसमें कई आधुनिक और पुरानी कला वस्तुएं रखी गई है हवेली में कांच का कार्य भी किया हुआ है। इनके अलावा इस हवेली में मेवाड़ के महाराणाओं और महारानियों की पेंटिंगें भी लगाई हुई है जो बहुत सुंदर दिखती है।