उज्जैन. विक्रम विश्वविद्यालय में पीएचडी प्रवेश परीक्षा में धांधली पर मचा घमासान तो खत्म हुआ नहीं और अब अतिथि विद्वान चयन प्रक्रिया में गड़बड़ी सामने आई है। विवि प्रशासन ने 29 जुलाई को 17 विषय के लिए करीब 34 पदों पर आवेदन आंमत्रित किए। पहले तो संबंधित विषयों को योग्य आवेदकों की कमी से जूझना पड़ा। इसके बाद जो आवेदक चयनित हुए, उन्होंने भी ज्वाइनिंग नहीं ली। इसके बाद अन्य लोगों को मौका दिया गया। अब इस व्यवस्था पर सवाल खड़ा हुआ है। इसी के साथ राजनीतिक विज्ञान अध्ययनशाला में चयन प्रक्रिया पर राजनीति गहरा गई है। अध्ययनशाला के विज्ञापन में दो पद थे, लेकिन तीन लोगों का चयन कर दिया गया।
प्रतीक्षा सूची सार्वजनिक नहीं की
विवि में चयन प्रक्रिया को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। इसमें प्रथम चयन प्रक्रिया के दौरान प्रतीक्षा सूची सावर्जनिक नहीं करने की मांग शामिल है। दरअसल, आवेदकों का कहना है कि विवि प्रशासन ने चयनित लोगों के असमर्थता जाहिर करने के बाद किस आधार अन्य लोगों को बुलाया। इसी के साथ कई एेसे शिक्षक भी हैं, जिन्होंने असमर्थता जाहिर नहीं की। इसी के साथ आरोप यह भी लगा है कि विवि प्रशासन ने अन्य संस्थान में चयनित लोगों को बुलाकर प्रक्रिया में शामिल किया। चयन के बाद ज्वाइन नहीं करवाया। इससे बाद चहेतों को लाभ पहुंचाया।
यह हुए चयनित
चयन प्रक्रिया में संस्कृत में डॉ. महेंद्र पण्डया, प्राणिकी व बॉयोटेक्नोलॉजी में डॉ. हरिओम पवार, अर्थशास्त्र में डॉ. गोविन्द पाटीदार, दर्शनशास्त्र में ज्योति गोयल, राजनीतिक विज्ञान में अर्चना नागवंशी, डॉ. महेन्द्र यादव, जितेन्द्र शर्मा (मानवाधिकार)। इन लोगों को 15 सितंबर को ज्वाइनिंग के लिए पत्र भेजा गया, लेकिन इनके असमर्थता जाहिर करने के बाद 3 अक्टूबर को अन्य लोगों को चयनित किया गया।
इनका हुआ चयन
संस्कृत में वरुणा नागर, प्राणिकी एवं बॉयोटेक्नालॉजी में डॉ. ताज नुसरत कुरैशी, अर्थशास्त्र में दीपा द्विवेदी, दर्शनशास्त्र में राकेश कवाचे, राजनीतिक विज्ञान में वंदना पंडित, शिवकुमार कुशवाह, अजय सिंह भदौरिया (मानवाधिकार) शामिल हैं। इसी के साथ कम्प्यूटर साइंस में प्रज्ञा तोमर व शेखर दिसावल और वाणिज्य विभाग में ममता शर्मा का भी चयन हुआ।
बिना विज्ञापन चयन
विवि में डॉ. महेन्द्र यादव लंबे समय से न्यायालय प्रकरण के कारण अस्थाई रूप से कार्यरत थे। उन्होंने स्वयं विवि को छोडऩे का निर्णय लिया। अब विवि प्रशासन ने उनकी जगह अन्य को चयनित कर दिया, जबकि अतिथि विद्वान में राजनीतिक विज्ञान विभाग के दो पद थे। विवि प्रशासन ने महेन्द्र यादव की जगह को बिना विज्ञापन के भर दिया।