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कभी मुलायम व शिवपाल यादव के खास माने जाने वाले अतीक अहमद के लिए सभी प्रमुख दलों के रास्ते बंद दिखायी दे रहे हैं। अखिलेश यादव व मायावती के गठबंधन में टिकट मिलने संभव नहीं है। कांग्रेस व बीजेपी भी बाहुबली को प्रत्याशी बनाने में किसी प्रकार की दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। अतीक अहमद फूलपुर से सांसद रह चुके हैं और इलाहाबाद में सबसे अधिक प्रभाव है। ऐसे में अतीक अहमद निर्दल या फिर किसी छोटे दल के साथ चुनाव लड़ सकते हैं। बड़े दल से टिकट मिलना संभव नहीं दिख रहा है।
बाहुबली धनंजय सिंह जौनपुर से सांसद रह चुके हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती की टिकट से संसद पहुंचे धनंजय सिंह पर दर्जनों मुकदमे दर्ज है। धनंजय सिंह का जौनपुर में बड़ा प्रभाव है। बीजेपी ने यूपी में विधानसभा चुनाव 2017 में एक पोस्टर जारी किया था जिसमे धनंजय सिंह को बाहुबली बताया गया था। सपा व बसपा गठबंधन के साथ बीजेपी से धनंजय सिंह को टिकट मिलने की संभावना न्यूनतम है। यूपी में सरकार ने हाईकोर्ट में जिस तरह से धनंजय सिंह पर कार्रवाई के लिए प्रार्थना पत्र दिया है उससे कांग्रेस से भी टिकट मिलना अब टेढ़ी खीर है।
बसपा से राजनीतिक दुनिया में आने वाले मुख्तार अंसारी ने समय के साथ पार्टी बदली थी। कभी बीजेपी के कद्दावर नेता डा.मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ वाराणसी संसदीय सीट से चुनाव लड़े थे तो कभी कौएद पार्टी बना कर आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर में अपनी सियासी जमीन तैयार की थी। शिवपाल यादव ने मुख्तार अंसारी की पार्टी का सपा में विलय कराया था तो अखिलेश यादव से ऐसा विवाद हुआ कि शिवपाल यादव को पार्टी ही छोडऩी पड़ गयी। लोकसभा चुनाव 2019 में मुख्तार अंसारी के अलावा उनके बेटे अब्बास अंसारी व भाई अफजाल अंसारी चुनावी मैदान में उतर सकते हैं। बसपा से अंसारी बंधुओं को एक ही टिकट मिलने की अटकले लग रही है वह भी अफजाल अंसारी की। साफ हो जाता है कि अंसारी बंधु भी अब अपने अनुसार टिकट नहीं ले पा रहे हैं।
भदोही की राजनीति में विजय मिश्रा का अपना रसूख है। सपा से दूरी होने के बाद निषाद पार्टी से जुड़े इस बाहुबली की बीजेपी के साथ अच्छी पटरी है इसके बाद भी विजय मिश्रा या उनके लोगों का नाम अभी संसदीय प्रत्याशियों की सूची में नहीं आ पाया है। सपा व बसपा गठबंधन के साथ कांग्रेस से भी विजय मिश्रा को साथ मिलने की उम्मीद कम है। बीजेपी पर आस लगी हुई है जो पूरी होगी कि नहीं। यह कहने वाला कोई नहीं है।
आजमगढ़ की राजनीति में रमाकांत यादव का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। बीजेपी के टिकट से संसद तक पहुंचने के बाद रमाकांत यादव ने वर्ष 2014 में मुलायम सिंह यादव के खिलाफ इसी सीट से चुनाव लड़ा था। रमाकांत यादव भले चुनाव हार गये थे लेकिन सपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष को तगड़ी टक्कर दी थी। इस चुनाव में रमाकांत यादव किसके साथ जायेंगे यह तय नहीं है। बीजेपी ने अभी प्रत्याशी नहीं बनाया है और अखिलेश यादव के चुनाव लडऩे की अटकलों के साथ सपा को समर्थन देने की चर्चा है। रमाकांत यादव के लिए कोई दल खुल कर सामने नहीं आ रहा है।
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