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वाराणसी

यूपी की सियासत में पहली बार हाशिये पर पांच बाहुबली, बेहद दिलचस्प है यह कहानी

लोकसभा चुनाव में नहीं मिल रहा बड़े दलों का साथ, अपने बल पर चुनावों में उलटफेर करने की रखते थे क्षमता

वाराणसीMar 16, 2019 / 04:09 pm

Devesh Singh

Dhananjay Singh, Mukhtar Ansari, Vijay Mishra, Ramakant Yadav and Atiq Ahmed

Dhananjay Singh, Mukhtar Ansari, Vijay Mishra, Ramakant Yadav and Atiq Ahmed

वाराणसी. पूर्वांचल की सियासत में बाहुबलियों की धमक हरिशंकर तिवारी की एंट्री के साथ शुरू हो गयी थी। समय के साथ सियासत का चेहरा बदलता गया था लेकिन बाहुबलियों से दूरी बनाने किसी दल के लिए संभव नहीं था। धन व बाहुबल के सहारे सत्ता में अपनी धमक सुनाने वाले बाहुबलियों की पकड़ अब बड़े दलों पर कमजोर होती जा रही है। लोकसभा चुनाव 2019 का शंखनाद हो चुका है और सभी प्रत्याशी अपने पसंद के दलों से टिकट लेने में लगे हुए हैं उसी में पांच ऐसे बाहुबली है जो कभी सत्ता के बेहद करीब रहते थे लेकिन उनकी राजनीतिक दलों में एक नहीं चल रही है।
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राजनीति में एक बात डंके से कही जाती है कि कोई भी स्थायी दोस्त व दुश्मन नहीं होता है। समय के साथ परिस्थितियां बदलती है तो राजनीतिक दलों के नजरिये में बदलाव आ जाता है। विभिन्न दलों के लिए कभी बाहुबली सीट जीत की गारंटी माने जाते थे तो आज वही नेता राजनीतिक दलों के लिए अछूत बनते जा रहे हैं। रही सही कसर उच्चतम न्यायालय ने पूरी कर दी है। दागी प्रत्याशियों को विज्ञापन देकर बताना होगा कि उनके उपर किस तरह के मुकदमे दर्ज है। जो पार्टी बाहुबलियों को टिकट देगी उन्हें अपनी वेबसाइट पर इस बात की जानकारी देनी होगी कि कितने मुकदमों में आरोपी व्यक्ति को टिकट दिया है। जनता में साफ छवि दिखाने की विवशता ने राजनीतिक दलों को इन बाहुबलियों से और दूर कर दिया है। विभिन्न पार्टियां उन नेताओं को टिकट देने में नहीं हिचक रही है जिनके उपर मुकदमे तो दर्ज है लेकिन वह बाहुबली के रुप में चर्चित नहीं है।
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1-अतीक अहमद
कभी मुलायम व शिवपाल यादव के खास माने जाने वाले अतीक अहमद के लिए सभी प्रमुख दलों के रास्ते बंद दिखायी दे रहे हैं। अखिलेश यादव व मायावती के गठबंधन में टिकट मिलने संभव नहीं है। कांग्रेस व बीजेपी भी बाहुबली को प्रत्याशी बनाने में किसी प्रकार की दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। अतीक अहमद फूलपुर से सांसद रह चुके हैं और इलाहाबाद में सबसे अधिक प्रभाव है। ऐसे में अतीक अहमद निर्दल या फिर किसी छोटे दल के साथ चुनाव लड़ सकते हैं। बड़े दल से टिकट मिलना संभव नहीं दिख रहा है।
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2-धनंजय सिंह
बाहुबली धनंजय सिंह जौनपुर से सांसद रह चुके हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती की टिकट से संसद पहुंचे धनंजय सिंह पर दर्जनों मुकदमे दर्ज है। धनंजय सिंह का जौनपुर में बड़ा प्रभाव है। बीजेपी ने यूपी में विधानसभा चुनाव 2017 में एक पोस्टर जारी किया था जिसमे धनंजय सिंह को बाहुबली बताया गया था। सपा व बसपा गठबंधन के साथ बीजेपी से धनंजय सिंह को टिकट मिलने की संभावना न्यूनतम है। यूपी में सरकार ने हाईकोर्ट में जिस तरह से धनंजय सिंह पर कार्रवाई के लिए प्रार्थना पत्र दिया है उससे कांग्रेस से भी टिकट मिलना अब टेढ़ी खीर है।
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3-मुख्तार अंसारी
बसपा से राजनीतिक दुनिया में आने वाले मुख्तार अंसारी ने समय के साथ पार्टी बदली थी। कभी बीजेपी के कद्दावर नेता डा.मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ वाराणसी संसदीय सीट से चुनाव लड़े थे तो कभी कौएद पार्टी बना कर आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर में अपनी सियासी जमीन तैयार की थी। शिवपाल यादव ने मुख्तार अंसारी की पार्टी का सपा में विलय कराया था तो अखिलेश यादव से ऐसा विवाद हुआ कि शिवपाल यादव को पार्टी ही छोडऩी पड़ गयी। लोकसभा चुनाव 2019 में मुख्तार अंसारी के अलावा उनके बेटे अब्बास अंसारी व भाई अफजाल अंसारी चुनावी मैदान में उतर सकते हैं। बसपा से अंसारी बंधुओं को एक ही टिकट मिलने की अटकले लग रही है वह भी अफजाल अंसारी की। साफ हो जाता है कि अंसारी बंधु भी अब अपने अनुसार टिकट नहीं ले पा रहे हैं।
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4-विजय मिश्रा
भदोही की राजनीति में विजय मिश्रा का अपना रसूख है। सपा से दूरी होने के बाद निषाद पार्टी से जुड़े इस बाहुबली की बीजेपी के साथ अच्छी पटरी है इसके बाद भी विजय मिश्रा या उनके लोगों का नाम अभी संसदीय प्रत्याशियों की सूची में नहीं आ पाया है। सपा व बसपा गठबंधन के साथ कांग्रेस से भी विजय मिश्रा को साथ मिलने की उम्मीद कम है। बीजेपी पर आस लगी हुई है जो पूरी होगी कि नहीं। यह कहने वाला कोई नहीं है।
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5-रमाकांत यादव
आजमगढ़ की राजनीति में रमाकांत यादव का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। बीजेपी के टिकट से संसद तक पहुंचने के बाद रमाकांत यादव ने वर्ष 2014 में मुलायम सिंह यादव के खिलाफ इसी सीट से चुनाव लड़ा था। रमाकांत यादव भले चुनाव हार गये थे लेकिन सपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष को तगड़ी टक्कर दी थी। इस चुनाव में रमाकांत यादव किसके साथ जायेंगे यह तय नहीं है। बीजेपी ने अभी प्रत्याशी नहीं बनाया है और अखिलेश यादव के चुनाव लडऩे की अटकलों के साथ सपा को समर्थन देने की चर्चा है। रमाकांत यादव के लिए कोई दल खुल कर सामने नहीं आ रहा है।
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