scriptकाशी में हुआ था महाभारत का पहला हिंदी अनुवाद | Mahabharat first Hindi translation was in Kashi | Patrika News
वाराणसी

काशी में हुआ था महाभारत का पहला हिंदी अनुवाद

आकाश की तरह अवकाश देती है काशी की साहित्य परम्परा,जेम्स प्रिंसेप के बनारस में योगदान पर दिखाया गया वृत्तचित्र।

वाराणसीFeb 22, 2019 / 07:31 pm

Ajay Chaturvedi

प्रो अवधेश प्रधान

प्रो अवधेश प्रधान

वाराणसी. काशी अपने तीन कवियों कबीर, रैदास और तुलसीदास को सामने रखकर सम्पूर्ण विश्व साहित्य के सामने खड़ा हो सकता है। काशी भाषा भूगोल की भी राजधानी रही है। यहां की साहित्यिक परम्परा को भक्ति काल से प्रारंभ माना जा सकता है। यहां की साहित्य परम्परा आकाश की तरह सबको अवकाश देती है। रैदास और कबीर ने समाज को संगठित किया तो तुलसीदास ने समाज को आत्मविश्वास दिया। पूरे काशी का भूगोल उनके साहित्य में समाहित था। तुलसी ने निर्गुण सगुण, शैव वैष्णव के भेदों को अपने साहित्य में मिटा दिया। यह कहना है काशी हिंदू विश्वविद्यालय के साहित्याकर प्रो अवधेश प्रधान का। वह काशीकथा की ओर से काशी पर आयोजित कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे।
कार्य़शाला के आठवें दिन “काशी की साहित्यिक परम्परा” विषयक व्याख्यान दे ते हुए प्रो प्रधान ने कहा कि रीतिकाल में जब घोर श्रृंगार की रचनाओं का जन्म हुआ उस काल मे बनारस में ऐसी रचनाएं नही हुई यह संतोष की बात है। रीतिकाल में काशी में महाराजा ईश्वरी प्रसाद नारायण सिंह के दरबार मे देवतीर्थ (काष्ठ जिह्वा स्वामी), भारतेन्दु हरिश्चंद्र तथा रघुराज सिंह ने पदों की रचना की जो आज भी रामनगर की रामलीला में गाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि सबसे पहली बार महाभारत का स्तरीय अनुवाद काशी में ही किया गया। काशी में साहित्य की एक लंबी परंपरा रही है। जो आज भी विद्यमान है। इस परंपरा को नई पीढ़ी से परिचित कराने के लिए एक प्रयास यह होना चाहिए कि इन साहित्यकारों की एक लंबी वीथिका बनाई जानी चाहिए।
इससे पूर्व कार्यशाला के प्रथम सत्र में काशी में जेम्स प्रिन्सेप के योगदान को बताते हुए रामानन्द तिवारी ने कहा कि वसुधैव कुटुम्बकम का भाव काशी में हीहै अन्यत्र नही। यहां विदेशी भी आकर यहीं का रह जाता है। इसी तरह जेम्स प्रिंसेप भी बनारस टकसाल के कार्य के लिए आया था। काशी का पहला नक्शा जेम्स प्रिन्सेप ने बनाया। पहली बार बनारस की जनगणना, मौसम रिकॉर्ड, ड्रेनेज सिस्टम और विश्वेश्वरगंज के रूप में सुनियोजित बाज़ार जेम्स प्रिंसेप का ही योगदान है। वही इंग्लैंड के क्रिस्टोफर ने बनारस से जुड़े अपने अनुभवों को प्रतिभागियों से साझा करते हुए कहा कि अब बनारस में इत्मिनान नहीं रहा। बनारस बहुत बदल गया है। मैं जब पहली बार बनारस आया 1971 में तो बनारस बहुत ही सीमित और हरा भरा था। मुझे यहां का इत्मिनान बहुत ही आकर्षित करता था। उस समय के व्यापारी, गद्दीदार सुबह उठकर, मालिश कराकर, गंगा नहाकर 2 बजे आते थे और रात 9 बजे दुकान से उठकर फिर भांग खाकर रात को एक बजे तक गोदौलिया आदि जगहों पर घूमते थे। अब वो बनारस नही रहा। यहां की पतली गलियों का वैज्ञानिक महत्व है इन गलियों में पैदल घूमने ओर भी गर्मियों में लू नही लगता था। लेकिन ऐसी विरासत को विलासिता के जीवन के लिए खत्म किया जा रहा है।
इस मौके पर आचार्य योगेंद्र, डॉ विकास सिंह, बलराम यादव, गोपेश पांडेय, दीपक तिवारी, अभिषेक यादव, जय प्रकाश चतुर्वेदी, हनुमान प्रसाद गुप्ता, गरिमा कुमारी, हेबा सईद, गणेश उराला, दीपेश मिश्र, डॉ कृष्णा सिंह, प्रज्ञा दूबे, छेमेंद्र भारद्वाज आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो एस एन उपाध्याय ने की। संचालन डॉ अवधेश दीक्षित किया। सुजीत चौबे ने आभार जताया।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो