सारनाथ का प्राचीन नाम ऋषिपतन हिरनों का जंगल था। मुहम्मद गजनवी ने 1017 में आक्रमण कर सारनाथ के पूजा स्थलों आक्रमण कर नष्ट कर दिया था। सन 1905 में पुरातत्व विभाग ने यहां खुदाई करवाई। खुदाई में जो भी अवशेष मिले उसमें कई सामान कोलकता के इंडियन म्युजियम में देखा जा सकता है। खुदाई के अवशेष और सुरंग आज भी सारनाथ में धमेक स्तूप के पास देख सकते हैं। खुदाई के दौरान यहां अशोक स्तम्भ और कई शिलालेाख मिले। जो सारनाथ के म्यूजियम में रखे गये हैं।
मूलगंध कुटी गौतम बुद्ध का मंदिर है। सातवीं शताब्दी में भारत आए चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इसका वर्णन 200 फुट ऊंचे मूलगंध कुटी विहार के नाम से किया है। इस मंदिर पर बने हुए नक्काशीदार गोले और छोटे-छोटे स्तंभों से लगता है कि इसका निर्माण गुप्तकाल में हुआ होगा। मंदिर के बदल में गौतम बुद्ध के अपने पांच शिष्यों को दीक्षा देते हुए मूर्तियां बनाई गई हैं।
इसे धर्माराजिका स्तूप भी कहते हैं। इसका निर्माण अशोक ने करवाया था। दुर्भाग्यवश 1794 में जगत सिंह के आदमियों ने काशी का प्रसिद्ध मुहल्ला जगतगंज बनाने के लिए इसकी ईंटों को खोद डाला था। खुदाई के समय 8.23 मीटर की गहराई पर एक संगरमरमर की मंजूषा में कुछ हड्डियां एवं सवर्ण पात्र, मोती के दाने एवं रत्न मिले थे, जिसे तब लोगों ने गंगा में बहा दिया।
बौद्ध समुदाय के लिए चैखंडी स्तूप काफी पूजनीय है। यहां गौतम बुद्ध से जुड़ी कई निशानियां हैं। ऐसा माना जाता है कि चैखंडी स्तूप का निर्माण मूलतरू सीढ़ीदार मंदिर के रूप में किया गया था। चैखंडी स्तूप सारनाथ का अवशिष्ट स्मारक है। इस स्थान पर गौतम बुद्ध की अपने पांच शिष्यों से मुलाकात हुई थी। बुद्ध ने उन्हें अपना पहला उपदेश दिया था। बुद्ध ने उन्हें चार आर्य सत्य बताए थे। उस दिन गुरु पूर्णिमा का दिन था। बुद्ध 234 ई. पूर्व में सारनाथ आए थे। इसकी याद में इस स्तूप का निर्माण हुआ। इस स्तूप के ऊपर एक अष्टपार्श्वीय बुर्जी बनी हुई है। यहां हुमायूं ने भी एक रात गुजारी थी।
सारनाथ का संग्रहालय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का प्राचीनतम स्थल संग्रहालय है। इसकी स्थापना 1904 में हुई थी। यह भवन योजना में आधे मठ (संघारम) के रूप में है। इसमें ईसा से तीसरी शताब्दी पूर्व से 12वीं शताब्दी तक की पुरातन वस्तुओं का भंडार है। इस संग्रहालय में मौर्य स्तंभ का सिंह स्तंभ शीर्ष मौजूद है जो अब भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है। चार शेरों वाले अशोक स्तंभ का यह मुकुट लगभग 250 ईसा पूर्व अशोक स्तंभ के ऊपर स्थापित किया गया था। इस स्तंभ में चार शेर हैं, पर किसी भी कोण से तीन ही दिखाई देते हैं।