दरअसल मंदी के दौर में केंद्र हो या राज्य सरकार, खोज-खोज कर ऐसे कानून ला रही है जिन्हें उन्ही के दबाव में पूर्व सरकारों के कार्यकाल में ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। ऐसे कानूनों की फाइल को झाड़ पोंछ कर चुपके से लागू कर आमजन से 10-15 गुना ज्यादा टैक्स वसूला जाने लगा है। वो भी पांच साल के एरियर के साथ।
ऐसा ही एक कानून अखिलेश सरकार के कार्यकाल में आया था, जिसका भाजपा ने जमकर विरोध किया था। उस कानून को सरकारी लूट बताया गया था। लेकिन अब वह कानून सरकार की तिजोरी भरने के काम आ रहा है। ताज्जुब तो यह है कि इस मुद्दे पर प्रतिपक्षी जनप्रतिनिधि पूरी तरह से खामोश हैं। कहीं किसी स्तर पर विरोध नहीं हो रहा। उधर आमजन को समझ नहीं आ रहा कि कैसे इस बिल का भुगतान करें क्योंकि यह सैकड़ा या हजारा में नहीं लाखों में आ रहा है। नहीं जमा करने पर कुर्की की कार्रवाई भी संभव है।
दरअसल 2013 में अखिलेश सरकार ने 2014 से राज्य सम्पत्ति कर अधिनियम के अंतर्गत भवन कर का निर्धारण किया था। तब भाजपा ने इसे जनविरोधी करार दिया था। सदन से सड़क तक भाजपा के दिग्गज व आम कार्यकर्ताओं ने अखिलेश सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। लेकिन अब योगी सरकार ने उसी कानून को लागू कर दिया है।
इतना ही नहीं उस कानून के तहत एक साथ पांच साल का टैक्स लिया जा रहा है। ऐसे में आम आदमी जिन्होंने अपने आवास में रोजी-रोटी का अगर कोई इंतजाम किया था वह आवास अब व्यावसायिक हो गया। और नगर निगम उस भवन का टैक्स व्यावसायिक दर से वसूलने लगी है। सबसे ज्यादा तकलीफदेह तो यह कि ऐसे लोग जो हर साल निगम की ओर से मिली छूट की अवधि में गृहकर और जलकर जमा करते आ रहे हैं उनसे भी 2014 से अब तक कर वह भी ब्याज सहित वसूला जाने लगा है।
इस संबंध में जब पत्रिका ने दशाश्वमेध जोन के कर अधीक्षक से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि आवासीय भवनों के लिए यह नियम नहीं है, लेकिन जो लोग अपने आवास से कोई कमाई कर रहे हैं और जिन्होंने 2014 के बाद अपना असेसमेंट नहीं कराया है, उन्हें ही ये बिल भेजा जा रहा है।
यानी अगर किसी ने दो-चार महीना या साल भर पहले अपने भवन में कोई छोटा-मोटा कारोबार शुरू किया है या एकाध कमरा किराए पर दिया है तो उन्हें 2014 से अब तक का व्यावसायिक कर वह भी ब्याज समेत चुक्ता करना ही होगा।
इस मुद्दे पर कांग्रेस के पूर्व जोनल प्रवक्ता अनिल श्रीवास्तव ” अन्नु ” ने 2014 से वाराणसी नगर निगम प्रशासन द्वार शासनादेश की आड़ में भवन स्वामियों से गृहकर व जलकर की राशी बढ़े हुए दर से लेने पर घोर आपत्ति दर्ज कराई है। उन्होंने इसे जनविरोधी करार दिया है। अन्नू का कहना है कि यह वृद्धि अव्यवहारिक व अमानवीय है सरकार को यदि लगता है कि यही एक रास्ता है प्रदेश में राजस्व वृद्धि का तो उसे चालू वित्तीय वर्ष से करना चाहिए था ना कि पांच साल पूर्व से, यह तानाशाही है।
उन्होंने टैक्स वसूली के निर्णय को वाराणसी नगर निगम प्रशासन की घोर तानाशाही बताते हुए कहा कि निर्णय अव्यवहारिक है क्योंकि सम्मानित भवन स्वामी करदाताओं ने राज्य सम्पत्ति कर के मुताबिक अपना गृहकर व जलकर समय से अदा किया। नगर निगम प्रशासन ने उस टैक्स की बकायदा चुक्ता रसीद दी और अब वही बढ़ी धनराशि 2014 से वसूलने का क्या औचित्य है , वह भी ब्याज के साथ ?
भाजपा सरकार व उसीके द्वारा शासित नगर निगम यह कहकर इस मुद्दे पर पल्ला नहीं झाड़ सकती कि यह निर्णय समाजवादी पार्टी की सरकार का है और भाजपा केवल उसका पालन कर रही । अन्नु ने सरकार से यह मांग की है कि इस जनविरोधी निर्णय पर सरकार तुरंत कैबिनेट की बैठक बुलाये व इसे वापस ले।