समाज प्रवक्ता अविनाश जैन ने बताया कि मुनिराज की इस आयोजन के लिए सहमति नहीं थी, लेकिन धर्मावलंबियों ने गुरुपूजा कर मुनिश्री के जन्मोत्सव को अविस्मरणीय बना दिया। पूजन ब्रम्हचारी दिलीप भैया के निर्देशन में हुई। मुनिश्री समतासागर महाराज का जन्म 13 जुलाई 1962 को सागर के नन्ही देवरी में हुआ था, उनकी स्कूली शिक्षा 12 वीं तक हुई। 1980 में उन्हें मुक्तागिरी में आचार्यश्री विद्यासागर महाराज के दर्शन करने का मौका मिला औरवे उनसे प्रभावित होकर वैराग्य पथ पर चल पड़े। 1982 में उन्होंने सप्तम प्रतिमा धारण कर घर त्याग दिया। 1983 में शिखर जी में उन्हें आचार्यश्री ने ऐलक दीक्षा और 25 सितंबर 1983 को मुनि दीक्षा दी गई। वे संघ में 10 वें नंबर के दीक्षार्थी वरिष्ठ मुनि हैं। अपने जन्मोत्सव के आयोजन में मुनिश्री ने कहा कि मैेंं जन्म दिन मनाने को सार्थक नहीं मानता। बर्थडे नहीं सार्थक डे मनाएं। संयम के पथ को अंगीकार करें, यदि इस पथ को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं तो केक काटकर होटलों में जाकर पार्टियों में धन और श्रम नहीं गवांए, बल्कि धार्मिक कार्यक्रमों में अपना समय दें, गो शालाओं में जाकर सेवा करें। ऐलकश्री निश्चयसागर महाराज ने बताया कि वे मुनिश्री के साथ 27 वर्ष से हैं।
इससे पहले आचार्यश्री की संगीतमय पूजन की गई और मुनिश्री को अध्र्य समर्पित कर आरती उतारी गई। मुनिश्री ने कहा हम तो जन्म दिवस मनाते नहीं और न ही हम मनाने की प्रेरणा देते है। उन्होंने कहा कि जितने भी वरिष्ठ नागरिक है वह जन्म दिन भगवान का अभिषेक पूजा भक्ती कर गो शालाओ में दान देकर मनाएं। समाज के संरक्षक ह्दयमोहन जैन ने इस दिन को संकल्प दिवस के रूप में मनाने की बात कही। महिलाओं की ओर से प्रतिनिधित्व कर रही डॉ शोभा जैन ने कहा कि धर्म की पताका फहराने के लिये हम सभी युवा बने रहें। इस अवसर पर बसंत जैन ने भी चातुर्मास में शीतलधाम को संवारने में समर्पित रहने का वचन दिया।