ऐसा ही एक संकल्प लेकर उषा जालौरी-राजेश जालौरी भी मंदिर से भगवान की चलित प्रतिमा लेकर घर आ गए हैं। धर्म परायण उषा जालौरी बताती हैं कि आठ दिन के पर्यूषण पर्व में रोजाना भगवान की पूजा-अभिषेक और भक्ति का विशेष महत्व है। इसके बिना व्रत अधूरा रहता है लेकिन परिजन कोरोना संकट को देखते हुए रोज मंदिर नहीं जाने दे रहे, यह सुरक्षित भी नहीं है। मंदिर में किसी सार्वजनिक कार्यक्रम की मनाही भी है ऐसे में महाराज साब की प्रेरणा से मंदिर में रखीं छोटी और अष्टधातु या पीतल की चलित प्रतिमाएं घर लाई जा सकती हैं। लेकिन यह सुनिश्चित करना होता है कि मंदिर से घर लाईं प्रतिमाओं का उसी विधि विधान से अभिषेक पूजा रोज हो जैसी मंदिर में होती है। हम भी अपने धर्म और व्रत पालन के लिए मुनि सुब्रत स्वामी श्वेतांबर जैन मंदिर की व्यवस्था संभालने वाले राकेश जालौरी के सहयोग से मंदिर से भगवान को अपने घर ले आए हैं, पर्यूषण पर्व पर अब निश्चिंत होकर भगवान की आराधना कर सकेंगे। वहीं राजेश जालौरी ने बताया कि पर्यूषण पर्व कषायों को दूर करने का पर्व है। इसमें कल्पसूत्र का वाचन होता है, भगवान का जन्मोत्सव मनता है, भगवान को झूले में झुलाया जाता है, जीव दया के लिए दान दिया जाता है, स्वप्नों की बोली लगती है, जिसकी राशि धर्मार्थ और मंदिर कार्यों में खर्च की जाती है। पर्यूषण पर्व के दौरान भगवान की रोज विशेष पूजा, अभिषेक और शाम को भक्ति का महत्व है। शाम को भजन कीर्तन होते हैं। लेकिन संकट काल में ये मंदिरों में संभव नहीं। इस दौरान हम घर पर ही पर्यूषण पर्व पूरे विधि विधान से मनाएंगे और भगवान से प्रार्थना करेंगे कि हम सबको इस कोरोना महामारी से मुक्ति दिलाएं।