एसएटीआइ के लिए मप्र शासन ने जमीन अधिग्रहीत की थी और लोगों की निजी जमीन सहित सरकारी रकवा की करीब 113 बीघा जमीन पर कलेक्टर ने कब्जा दिलाया था। इसके बदले में सोसायटी के उपाध्यक्ष रहे बाबू तख्तमल जैन ने 35 हजार रूप मुआवजे के तौर पर जमा कराए थे।
विदिशा में 1957 में पॉलीटेक्निक महाविद्यालय शुरू किया गया था। लेकिन 1960-61 में इंजीनियरिंग कॉलेज की स्वीकृति सौ फीसदी अनुदान के साथ भारत सरकार से मिली। उसी दौरान 13 फरवरी 1962 को प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने इंजीनियरिंग कॉलेज के भवन की आधारशिला रखी। हालांकि भवन बनने में करीब दो दशक लग गए। तब तक पॉलीटेक्निक भवन में ही डिग्री की कक्षाएं लगती रहीं।
शुरुआत में एसएटीआइ का संचालन विदिशा एजूकेशन सोसायटी के नाम से होता था। इसमें बाबू तख्तमल जैन और बाबू रामसहाय की अहम भूमिका थी। लेकिन इंजीनियरिंग संस्थान के लिए जब जीवाजीराव सिंधिया ने गंगाजलि फंड से राशि देने का ऐलान किया तो सोसायटी का नाम भी महाराजा जीवाजीराव एजूकेशन सोसायटी कर दिया गया। जो अब तक चल रहा है। इसकी पहली अध्यक्ष विजयाराजे सिंधिया बनीं, जबकि उपाध्यक्ष बाबू तख्तमल जैन और सचिव बाबू रामसहाय बने।
एसएटीआइ के लिए शुरुआत में जहां जीवाजीराव सिंधिया ने गंगाजलि फंड से राशि दी, वहीं नगरपालिका परिषद विदिशा और जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक विदिशा सहित कृषि उपज मंडी समिति विदिशा ने भी अपने अंशदान दिए। यही कारण है कि सोसायटी में अब भी नपा परिषद के अध्यक्ष और जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष को पदेन सदस्य के रूप में शामिल किया जाता है।
एसएटीआइ की शुरुआत सिविल, मैकेनिकल और इलेक््िरकल तीन ब्रांच से हुई थी, लेकिन आज इस संस्थान में 9 ब्रांच हैं। पहले बैच में 120 छात्रों ने ही प्रवेश लिया था। इनमें से तीनों ब्रांच में 40-40 विद्यार्थी थे। यहां के पहले प्राचार्य वीवी नातू थे, जिनके नाम पर यहां नातू सभागार भी बनाया गया था। नातू सहित संस्थान में इस पद पर 10 लोग बैठ चुके हैं।
एसएटीआइ के छात्रों में नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी, न्यूक्लियर पॉवर कार्पोरेशन ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमेन और प्रबंध निदेशक वीके चतुर्वेदी,ख्राजीव गांधी प्रौद्यागिकी विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति डॉ प्रीतमबाबू शर्मा, कर्नल वायएस भदौरिया, महाराष्ट्र के आइएएस सीएस संगीतराव, आइजी उज्जैन राकेश गुप्ता, आयकर उपायुक्त अवनीश तिवारी, रेलवे के वरिष्ठ अधिकारी नितिन ढिमोले, रणवीर सिंह एडीआरएम सहित हजारों नाम ऐसे हैं जो देश विदेश में एसएटीआइ का नाम रोशन कर रहे हैं।