रघुवंशियों ने ही बसाया था गांव
पूरे 10 साल तक ग्राम पंचायत पालकी के सरपंच रहे वीरसिंह रघुवंशी बताते हैं कि हमारे पूर्वजों ने ही यह गांव बसाया था। आज इस गांव की आबादी 1600 के करीब है, जबकि करीब 300 साल पहले चंद लोग ही यहां रहने आए थे। पहले यहां संतों का खूब आना जाना रहता था। पूर्वज संतों को भोजन कराए बिना खुद भोजन नहीं करते थे। गांव में अक्सर भंडारे होते रहते थे।
अब विकसित गांवों में गिनती
गांव में पक्की सडक़ है, बच्चों की पढ़ाई के लिए प्रायमरी से लेकर हायरसेकंडरी तक स्कूल है और सिंचाई के लिए सेऊ और बंदई नदी पर स्टॉप डेम भी बने हैं। खेती बहुत अच्छी है। गेंहू,चना और सोयाबीन की फसल ही ज्यादा होती है। रघुवंशी और कुशवाह समाज के अलावा यहां अनुसूचित जाति-जनजाति के लोग भी यहां रहते हैं लेकिन रघुवंशी बाहुल्य गांव है। मूल काम खेती और मजदूरी ही है।
डाकुओं का भी था यहां डेरा
पूर्व सरपंच वीरसिंह बताते हैं कि करीब 50 साल पहले पालकी में हमारे घर के ही सामने डाकुओं का भी डेरा था। यहां जवाहर सिंह और बुंदेलसिंह नाम के डाकू रहते थे, जो दूर के शहरों में डकैती डालते थे। लेकिन अपने क्षेत्र में सबको बराबर से सम्मान देते थे और खासकर बहू बेटियों की पूरी इज्जत देते थे।
गांव की मजबूती…
– गांव में एक जुटता का होना।
– गांव में पक्की सड़क का होना।
– गांव के सभी बच्चों का स्कूल में प्रवेश।
– सभी की धार्मिक कार्यों में आस्था और मौजूदगी।
– बुजुर्गों का सम्मान कर उनके अनुभव का लाभ लेना।
गांव की कमजोरी…
– गांव में नल जल योजना का शुरू न हो पाना।
– सिंचाई के लिए मकोड़िया बांध का न बन पाना।
– गांव के श्रमिक वर्ग को कई बार काम न मिल पाना।
– गांव से चौपाल चर्चा का लगातार कम होना।
-गांव में श्रमिकों को सामान्यत: मनरेगा के काम न मिल पाना।