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भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने 2019 के अखाड़े में यह पूछकर सीधी चुनौती दे डाली है कि कहां है महागठबंधन? इसके विपरीत कांग्रेस, सपा, बसपा, तृणमूल कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, द्रमुक, तेलुगू देशम, टीआरएस, राजद, राष्ट्रीय लोकदल, शिवसेना और अन्य क्षेत्रीय दलों में एक-एक सीट पर खींचतान है, वे कांग्रेस के मुकाबले अपनी ताकत को ज्यादा साबित करने में लगे हैं। इसी वजह से अविश्वास प्रस्ताव के दौरान गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने तंज करते हुए कहा कि विपक्ष के तथाकथित गठबंधन में नेता के सवाल पर गहरा अविश्वास है। अगर नेता का सवाल उठेगा तो वह तत्काल बिखर जाएगा।
इस बीच तमाम विश्लेषक गठबंधन की सीटों का गणित जोडऩे में लग गए हैं, मानो गठबंधन का सारा उद्देश्य सत्ता पर काबिज होने के लिए जादुई आंकड़ा छूना ही होता हो। ऐसा सोचने वाले भूल जाते हैं कि सत्ता के लिए गठबंधन की तात्कालिक आवश्यकता होने के बावजूद उसकी जरूरत सिर्फ राजनीतिक चुनाव जीतने और वोटों का समुच्चय बनाने के लिए नहीं होती। गठबंधन किसी भी राष्ट्र के लिए एक सामाजिक और आर्थिक आवश्यकता भी है। उसमें तमाम प्रकार की सोच और विचारधारा का भी एक गठबंधन होना चाहिए।
किसी भी देश में विखंडन की नौबत तब आती है, जब उस पर एक ही किस्म की अर्थव्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था जबरन थोपी जाती है। गठबंधन की नौबत तब आती है जब विखंडन के प्रयास तेज होते हैं। यह महज संयोग नहीं है कि भारत में केंद्रीय स्तर पर वास्तविक गठबंधन की राजनीति की शुरुआत उस समय हुई जब भूमंडलीकरण, मंडलीकरण और मंदिर आंदोलन की तीन आक्रामक धाराओं में तीव्र टकराव हुआ और समाज विखंडन की ओर जाने लगा। इनमें भूमंडलीकरण और मंदिर आंदोलन ऐसी धाराएं थीं, जो अर्थव्यवस्था और समाज को जबरदस्ती एकीकृत करने का प्रयास कर रही थीं और उसकी वास्तविकताओं से मुंह चुरा रही थीं।
अगर भूमंडलीकरण का खाका पश्चिम की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हित में विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और डब्लूटीओ के माध्यम से दुनिया की अर्थव्यवस्था को उनसे नत्थी करने का प्रयास था तो मंदिर आंदोलन पूरे भारतीय समाज को हिंदुत्व की एक कृत्रिम विचारधारा से जबरदस्ती बांधने का प्रयास था। भारतीय समाज ने इन आक्रामक नीतियों के विरुद्ध गठबंधन का एक दौर शुरू किया और उस दौरान समाज के विभिन्न तबकों की शिकायतों और उनकी परिवर्तनकारी आकांक्षाओं को प्रकट किया।
आज अगर देश बार-बार महागठबंधन की आवश्यकता पुकार रहा है तो उसका मकसद महज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाना और उनकी जगह पर किसी को बिठा देना ही नहीं है। उसका मकसद वह विखंडन रोकना है जो भूमंडलीकरण अपने तीसरे चरण में पूंजी पर कारपोरेट के पूर्ण प्रभुत्व के माध्यम से पैदा कर रहा है। क्या कोई नया गठबंधन भीतर से टूटते देश और समाज को जोड़ सकता है? इंसानियत और विश्वबंधुत्व को बचाने के लिए एक होना क्या जरूरी नहीं? इतिहास और राष्ट्रवाद के नए आख्यान में विभाजन का सबसे बड़ा अपराधी महात्मा गांधी को बताने वाले भूल जाते हैं कि उन्होंने उसके लिए क्या उपाय किए थे।
यह सही है कि महात्मा गांधी जब बिहार में थे उसी समय कांग्रेस के नेताओं ने विभाजन स्वीकार कर लिया था, लेकिन गांधी तात्कालिक रूप से उस विभाजन को मानने के बावजूद दीर्घकालिक रूप से उससे सहमत नहीं थे। इसीलिए वे कोलकाता, नोआखाली आदि में अपना चमत्कार दिखाने के बाद पाकिस्तान जाने की तैयारी कर रहे थे।
आज दिलों को बांट कर भौगोलिक एकता पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। आज कश्मीर अपने अशांत माहौल के साथ 1989 की स्थिति में ही नहीं पहुंच गया है, बल्कि असम और पश्चिम बंगाल भी 1946-47 की स्थिति में पहुंचाए जा रहे हैं। असम में चालीस लाख लोगों की नागरिकता पर सवाल उठाने और पश्चिम बंगाल में बेशुमार लोगों को अवैध बताने के बाद नए किस्म के तनाव पैदा हो रहे हैं। देश के भीतर सत्ता सुविधा में भागीदारी के लिए आरक्षण के उग्र आंदोलन हो रहे हैं। इन सबको नया मोड़ देने के लिए बहुसंख्यक समाज के रहनुमा कभी गाय तो कभी वंदेमातरम, कभी तिरंगे तो कभी मंदिर के बहाने और भी संकुचित सोच के साथ प्रकट हो रहे हैं।
वैश्वीकरण ने दुनिया के मुस्लिम देशों में अगर आतंकवाद पनपाया है तो भारत में विखंडन की नींव डाल दी है। इसलिए अगर इस देश को राजसत्ता से शह पाने वाले मानवाधिकार उल्लंघन, घृणा, भेदभाव और विखंडन से बचाना है और न्याय का राज कायम करना है तो सत्तावादी गठबंधन से अलग समाज और उसकी संस्थाओं का गठबंधन चाहिए, जिसमें गांधीवाद, समाजवाद, साम्यवाद के साथ व्यक्ति की गरिमा और आकांक्षाओं का समावेश भी हो। हमें आयातित राष्ट्रवाद नहीं चाहिए। हमें उसकी जगह सच्चा देश-प्रेम चाहिए। जो न सिर्फ सत्ता में दलितों और पिछड़ों की भागीदारी ही सुनिश्चित करे, बल्कि समाज को बिखराव से बचाते हुए संवैधानिक मूल्यों के साथ सत्ता पाने और चलाने का संकल्प सामने रख सके।
अरुण कुमार त्रिपाठी
वरिष्ठ पत्रकार
Updated on:
02 Aug 2018 09:46 am
Published on:
02 Aug 2018 09:43 am
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