
Childhood
बचपन विस्फारित नेत्रों से जगत् को देखता है। याद है मुझे वे पगडंडियाँ, कच्ची-पक्की सड़कें उस वक़्त किसी दूर गंतव्य तक ले जाती हुई प्रतीत होती थीं;दूरदर्शन के बचपन वाले उन ख़ास दिनों में ; अब इस समय सब सिमटी हुई सी लगती हैं। वो क़स्बा जो व्यापक भूगोल और मनसा विस्तार लिए हुआ करता था आज अनजान, मौन और कितना सिकुड़ा हुआ सा प्रतीत होता है।
मानो किसी शहरी बाला को देख वह मासूम किशोर सा शरमा गया हो। बचपन एक ख़ास एहसास है ; जब सभी सामान्य चीज़ें बहुत विशद नज़र आती हैं;सभी प्रकार के अनुभवों को समेटे हुए वाकई एक अनूठा अनुभव। वे रंगोली, चित्रहार और शनिवार को साँय पाँच बजे फ़िल्म देखने वाले बेहद सादा दिन थे।
म्ज्हारा चारभुजा का नाथ म्हाने दर्शन दे दीजौ च् ये धार्मिक बोल आज भी मेड़ता के समीप पहुँचते हुए मेरे कानों में स्वत: गूँज उठते हैं और मन मीरां बन जाता है; हाँलाकि बचपन से ही इस हठी मन ने कृष्ण से जाने कितने प्रश्न किए हैं!
मीरा मंदिर समूचे बचपन का अकेला गवाह रहा है।इसके चप्पे -चप्पे पर सात सहेलियों वाले सारे खेल हमने खेलें हैं । श्रावणी मास में उस चंदीले साजों सम्मान से सुसज्जित कन्हाई के सन्मुख जम कर नृत्य किया है, छक कर प्रसाद ख़ाया है और उचक-उचक घंटियाँ बजाई हैं। आज भी यहाँ सब यथावत् है , गुम है तो साँवले सलोने के सम्मुख नतशिर खड़ी वह लड़की जो अपने आभ्यन्तरिक अनुभव , उधेड़बुन कुछ मींचीं कुछ खुली आँखों से स्वागत कथनों में बुदबुदाती रहती थी।
व्यवहार में मुझे लोग धार्मिक नहीं कह सकते पर मेरी उसकी बात को हम दोनों ही शायद बख़ूबी जानते हैं और इस जगती की बातों पर हँस पड़ते हैं हम। उससे मिलना नहीं हुआ पट बंद थे पर दर्शन झाँकी पर उसके डर कर दुबके रहने की शिकायत डाँट भरे अंदाज में छोड़ आई हूँ, जाने क्या सोचा होगा उसने!
विमलेश शर्मा
साभार- फेसबुक से
Published on:
26 Sept 2018 11:55 am
बड़ी खबरें
View Allवर्क एंड लाईफ
ट्रेंडिंग
