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दिव्यांगों के लिए बढ़ें सुविधाएं

दिव्यांग भी समाज का हिस्सा

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Pawan Kumar Rana

Dec 09, 2016

Special children

Special children

- पलक चौधरी

"दिव्यांगजन सशक्तीकरण राष्ट्रीय पुरस्कार 2016" समारोह के दौरान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सार्वजनिक स्थानों, सुविधाओं को दिव्यांगो के अनुरूप बनाने पर जोर देते हुए कहा कि "पोषक तत्वों की पूर्ति, प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल और समाजिक सहयोग से इनका जीवन सुगम बनाया जा सकता है"। परंतु देश में विकलांगो को मिल रही सुविधाएं और उनकी स्थिति विकलांगो के प्रति देश के राष्ट्रपति की महत्वकांक्षाओं पर प्रशन चिंह लगा रहा है। विकलांगों की एक लंबी श्रृंखला देखने को मिलती है। देश के सीमावर्ती क्षेत्र में माईन ब्लास्ट के कारण, प्राकृतिक आपदाओं, दुर्घटनाओं और बीमारियों का शिकार होकर भी विकलांगता से ग्रस्त हो रहे हैं।

एक सर्वे के अनुसार काफी संख्या तीस साल से कम उम्र के विकलांगों की है, पचास फीसदी विकलांगों की मासिक आय पांच हजार रुपये से कम है, बहुत से लोगों को विकलांगता से राहत की कोई सहायता अब तक नहीं मिल पाई है, 40 प्रतिशत विकलांगों को इलाज और उपचार नहीं मिला, इनमें 40 प्रतिशत लोग निरक्षर हैं और 95 प्रतिशत को निजी बस किराए में कोई छूट नहीं मिलती है। उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है कि विकलांग किन कठिनाईयों का सामना कर रहे हैं और सरकार की ओर से उन्हे क्या सहायता मिल रही है? गांव में दूर- दराज के इलाके में सरकार की ओर से चलाई जा रही योजनाओं का प्रभाव शून्य है।

विकास के दौर में विकलांगों का जीना मुश्किल हो रहा है। उनके लिए अलग से कोई सरकारी अस्पताल नहीं जिससे अस्पताल में उपचार के लिए उन्हें परेशानी उठानी पड़ती है। पहाड़ी क्षेत्रों में तो से शहर तक पहुंचना आम आदमी के लिए आसान नहीं तो विकलांगों का क्या हाल होगा? विकलांग भी सामान्य लोगों की तरह से इंसान ही हैं। फिर उन्हें अलग नजर से क्यों देखा जा रहा है? कहीं राजनीति के शिकार और कहीं आकस्मिक आपदाओं की चपेट में आकर उनका जीवन वहीं रूक गया है।

दूसरो पर निर्भर होकर ये अपना जीवन-यापन करते हैं। यदि हम विकलांगों को खोया हुआ अंग नहीं दे सकते तो ऐसे तरीके बनाएं जिससे उनके जीवन में कुछ राहत मिले। आखिर यह भी हमारे समाज का हिस्सा हैं। इसलिए आवश्यक है कि जिलों में विकलांगों के लिए एक विकलांग गृह का निर्माण किया जाए जहां रहने- सहने की स्थायी व्यवस्था हो। साथ ही हेल्पलाइन नंबर, शिल्प केंद्रों और जिला स्तर पर विकलांग संगठन की स्थापना के साथ स्वास्थ्य विभाग की ओर से विकलांगों को मेडिकल सर्टिफिकेट प्रदान किये जाएं, बस किराए में सुविधाएं दी जाएं। कल्याण विभाग विकलांगों को पेंशन देने में देरी न करे। आशा है इन प्रयासों के बाद यहां के विकलांगो का जीवन विकलांग बनने से बच जएगा।

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