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सौतेली माँ का मतलब ‘सौतेलापन’ नहीं है !

अक्सर ये कुछ बातें हैं जो प्रत्येक सौतेली माँ के बारे में सुनने को मिलती हैं।

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Jameel Ahmed Khan

Feb 13, 2018

Step Mother

Step Mother

हमारे एक निकट के रिष्तेदार 'क' हैं, जिनकी पत्नी की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद उन्होंने दूसरी शादी कर ली। नई आने वाली पत्नी की उम्र 22 वर्ष से अधिक न थी। मि. 'क' के पूर्व पत्नी से पहले ही पाँच सन्तानें थीं। जिनमें से सबसे बड़े लड़के की उम्र 24 वर्ष थी और जिसकी कि शादी वे तीन वर्ष पहले कर चुके थे तथा उससे उनके एक पौत्र भी हो गया था।

मि. 'क' की माँ, नयी बहू की आलोचना सारे मोहल्ले में हमेषा करती रहती हैं। कभी कहती हैं बहू-बच्चों को नहीं चाहती। पोते बहू से कुढ़ती है। उससे बराबरी करना चाहती है। कभी उनका आक्षेप यह होता है कि उसने तो मि. 'क' का दिमाग ही पलट दिया है और वे बिल्कुल दब्बू बन गए हैं। वे उसके सामने कुछ भी नहीं बोल पाते। कभी कहती हैं, पर का खर्च बढ़ गया है। 'क' की पत्नी का अपना हाथ खर्च बहुत अधिक है। छोटे बच्चों की भारती और डांटती है।

अक्सर ये कुछ बातें हैं जो प्रत्येक सौतेली माँ के बारे में सुनने को मिलती हैं। सामाजिक परम्पराएँ कुछ इस तरह बन गई हैं कि सौतेली माँ का स्वरूप इससे बेहतर रूप में हमारे सामने आही नहीं पाता है। होना यह चाहिए था कि जैसी स्थितियाँ मि. 'क' के साथ रही थीं, उन्हें देखते हुए शादी का प्रस्ताव ही नहीं रखना चाहिए था। चूंकि अब वे शादी कर चुके हैं। अतः उन्हें अब स्थितियों का सामना करने के लिए सक्षम होना चाहिए, वर्ना घर इस तरह तो धीरे-धीरे कलह, ईर्ष्या और द्वेष से चौपट हो जाएगा। उन्होंने शादी घर चौपट करने के लिए थोड़े ही की थी।

सौतेली माँ से सही व्यवहार पाने के लिए स्वयं सौतेली माँ की भूमिका तो अहमियत रखती ही है लेकिन, इसके लिए बच्चों, परिवार के अन्य सदस्यों तथा पति महाषय की ओर से मिलने वाले सहयोग से भी नहीं नकारा जा सकता। जैसा व्यवहार घर के समझदार बच्चे सौतेली माँ से चाहते हैं, उनकी भी अपनी भूमिका है। इसी तरह परिवार के अन्य सदस्य तथा पति की भी।

बच्चों के लिए: सौतेली माँ का व्यवहार बचें के प्रति स्नेहिल और उदार सर्वप्रथम होना चाहिए। उसे यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि वह उस घर में दूसरी बनकर आयी है। यदि बच्चे अबोध हैं तो उनके कपड़े, धुलाई, सिलाई, लिखाई-पढ़ाई तथा नहलाने का दायित्व अपने ऊपर लेना चाहिए। ऐसे कार्य करते वक्त उसमें कभी भी झंूझलाहट और खीझ के भाव नहीं उत्पन्न होने चाहिए। वे बच्चे अबोध हैं, उन्हें स्नेह और मार्ग दर्षन की आवष्यकता है अन्यथा वे भटक जाएंगे और भविष्य में वे आपके लिए सिरदर्द बन जाएंगे।

बच्चे कुछ बड़े और समझदार हैं तो उनकी भावनाओं को पूरी तरह तबोज्जह देनी चाहिए, वर्ना इसके अभाव में माँ के प्रति उनका उपेक्षाभाव बढ़ता है। एक तरह से सौतेली माँ यदि अपने से पूर्व बच्चों को अपने भाई-भतीजे मानकर भी व्यवहार करे तो कोई दुविधा उत्पन्न नहीं होती।

इसके साथ ही समझदार बच्चों का भी दायित्व है कि वह अपनी सौतेली माँ को सिर्फ माँ समझें। यदि कभी-कभार वह उन्हें डांटती भी है, तो उन्हें उसका बुरा नहीं मानना चाहिए। अपनी दूसरी माँ को भी उन्हें अपनी पहली माँ की तरह ही पूरा आदर भाव देना चाहिए। माँ जब उस समस्या का समाधान नहीं कर सके तब उन्हें बिना षिकायत के वही समस्या पिता को बतानी चाहिए।

पति के लिए : यहाँ आपसे यह अपेक्षा कदापि नहीं की जा रही कि पति को परमेष्वर मानकर सदैव पूजें और उसकी हर बुरी बात को अंगीकार करती रहें। लेकिन पत्नी के रूप में आपकी जो मर्यादाएँ हैं, उन्हें समझकर पूरी तरह निभाएँ। आप यह क्यों भूल जाती हैं कि सारा सुख होते हुए भी उन्होंने अकेलेपन से घबराकर आपको जीवन-साथी के रूप में चुना है। आप उनके सुख-दुख की संगिनी हैं। यह गरूर कभी भी मत लाइए कि दूसरी पत्नी होने से पति महाषय आपकी गैर जरूरी आवष्यकताएँ भी पूरी करें। पति पर अनधिकृत रूप से रोब या अधिकार जमाने की कोषिष न करें।

सम्भव है इनसे आपके पति भीतर ही भीतर हीनता बोध करने लगें और आप उनके उपेक्षा भाव की षिकार हो जाऐं। पति को यह भाव कदापि नहीं होने दें कि आप दूसरी पत्नी के रूप में आई हैं। अपने सद्व्यवहार से पति का दिल जीतें। पति कभी पहली पत्नी की तारीफ या बातें करने लगे तो शांति से सुनें, कभी भी खीझें या कुण्ठित न हों। वह भी तो आप ही की Sister थीं। पति महाषय का दायित्व है कि वे अपनी दूसरी पत्नी से भी पहली पत्नी की ही तरह व्यवहार करें। न तो आप दूसरी पत्नी से इतना प्रेम ही जताएं कि आपके बच्चे आपके प्रति पूर्वाग्रह बना लें और आपकी पत्नी भी उन्हें उपेक्षित समझने लगे। कोई ऐसी नयी बात को जन्म दे, जो पत्नी, बच्चों और परिवार के सदस्य को विलक्षण लगे। दूसरी शादी को असामान्य कभी नहीं मानें।

आपकी उम्र चूंकि आपकी दूसरी पत्नी से ज्यादा है, इसका मतलब यह नहीं कि आपे घूमें-फिरें या सिनेमा-पार्क आदि न जाऐं। आप पहली पत्नी के साथ भी तो घूमते रहे हैं। अतः दूसरी पत्नी की युवा भावनाओं का पूरी तरह ख्याल रखें। उसे यह महसूस नहीं हो कि उसे शादी का आनन्द ही नहीं आया। उसे पूरी तरह महसूस हो कि बाह्य और आन्तरिक जीवन खोखला नहीं, आनन्द से सरोबार है।

दूसरी होने वाली पत्नी के बच्चों को भी उतना ही स्नेह दें, जितना पहली वाली पत्नी से उत्पन्न बच्चों को दे रहे हैं। समानता का व्यवहार करें। दूसरी पत्नी के बच्चों को कोई चीज लाए हैं तो देर-सवेर पहली पत्नी के बच्चों को भी वे चीजें लाकर दें, ताकि बच्चों में हीनता भाव न पनपें। फिर कौन-सी शक्ति ऐसी है जो आपके परिवार में विघटनें की दरार डाल दें। आपका परिवार खुषियों की सुगंध से सदैव महमहकता रहेगा।

परिवार के सदस्यों के लिए : जब तक उनके परिवार के कथित व्यक्ति की दूसरी शादी नहीं हो जाती तब तक वे उत्साही और खुष रहते हैं। लेकिन शादी होने के बाद धीरे-धीरे पूर्वाग्रह घर करने लगते हैं और दूसरी माँ के प्रति अपेक्षाकृत उपेक्षा भाव गहराता चला जाता है। इसके लिए परिवार के सदस्यों को नयी मान्यताएँ स्थापित करनी चाहिए और उन्हें अपनी उम्र के हिसाब से सौतेली माँ को आदर व स्नहेभाव देना चाहिए।

विषेषकर सास का दायित्व हो जाता है कि वह अपनी बहू को अपनी बेटी के तुल्य समझें। उसे यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि कठोर व्यवहार उसके पौत्र-पौत्रियों के प्रति उपेक्षा को जन्म देगा, जो हर स्थिति में कष्टकर और असह्य होता है। वह दूसरे घर से दूसरी पत्नी बनकर आई है। अतः उसके संकोचभाव को दूर करें और उसके व्यवहार में कठोरता न आने दें।

सौतेली माँ का परिवार के सदस्यों के प्रति सदैव सद्व्यवहार और सम्मान होना चाहिए। यह धारणा नहीं बनानी चाहिए कि वह दूसरी पत्नी के रूप में आई है। अतः वह मान्यताओं के उपहास की पात्र है। उसे उन मान्यताओं और आचरणों से भी बचना चाहिए जो अक्सर सौतेली माँ के ऊपर मढ़े जाते रहे हैं। उन्हें वे धारणाए निर्मल सिद्ध कर देनी चाहिए। जिनसे उसके चरित्र पर आंच आती हो।

चन्द्रकान्ता शर्मा