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आइएस के बाद अब बंदी शिविरों में महिलाओं ने वर्चस्व के लिए उठाई बंदूक

-पूर्वी सीरिया के कैंप में लगभग 70 हजार से अधिक लोग रहते हैं। इनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं, जो आइएस (islamic state) के खिलाफ लड़ाई के दौरान विस्थापित हुए थे

Oct 22, 2019 / 03:32 pm

pushpesh

आइएस के बाद अब बंदी शिविरों में महिलाओं ने वर्चस्व के लिए उठाई बंदूक

आइएस के बाद अब बंदी शिविरों में महिलाओं ने वर्चस्व के लिए उठाई बंदूक

जयपुर. अमरीका के सीरियाई कुर्द सहयोगियों को पूर्वी सीरिया के उस विशाल शिविर पर नियंत्रण खो देने का खतरा है, जहां इस्लामिक स्टेट के पराजित लड़ाकों के परिवारों को रखा गया है। अब इन परिवारों की कुछ महिलाएं कैंप पर अपना प्रभुत्व जमाने की कोशिश कर रही हैं। सीरियाई डेमोक्रेटिक फोर्सेज (एसडीएफ) के जनरल मजलूम कोबाने का कहना है कि अलहोल शिविर में तेजी से हिंसक हो रहे लोग गार्डों के नियंत्रण से बाहर हो रहे हैं। इनमें कुछ महिलाओं ने आइएस की विचारधारा को बढ़ाने के लिए बंदूकें थाम ली हैं और कैंप पर उनका प्रभुत्व नजर आने लगा है।
कुछ महिलाओं ने अपना वर्चस्व स्थापित करते हुए इस्लामिक स्टेट की शैली में खुद की शरिया अदालतें स्थापित कर ली हैं और उनकी विचारधारा को खारिज करने वाले आम लोगों को कठोर शारीरिक यातनाएं देती हैं। कोबाने कहते हैं, अलहोल में गंभीर खतरे हैं। जब तक अंतरराष्ट्रीय समुदाय कोई कदम नहीं उठाता, यहां आक्रोश भडक़ने का खतरा है। अभी हमारे लोग अभी इनकी सुरक्षा करने में सक्षम हैं, लेकिन शिविर में आइएस से जुड़े समूह खुद को फिर से संगठित और पुनर्गठित कर रहे हैं। ये सच है कि हम उन्हें 100 फीसदी नियंत्रित नहीं कर सकते। पूर्वी सीरिया के अलहोल नजरबंदी कैंप में लगभग 70 हजार से अधिक लोग रहते हैं। इनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं, जो आइएस आतंकियों के खिलाफ लड़ाई के दौरान विस्थापित हुए थे। इनमें ऐसे नागरिक भी हैं, जो लड़ाई के दौरान हिरासत में लिए गए थे, लेकिन इनका आतंकियों से कोई संबंध नहीं है। गार्डों के मुताबिक 10 हजार विदेशी नागरिक हैं, जो चरमपंथी इस्लामिक स्टेट में शामिल होने आए थे।
बगदादी के संदेश से बढ़ा तनाव
सीरियाई डमोक्रेटिक फोर्सेज का कहना है कि पिछले महीने आइएस के नेता अबू बक्र अल बगदादी के एक वीडियो संदेश के बाद शिविर में तनाव बढ़ गया। इस संदेश में बगदादी ने अपने समर्थकों से कहा था कि शिविर की दीवारों को गिरा दो और जेल से बंदियों को रिहा करवाओ। मजलूम का कहना है कि एसडीएफ चाहती है कि दूसरे देशों की सरकारें अपने-अपने नागरिकों को वापस बुलाकर उनका बोझ कम करे, लेकिन सरकारें उन्हें वापस लेने को तैयार नहीं हैं।
बुरे हाल हैं शिविर के
एक शहर के आकार का यह शिविर इराकी सीमा पर है, जिसमें भोजन दुर्लभ है, दूषित पानी के चलते बीमारियां फैल रही हैं। स्वास्थ्य सेवाएं चौपट हैं। रात में बिजली की मुकम्मल व्यवस्था नहीं है और बिजली जाती है तो नाइट विजन उपकरण भी नहीं हैं। कुछ सीसीटीवी कैमरे हैं, जो सूर्यास्त के बाद बेकार हैं। बारिश के दिनों में बदहाल रहे इन लोगों के सामने सर्दियों में और मुश्किल आएगी।

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