महंगाई को 2 प्रतिशत पर लाने का है लक्ष्य मेरिकी फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष जेरोम पॉवेल (Jerome powell) ने प्रेस से बात करते हुए कहा, आज की बैठक में, फेडरल ओपन मार्केट कमेटी ने अपनी नीतिगत ब्याज दर में 3/4 प्रतिशत अंक की वृद्धि की है, जिससे अब बेंचमार्क ब्याज दर 3-3.25 प्रतिशत हो गई। उन्होंने कहा, “हम अपने नीतिगत रुख को आगे बढ़ा रहे हैं जो मुद्रास्फीति को 2 प्रतिशत पर वापस लाने के लिए पर्याप्त प्रतिबंधात्मक होगा।”
महंगाई अभी भी है लक्ष्य सीमा से काफी ज्यादा जानकारों के अनुसार, इस नई वृद्धि से लाखों अमेरिकी व्यवसायों और परिवारों के लिए घरों, कारों और क्रेडिट कार्ड जैसी चीजों के लिए उधार लेने की लागत में वृद्धि होना तय है। अमेरिका में उपभोक्ता मुद्रास्फीति में अगस्त में मामूली गिरावट आई है। जुलाई में 8.5 फीसदी से 8.3 फीसदी लेकिन अब भी 2 फीसदी के लक्ष्य से काफी ऊपर है।
अपेक्षित थी बढ़ोतरी बता दें, कई वरिष्ठ शीर्ष बैंकरों ने हाल ही में कहा था कि अमरीका फेडरल बैंक द्वारा ब्याज दरों में एक और बढ़ोतरी आसन्न है। एस एंड पी ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस के अनुसार, ब्याज दरें बढ़ाना एक मौद्रिक नीति उपाय है जो आम तौर पर अर्थव्यवस्था में मांग को दबाने में मदद करता है, जिससे मुद्रास्फीति दर में गिरावट आती है। फेडरल रिजर्व द्वारा जारी आधिकारिक बयान के अनुसार, रूस-यूक्रेन युद्ध जबरदस्त मानवीय और आर्थिक कठिनाई पैदा कर रहा है।
युद्ध और संबंधित घटनाओं से मुद्रास्फीति पर अतिरिक्त दबाव इसके कारण युद्ध और संबंधित घटनाएं मुद्रास्फीति पर अतिरिक्त दबाव बना रही हैं और वैश्विक आर्थिक गतिविधियों पर असर डाल रही हैं। इसलिए मौद्रिक नीति समिति मुद्रास्फीति के जोखिमों के प्रति अत्यधिक चौकस है।” पॉवेल ने कहा कि समिति लंबे समय में अधिकतम रोजगार और मुद्रास्फीति 2 प्रतिशत का लक्ष्य हासिल करना चाहती है।
ट्रेजरी सिक्टोरिटीज में होल्डिंग कम करना रहेगा जारी इन लक्ष्यों के समर्थन में, समिति ने फेडरल बैंक बेंचमार्क रेट के लिए लक्ष्य सीमा को 3 से 3-1 / 4 प्रतिशत तक बढ़ाने का निर्णय लिया और अनुमान लगाया कि लक्ष्य सीमा में चल रही वृद्धि उचित होगी। इसके अलावा, समिति ट्रेजरी सिक्योरिटीज और एजेंसी ऋण और एजेंसी बंधक-समर्थित प्रतिभूतियों की अपनी होल्डिंग्स को कम करना जारी रखेगी, जैसा कि मई में जारी किए गए फेडरल रिजर्व की बैलेंस शीट के आकार को कम करने की योजना में वर्णित है। पॉवेल ने प्रेस मीटि के दौरान कई बार दोहराया कि समिति मुद्रास्फीति को उसके 2 प्रतिशत लक्ष्य पर वापस लाने के लिए दृढ़ता से प्रतिबद्ध है।”
भारत पर नहीं दिखेगा कोई खास असर: प्रो. अमन अग्रवाल इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंस के निदेशक प्रो. अमन अग्रवाल के अनुसार, अमरीका में कोविड के दौरान बेहद उदारता से आर्थिक मदद लोगों की दी गई। घर बैठे लोगों के खाते में पैसे आते रहे। क्वांटिटेटिव ईजिंग की इस नीति के कारण वहां रिकार्ड मुद्रास्फीति के हालात पैदा हो गए और महंगाई 9 प्रतिशत के भी स्तर को पार कर गई। अब अमरीका फेडरल बैंक घबराहट में इस महंगाई को काबू करने के लिए ताबड़तोड़ तरीके के ब्याज दर बढ़ा रहा है और लगातार तीन बार 0.75 प्रतिशत की ब्याज दर में बढ़ोतरी की गई है। अमरीका के केंद्रीय बैंक की इस नीति से यूरोपीय और दूसरे कुछ देशों से बढ़ती ब्याज दरों का लाभ उठाने के लिए अमरीका में निवेश आया है। इससे उत्साहित होकर अमरीका के केंद्रीय बैंक ने एक बार फिर ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर दी है। लेकिन इस तरह से ब्याज दरों में बेतहाशा बढ़ोतरी से अब दुनिया में ये संकेत जा रहा है कि शायद अब अमरीका में हालात केंद्रीय बैंक के भी नियंत्रण में नहीं हैं, क्योंकि अमरीका में महंगाई दरों में अपेक्षित कमी नहीं आई है। जो कि अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता और अस्थिरता के संकेत देता है, जो कि निवेशकों में विश्वास नहीं जगाती है।
प्रो. अग्रवाल के अनुसार केंद्रीय बैंक के इस कदम से अमरीका में मांग में कमी आना तय है और इससे मंदी की आशंका प्रबल होती है। लेकिन इसका असर उन देशों जैसे यूरोप पर या चीन जैसे देशों पर ही अधिक होगा जिनकी अर्थव्यवस्थाएं सीधे अमरीका पर निर्भर हैं। लेकिन भारत पर इसका असर न्यूनतम होगा, क्योंकि भारत अपने कैपिटल या ग्रोथ के लिए अमरीका पर निर्भर नहीं है। भारत में घरेलू स्तर पर ग्रोथ की विराट संभावनाएँ मौजूद हैं और भारत पर इसका कोई असर फिलहाल होते नहीं दिख रहा है।
भारत में हालात अनुकूल: जितेंद्र अग्रवाल वहीं अर्थशास्त्री और मार्केट एक्सपर्ट जितेंद्र अग्रवाल का कहना है कि धीमी वैश्विक प्रवृत्ति के बीच भारत में विकास की पर्याप्त संभावनाएं हैं। अग्रवाल के अनुसार भारत को दूसरे देशों से अलग रखने वाली अनुकूल चीजों में बेहतर कॉर्पोरेट रिजल्ट और बैंकिंग बैलेंस शीट, आकर्षक जनसांख्यिकी, चीन प्लस वन पर ध्यान केंद्रित करना, मुद्रास्फीति का भारी दबाव नहीं होना, कच्चे तेल की कीमतों का अपेक्षित रूप से नियंत्रण में होना और पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार होना शामिल हैं।
वहीं भारत के लिए जोखिम वाले कारकों में उच्च फेड दरें शामिल हैं जो आईएनआर बनाम यूएसडी पर दबाव पैदा कर सकती हैं और एफआईआई निवेशों के निकलने की आशंका है। साथ ही विदेशी मुद्रा में उधारी या निर्यात में भारी एक्सपोजर रखने वाले कॉरपोरेट्स को भी वैश्विक बाजारों के अनुरूप नुकसान हो सकता है।