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Blue Eyes : ये नीली-नीली आंखें……., रिसर्च में हुआ ये चौंकाने वाला खुलासा, जानिए

Research on Blue Eyes: नीली आंखों वाले शख्स सहसा ही लोगों का ध्यान खींच लेते हैं। ये नीली आंखें उनकी पर्सलेलिटी में चार चांद लगा देती हैं। बॉलीवुड स्टार ऐश्वर्या रॉय,करिश्मा कपूर, करीना कपूर,ऋतिक रोशन,टाइगर श्रॉफ,सेलिना जेटली व स्नेहा उलाल अदाकारी के साथ ही अपनी नीली-नीली आंखों के कारण सुर्खियों में रहते हैं।

नई दिल्लीJun 04, 2024 / 12:46 pm

M I Zahir

Blue Eyes Film Stars

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Research on Blue Eyes: तेरी नीली नीली आंखों के दिल पे तीर चल गए …। नीली नशीली खूबसूरत आंखों वाले लोगों की बात ही कुछ निराली है। एक रिसर्च में दावा किया गया है कि दुनियाभर में नीली आंखों वाले लोगों के पूर्वज शायद एक जैसे रहे होंगे।

जीन म्यूटेशन की पहचान

इस रिसर्च (Research News)में कहा गया है किछह से 10 हजार साल पहले के जीन म्यूटेशन की पहचान की गई है। आंखों के रंग का संबंध क्या वंश से हो सकता है? क्या एक ही रंग की आंखों वालों के पूर्वज समान होते हैं? ये सवाल अब तक पहेली बने हुए थे। एक नए शोध में दावा किया गया है कि दुनिया में नीली आंखों वाले (Blue Eyes )सभी लोगों के पूर्वज समान हो सकते हैं।

म्यूटेशन से बदला आंखों का रंग

डेनमार्क की कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी में सेलुलर और मॉलीक्यूलर विभाग के प्रोफेसर हंस ईबर्ग ( Professor Hans Aberg) की अगुवाई में हुए शोध में छह से 10 हजार साल पहले के एक जीन म्यूटेशन की पहचान की गई। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस म्यूटेशन के कारण मनुष्यों में नीली आंखें उभरीं। म्यूटेशन ने ओसीए-2 जीन में बदलाव किया।

प्रोटीन में बदलाव ला सकता है म्यूटेशन ‘पी’

रिसर्च के अनुसार ओसीए-2 जीन में म्यूटेशन ‘पी’ प्रोटीन में बदलाव ला सकता है, जो मेलेनिन बनने और उसके फैलने को प्रभावित करता है। जिन लोगों में मेलेनिन बहुत कम या बिल्कुल नहीं बनता, उनकी त्वचा बहुत गोरी, बाल और आंखें हल्के रंग की होती हैं।

ओसीए-2 जीन से तय होता है आंखें का रंग

शोध के मुख्य लेखक हंस ईबर्ग का कहना है कि ओसीए-2 जीन आम आबादी में आंखों के रंग में भिन्नता से जुड़ा है। जीन के विभिन्न संस्करणों के आईरिस में मेलेनिन की मात्रा और वितरण पर असर डालने के कारण आंखों का रंग नीला या भूरा हो सकता है।

कई देशों की पड़ताल

शोधकर्ताओं ने जॉर्डन, डेनमार्क, तुर्किए समेत कई देशों के लोगों की आंखों के रंग और उनके माइटोकॉन्ड्रियाई डीएनए की पड़ताल की। उनका कहना है कि इसका अस्तित्व के संघर्ष से कोई लेना-देना नहीं है और न ही यह अच्छा या बुरा असर बताता है। कुदरत लगातार इंसान के जीनोम में बदलाव करती रहती है।

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