
Netherlands raises voice for film writers
International conference on satire in Netherlands : रोचक और चुभते हुए तीखे तीरनुमा सवाल दिल पर लग रहे थे और बहुत चुभ रहे थे और इन सवालों की बौछार पर जवाबों की बयार बह रही थी। यह था व्यंग्य पुरोधा ( Master of Satire) शरद जोशी ( Sharad Joshi) की 93 वीं जयंती के अवसर पर प्रवासी भारतीयों की संस्था “अंतरराष्ट्रीय हिन्दी संगठन नीदरलैंड” की ओर से आयोजित साहित्य में व्यंग्य की भूमिका” विषयक कार्यक्रम का नजारा। सम्मेलन में यह स्वर उभरा कि फ़िल्म बनाने वालों ने लेखकों को फ़िल्म जगत से बाहर कर दिया। मुख्य अतिथि वरिष्ठ व्यंग्यकार (Satirist) ,कवि व साहित्यकार व नेशनल बुक ट्रस्ट के संपादक डॉ लालित्य ललित (Dr. Lalitya Lalit) उपस्थित रहे। मुख्य वक्ता के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार व व्यंग्यकार मीना सदाना अरोड़ा ( Meena Sadana Arora) ने उपस्थिति दर्ज कराई। विषय प्रवर्तक के रूप में वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार व संपादक डॉ. सुनीता श्रीवास्तव (Dr. Sunita Srivastava) थीं।
कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय हिन्दी संगठन नीदरलैंड की अध्यक्ष व कार्यक्रम की संयोजिका व साहित्यकार डॉ ऋतु शर्मा नंनन पांडे (Dr. Ritu Sharma Nannan Pandey) के अतिरिक्त अध्यक्ष के रूप में वरिष्ठ व्यंग्यकार, उपन्यासकार व केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा के सदस्य प्रोफ़ेसर राजेशकुमार (Professor Rajeshkumar) उपस्थित रहे। इस संस्था की अध्यक्ष व कार्यक्रम की संयोजिका डॉ ऋतु शर्मा नंनन पांडे ने कार्यक्रम की शुरुआत शरद जोशी के कृतित्व व व्यक्तित्व के विषय में बताया और प्रश्न किया :
प्रश्न - डॉ ऋतु शर्मा नंनन पांडे- व्यंग्य क्या है? इसका मुख्य उद्देश्य क्या है? वर्तमान समय में क्या इसके लेखन की गुणवत्ता में कमी आई है?
उत्तर -प्रोफ़ेसर राजेश कुमार ने कहा कि व्यंग्य साहित्य में व्यंग्य की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। या यूँ कहें व्यंग्य समाज को आईना दिखाने का काम करता है। व्यंग्य एक साहित्यिक उक्ति है, जिसमें वक्ता उपहास या उपहास करने के लिए कहता को कुछ है किन्तु उसका अर्थ कुछ और होता है। शरद जोशी जैसे व्यंग्य पुरोधा ने व्यंग्य को लेखन और मंच दोनों रूप में स्थापित किया। जहाँ तक व्यंग्य लेखन का प्रश्न है , आज के समय में भी बहुत अच्छे व्यंग्यकार हैं जिन्हें लोग पढ़ना चाहते हैं। ज्ञान चतुर्वेदी (Gyan Chaturvedi), मीना अरोड़ा व डॉ लालित्य ललित जैसे बहुत अच्छे व्यंग्यकार हैं, जो लगातार लिख रहे हैं और पाठक उन्हें पढ़ रहें है। उनकी पुस्तकें पाठक ख़रीद रहे हैं।
उन्होंने कहा कि व्यंग्य की गुणवत्ता का आकलन आने वाला कल तय करता है। पाठक जब व्यंग्य पढ़ेगा, तभी उसका आकलन किया जाएगा । साहित्य का उद्देश्य पाठकों को लोकोत्तर आनन्द देना है। वह आनन्द उन्हें साहित्य की अन्य विधाओं की पुस्तकें पढ़ने के साथ साथ व्यंग्य की पुस्तकें पढ़ने से प्राप्त होता है। आज व्यंग्य लेखन और अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए व्यंग्य की कार्यशाला भी आयोजित की जा रही है। आज व्यंग्यकारों को भी वही मान सम्मान प्राप्त है, जो कहानी या उपन्यास लिखने वाले लेखकों को मिलता है। इसलिए व्यंग्य लेखन जारी रहना चाहिए।
प्रश्न-डॉ ऋतु शर्मा नंनन पांडे – व्यंग्य लेखन आज के समय में चुनौती क्यों बन गया है?
उतर – कार्यक्रम की विषय प्रवर्तक व वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार डॉ सुनीता श्रीवास्तव (Dr. Sunita Srivastava) ने अपने वक्तव्य में कहा “ व्यंग्य शरद जोशी के समय में भी लिखा जाता था और अब भी लिखा जा रहा है। लेकिन व्यंग्य लेखन आज के समय में एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन गया है। लोग वहीं पढ़ना चाहते हैं जिसे वह पंसद करते हैं। सच्चाई कोई नहीं सुनना पड़ना चाहता।व्यंग्य कहानी कहने के माध्यम से किसी व्यक्ति,स्थिति या समाजिक विश्वास प्रणाली का उपहास करने या आलोचना करने की कला है। व्यंग्य का मूल उद्देश्य निराशा, निर्णय और अवमानना की भावनाओं को व्यक्त करना है। आज के सोशल मीडिया ने भी व्यंग्य का अर्थ बदल दिया है। आज के समय में वर्तमान में व्यंग्य का रूप कितना बदल गया है यह उन्होंने शरद जोशी की रचना का पाठ कर के बताया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार,व्यंग्यकार,कवि व नेशनल बुक ट्रस्ट के संपादक डॉ लालित्य ललित से डॉ ऋतु शर्मा नंनन पांडे ने प्रश्न किया-
प्रश्न- व्यंग्य के कितने प्रकार है? एक अच्छा व्यंग्य लेख, कहानी या उपन्यास को आप किस तरह परिभाषित करेंगे?
उत्तर - कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ लालित्य ललित, जिनकी अब तक 23 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, उन्होंने व्यंग्य की विधाओं पर प्रकाश डालते हुए बताया कि लेखक अपने लेखन में जिन पात्रों को गढ़ता है और जब पाठक उन्हें पढ़े और आत्मसात करे तो वही व्यंग्य लेखन की विशेषता है। व्यंग्य को आप लेख के रूप में और मौखिक रूप दोनों में व्यक्त कर सकते हैं। मौखिक व्यंग्य-एक साहित्यिक उपकरण है, जिसमें एक वक्ता का एक महत्वपूर्ण बिंदु पर ध्यान आकर्षित करने के लिए एक बात कहता है, लेकिन उसका मतलब कुछ और ही होता है। लोक भावनाओं पर भी ज़ोर देने के लिए लोग मौखिक व्यंग्य का उपयोग करते हैं। लेखक पात्रों को विकसित करने और आकर्षक संवाद तैयार करने के लिए व्यंग्य का उपयोग करता है। व्यंग्य एक साहित्यिक उपकरण है जिसका उपयोग लेखक अपने पाठकों को उनके पात्रों और विषय के समझाने में मदद करने के लिए करता है। व्यंग्य में आलोचना भी सभ्य भाषा में लिख सकते हैं। वरिष्ठ साहित्यकारों को नव लेखकों के मार्गदर्शन के साथ साथ उनका सम्मान भी करना चाहिए ।
डॉ ऋतु शर्मा नंनन पांडे ने अगला प्रश्न करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार व व्यंग्यकार मीना अरोड़ा से पूछा—-
प्रश्न- शरद जोशी के लेखन में व्यंग्य, कटाक्ष व चुटीलापन होता था। उनकी कहानियों पर उस समय में बहुत सी फ़िल्में व टेलीविज़न धारावाहिक बने। आज के समय में ऐसा क्यों नहीं हो रहा?
उत्तर - वरिष्ठ साहित्यकार व व्यंग्यकार मीना अरोड़ा – व्यंग्य और कटाक्ष व्यंग्य की ही दो अलग-अलग शैलियां हैं, क्योंकि व्यंग्य भ्रष्टाचार,सामाजिक व राजनीतिक जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर करने के लिए व्यंग्य का उपयोग किया जाता है।व्यंग्य एक प्रकार की विडंबना है जिसका प्रयोग मज़ाक़ उड़ाने या उपहास करने के लिए किया जाता है। साहित्य के परिप्रेक्ष्य में अंतर्दृष्टि देने व चरित्र संबंधों को विकसित करने और हास्य पैदा करने के लिए लेखक साहित्य में व्यंग्य का बहुत उपयोग करते हैं, लेकिन जब व्यंग्य को कटु आलोचना के रूप में लिखा या बोला जाता है तब वह कटाक्ष का रूप ले लेता है। वह लोगों के लिए अप्रिय बन जाता है।
आपने पूछा शरद जोशी की कहानियों पर फ़िल्में बनती थीं, धारावाहिक बनते थे? अब ऐसा नहीं है- वो इस लिए नहीं है क्योंकि फ़िल्म बनाने वालों ने लेखकों को फ़िल्म जगत से बाहर कर दिया है। आज के समय में बहुत अच्छे प्रतिभावान लेखक हैं किन्तु उनका मूल्य सिने जगत में कुछ नहीं है। आज के समय में जब एक प्रोड्यूसर फ़िल्म बनाता है और उसने उस हीरो को लेता है जो सबसे ज़्यादा बिकाऊ है तो फिर फ़िल्म की कहानी भी उसी नायक की होती है, फ़िल्म के अन्य किरदार भी उसी के परिवार या दोस्तों को ही मिलते हैं । इन सबके बीच लेखक कहीं खो जाता है। उसकी ज़रूरत न के बराबर होती है। इसलिए आजकल वैसी फ़िल्म और धारावाहिक नहीं बन रहे, जिसे आप घर परिवार के साथ बैठ कर देख सकें, विषय की गंभीरता को समझ सके। आज अगर शरद जोशी भी जीवित होते उनकी कहानी सिने जगत में कोई नहीं ख़रीदता।
मुख्य वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार व व्यंग्यकार मीना अरोड़ा ने अपने वक्तव्य में बताया -व्यंग्य एक विधा है जिसमें कटाक्ष उसकी शैली है। व्यंग्य को सामाजिक व राजनीतिक किसी भी रूप में भी लिखा जा सकता है। आज सिनेमा में लेखकों के लिए जगह नहीं है।
डॉ ऋतु शर्मा नंनन पांडे ने सभी अतिथियों का आभार ज्ञापन करते हुए कहा
शरद जोशी ने व्यंग्य को नया तेवर और वैविध्य प्रदान किया और समय की विसंगतियों और विडंबना को अपनी प्रखर लेखनी से उजागर करते हुए समाज को एक नई दृष्टि और दिशा प्रदान करने का उत्तरदायी रचना कर्म किया। उनकी व्यंग्य रचनाओं ने हिन्दी साहित्य की समृद्धि में सुनिश्चित योगदान दिया ।हम हमेशा उनके इस योगदान के लिए उन्हें याद रखेंगे।
Updated on:
28 May 2024 03:26 pm
Published on:
28 May 2024 02:55 pm
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